Holi 2025 : क्या हैं सिंथेटिक रंगों में छिपे खतरे? सेंसटिव स्किन को पहुंचाते हैं नुकसान
इंडस्ट्रियल कलर जैसे कि मैलाकाइट ग्रीन, स्किन की सेंस्टिविटी को बढ़ाकर, विशेषकर बच्चों के लिए जोखिम को और बढ़ा देते हैं. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि होली के बाद डर्मेटोलॉजी क्लीनिक में होली के बाद रशेस और इचिंग से रिलेटेड शिकायतों के साथ दौरे में 25% तक की ग्रोथ देखी गई है.;
रंगों का त्योहार होली नजदीक आ रहा है ऐसे में कई लोगों के लिए, यह दोस्तों और परिवार को रंगों में सराबोर करने का आनंद उठाने वाले हैं. लेकिन रंगों का त्यौहार सेंसटिव स्किन वालो को एक अलग ही टेंशन दे देता है. खास तौर से होली के रंग हमारी आंखों और लिप एरिया को ज्यादातर नुकसान पहुंचना है.
साइंस इस बात की पुष्टि करता है कि होली के रंग, खासतौर से सिंथेटिक रंग,स्किन की हेल्थ के लिए सच में जोखिम पैदा कर सकते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें पहले से ही एक्जिमा या डर्मेटाइटिस जैसी समस्या है. न्यूज 18 के साथ डॉ प्रवीण बानोडकर, एमबीबीएस, डीएनबी (त्वचाविज्ञान), और स्किन बियॉन्ड बॉर्डर्स (स्किनबीबी) के को-फाउंडर वह सब कुछ शेयर करते हैं जो आपको जानना आवश्यक है
सिंथेटिक रंगों में छिपे खतरे
होली अपनी नेचुरल रूट्स से कहीं आगे बढ़ चुकी है जहां नेचुरल रंगों की जगह बाजारों में मिलने वाले तरह-तरह के रंगों ने चिंताजनक तत्व मौजूद होते हैं. रिसर्च से पता चलता है कि अब बाजारों में मिलने वाले रंगों में सीसे की मात्रा सबसे ज्यादा होती है. 70% तक सिंथेटिक रंगों में लेड ऑक्साइड और कॉपर सल्फेट जैसी भारी मेटल्स होती हैं, जो सेंसटिव स्किन में जलन या जलन पैदा कर सकती हैं. जिसमें हरा, बैंगनी, गुलाबी और लाल रंग आते हैं.
रैशेज और इचिंग की बढ़ती हैं शिकायतें
इंडस्ट्रियल कलर जैसे कि मैलाकाइट ग्रीन, स्किन की सेंस्टिविटी को बढ़ाकर, विशेषकर बच्चों के लिए जोखिम को और बढ़ा देते हैं. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि होली के बाद डर्मेटोलॉजी क्लीनिक में होली के बाद रशेस और इचिंग से रिलेटेड शिकायतों के साथ दौरे में 25% तक की ग्रोथ देखी गई है. सेंसटिव स्किन पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है और मरीज़ों को जलन की समस्या बनी रहती है जो हफ्तों तक बनी रहती. हालांकि सभी की स्किन एक जैसी प्रतिक्रिया नहीं करती, 12 साल से कम उम्र के बच्चे, एटोपिक डर्मेटाइटिस या सोरायसिस जैसी स्थितियों के चपेट में आ सकते हैं. जैसे कि फोकस में कमी, आवेग नियंत्रण की समस्याएं, या अन्य मेन्टल और फिजिकल डिसऑर्डर्स. होली के बाद, राशेज और इचिंग के रोगियों में लगभग 20-30% की वृद्धि होती है, जो ज्यादातर सिंथेटिक रंगों से जुड़ा होता है.
रंगों में एज़ो डाई
कुछ सिंथेटिक रंगों में रासायनिक तत्व होते हैं जो लंबे समय तक शरीर में जमा हो सकते हैं और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ रंगों में एज़ो डाई (Azo Dyes) होते हैं जो कैंसरजनक हो सकते हैं. सिंथेटिक रंगों में कुछ रसायन होते हैं जो शरीर में जाने से लिवर और किडनी पर दबाव डाल सकते हैं.