'जज के पास दिमाग नहीं था...' सुप्रीम कोर्ट ने 32 साल बाद रेप पीड़िता को दिया न्याय, आरोपी को हुई 10 साल की सजा

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी के सेक्शन 376 और 506 के तहत 10 साल की कैद और 10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है. ट्रायल कोर्ट ने एफआईआर में देरी को आधार बनाते हुए आरोपी को रिहा कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने फरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट और पीड़िता के बयान के आधार पर आरोपी को दोषी पाया.;

Edited By :  रूपाली राय
Updated On : 2 May 2025 9:28 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में 32 साल बाद एक आरोपी को 10 साल की कैद की सजा सुनाई है, जिस पर 10 साल की नाबालिग से रेप का आरोप था. इस मामले में गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था, लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने लगभग 30 साल बाद ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. आरोपी की उम्र घटना के वक्त 21 साल थी और अब उसकी उम्र 54 साल है.

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी के सेक्शन 376 और 506 के तहत 10 साल की कैद और 10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है. ट्रायल कोर्ट ने एफआईआर में देरी को आधार बनाते हुए आरोपी को रिहा कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने फरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट और पीड़िता के बयान के आधार पर आरोपी को दोषी पाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट और डॉक्टरों के बयान के बाद भी ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी करना समझ से परे है. हाई कोर्ट ने कहा था कि अगर अपराधी को ऐसे ही छोड़ दिया जाएगा तो समाज पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा, खासकर जब पीड़िता केवल 10 साल की थी.

क्या जज के पास दिमाग नहीं था

घटना के समय आरोपी की उम्र 21 साल थी, सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि आखिर कौन सा नासमझ जज था, जिसने फॉरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट और डॉक्टरों के साथ-साथ पीड़िता के बयान को भी नजरअंदाज कर आरोपी को बरी कर दिया. बताते चलें कि यह घटना होने के महज एक साल बाद, अक्टूबर 1991 में अहमदाबाद ग्रामीण के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को रिहा कर दिया था. आरोप था कि उस शख्स ने खेत में पीड़िता के साथ खेत में बलात्कार किया था. इसके बाद पीड़िता को अस्पताल ले जाया गया और फिर सरपंच की सहायता से आरोपी के खिलाफ FIR दर्ज की गई.

आरोपी को 10 साल की सजा

मेडिकल जांच में बलात्कार की पुष्टि हो चुकी थी, फिर भी ट्रायल कोर्ट ने परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हुए केवल FIR में 48 घंटे की देरी के आधार पर आरोपी को बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट का तर्क था कि FIR दर्ज कराने में देरी हुई. इसके बाद राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में अपील दायर की, जो 30 साल तक पेंडिंग रही. अंत में 14 नवंबर 2024 को जस्टिस अनिरुद्ध पी. मायी और जस्टिस दिव्येश ए. जोशी ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 506 के तहत 10 साल की सजा और 10,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई.

ऐसे लोगों को खुला मत छोड़ो

हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि ऐसे अपराधियों को यूं ही छोड़ दिया जाए, तो समाज पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. यह भी गौर करने योग्य है कि पीड़िता महज 10 साल की थी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोरिश्वर सिंह ने भी हाई कोर्ट के फैसले का समर्थन किया और आरोपी को एक हफ्ते के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया

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