अनपढ़ महिलाएं ज्यादा बच्चे, पढ़ी-लिखी महिलाएं चुनती हैं छोटा परिवार! जानिए क्या कहती है SRS की रिपोर्ट

रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि पढ़ी-लिखी महिलाएं कॉन्ट्रासेप्टिव्स और रिप्रोडक्टिव हेल्थ के बारे में ज्यादा जानकारी रखती हैं. वे मॉडर्न फैमिली प्लानिंग तरीकों को अपनाने में झिझकती नहीं हैं. नतीजा यह होता है कि न सिर्फ मातृ मृत्यु दर घटती है.;

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Edited By :  रूपाली राय
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लड़कियों की पढ़ाई सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहती, यह उनके पूरे जीवन और समाज के भविष्य को दिशा देती है. हाल ही में जारी हुई सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) 2023 रिपोर्ट इस बात को और पुख्ता करती है. रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे महिलाओं की शिक्षा का स्तर बढ़ता है, वैसे-वैसे न केवल उनकी सोच और जीवन की गुणवत्ता सुधरती है, बल्कि उनके परिवार और समाज पर भी सकारात्मक असर पड़ता है.

रिपोर्ट में सामने आए आंकड़े चौंकाने वाले हैं, जिन महिलाओं ने कभी स्कूल का दरवाज़ा तक नहीं देखा, उनका टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) यानी औसतन बच्चे पैदा करने की संख्या करीब 2.2 है. वहीं, जिन महिलाओं ने केवल प्राइमरी या मिडिल तक पढ़ाई की, उनमें यह दर लगभग 2 के आसपास रही. लेकिन जैसे ही शिक्षा का स्तर 10वीं, 12वीं या उच्च शिक्षा तक पहुंचा, यह आंकड़ा घटकर 1.8 और 1.6 हो गया. इसका साफ मतलब है, जितनी ज्यादा पढ़ाई, उतनी बेहतर समझ और फैमिली प्लानिंग की क्षमता. 

जल्दी शादी करने के बजाए पढ़ाई पर फोकस 

लेकिन असल मायने सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण तक सीमित नहीं हैं. पढ़ी-लिखी महिलाएं ज्यादा आत्मनिर्भर होती हैं, उन्हें नौकरी और करियर के मौके मिलते हैं और वे अपनी स्वास्थ्य और भविष्य से जुड़े फैसले खुद ले पाती हैं. यही कारण है कि उच्च शिक्षा हासिल करने वाली महिलाएं अक्सर जल्दी शादी करने की बजाय पढ़ाई और करियर पर ध्यान देती हैं. इसका सीधा असर यह होता है कि शादी और बच्चों की योजना दोनों देर से होती हैं, जिससे जन्म दर स्वाभाविक रूप से घटती है.

ज्यादा बच्चे ज्यादा सहारा 

रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि पढ़ी-लिखी महिलाएं कॉन्ट्रासेप्टिव्स और रिप्रोडक्टिव हेल्थ के बारे में ज्यादा जानकारी रखती हैं. वे मॉडर्न फैमिली  प्लानिंग तरीकों को अपनाने में झिझकती नहीं हैं. नतीजा यह होता है कि न सिर्फ मातृ मृत्यु दर घटती है, बल्कि बच्चों की सेहत और शिक्षा पर भी बेहतर ध्यान दिया जा सकता है. सबसे अहम बात यह है कि शिक्षा सोच बदलती है. अनपढ़ परिवारों में जहां अभी भी 'ज्यादा बच्चे, ज्यादा सहारा' की मानसिकता है, वहीं शिक्षित परिवार यह समझते हैं कि 'कम बच्चे, लेकिन बेहतर परवरिश' ही असली तरक्की है.

क्या कहती है रिपोर्ट?

SRS 2023 की रिपोर्ट साफ कहती है अगर भारत को आर्थिक विकास, सामाजिक सुधार और महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ना है, तो सबसे बड़ी कुंजी है लड़कियों की शिक्षा, क्योंकि एक पढ़ी-लिखी महिला सिर्फ अपने जीवन को नहीं बदलती, बल्कि पूरे समाज के भविष्य को उज्ज्वल करती है. 

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