देवउठनी एकादशी पर 4 माह की योग निद्रा से जागेंगे श्रीहरि, तुलसी-शालिग्राम विवाह के साथ शुरू होंगे मांगलिक कार्य

पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस एकादशी को देवोत्थान और देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से चार महीने तक चलने वाला चातुर्मास खत्म हो जाता है और फिर से शादी-विवाह और सभी तरह के मांगलिक कार्यों की दोबारा से शुरू हो जाते हैं.;

By :  State Mirror Astro
Updated On : 31 Oct 2025 6:00 AM IST

हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी का सबसे ज्यादा महत्व होता है. यह एकादशी सभी एकादशी तिथियों में सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार महीनों की योगनिद्रा के बाद जागते हैं और सृष्टि के संचालन का कार्यभार फिर से संभालते हैं.

पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस एकादशी को देवोत्थान और देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से चार महीने तक चलने वाला चातुर्मास खत्म हो जाता है और फिर से शादी-विवाह और सभी तरह के मांगलिक कार्यों की दोबारा से शुरू हो जाते हैं.

देवउठनी एकादशी तिथि 2025

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 01 नवंबर को सुबह 09 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी. इस तिथि का समापन 02 नवंबर को सुबह 07 बजकर 31 मिनट पर होगा. इसी दिन चातुर्मास खत्म होगा और शुभ कार्यों की शुरुआत होगी.

भगवान विष्णु जागते हैं और चातुर्मास होता है खत्म

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे देशशयनी एकादशी कहते हैं उस दिन से चार महीनों के लिए शयन करते हैं और फिर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन जागते हैं. ये चार महीने चातुर्मास कहलाए जाते हैं जो देवउठनी एकादशी पर खत्म हो जाते हैं. चातुर्मास शुरू होने पर चार महीनों के लिए शुभ और मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन और गृह प्रवेश जैसे कार्य वर्जित हो जाते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन जब भगवान विष्णु जागते हैं तो इस दिन से सभी तरह के मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है. देवउठनी एकादशी तिथि विशेष रूप से विवाह जैसे मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है.

पूजा विधि

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है. इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा आराधना करने का विशेष महत्व होता है. देवउठनी एकादशी की पूजा विधि भी बहुत ही सरल होती है. एकादशी तिथि पर सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके पूजा-व्रत का संकल्प लें. फिर इसके बाद घर के आंगन या फिर बालकनी में चौक बनाकर भगवान विष्णु के चरण अंकित करें. इसके बाद भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाएं और शंख बजाकर श्रीहरि को योगनिद्रा से जागएं. इस दौरान भगवान विष्णु के जागरण मंत्र “उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्.” का लगातार जाप करें. शंख बजाने और मंत्रोंचार के बाद भगवान विष्णु को तिलक लगाकर भोग अर्पित करें और पूजा के बाद आरती करें.

तुलसी विवाह का महत्व

देवउठनी एकादशी पर जहां एक तरफ भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा के बाद जागते हैं वहीं इस खास दिन पर भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी की पूजा का भी खास महत्व होता है. इस दिन विधि-विधान के साथ तुलसी की पूजा होती है, जिसमें तुलसी को लाल चुनरी, सुहाग की वस्तुएं अर्पित किया जाता है. इसके साथ भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की पूजा और देवी तुलसी से साथ विवाह का अनुष्ठान किया जाता है. तुलसी विवाह के लिए द्वादशी तिथि सबसे शुभ और उत्तम मानी जाती है. इस तरह से 02 नवंबर को तुलसी विवाह का धार्मिक अनुष्ठान किया जाएगा.

Similar News