जहां बना है न्‍यू पंबन ब्रिज, कभी वहां समंदर में समा गई थी पूरी ट्रेन; 'भूतों के शहर' धनुषकोडी का आज क्‍या है हाल?

तमिलनाडु के पंबन द्वीप पर स्थित धनुषकोडी एक रहस्यमयी और ऐतिहासिक स्थान है, जो 1964 की विनाशकारी चक्रवात में तबाह हो गया था. अब वही क्षेत्र भारत के पहले वर्टिकल लिफ्ट सी-ब्रिज नए पंबन ब्रिज के उद्घाटन के साथ फिर से चर्चा में है। यह पुल रामेश्वरम को मुख्य भूमि से जोड़ता है और आधुनिक इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है.;

Edited By :  नवनीत कुमार
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तमिलनाडु के पंबन द्वीप के अंतिम छोर पर स्थित है एक रहस्यमय भूमि धनुषकोडी. यहां से आंख सिकोड़कर देखा जाए तो सामने श्रीलंका दिखता है. यह कोई आम जगह नहीं, बल्कि इतिहास, आस्था और प्रकृति के प्रचंड स्वरूप का साक्षी रहा एक ऐसा शहर है, जिसे अब लोग 'भूतों का शहर' कहकर पुकारते हैं. लेकिन आज उसी वीरान भूमि के पास, भविष्य की एक नई रेखा खिंच चुकी है, नया पंबन ब्रिज, जो तकनीकी चमत्कार बन चुका है.

इस ब्रिज का उद्घाटन राम नवमी के दिन 6 अप्रैल 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. यह भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट सी-ब्रिज है, जो रामेश्वरम को मुख्य भूमि से जोड़ता है. आधुनिक इंजीनियरिंग से बना यह पुल सिर्फ एक संरचना नहीं, बल्कि उस भूले हुए शहर के लिए एक नई सांस है, जो एक समय समुद्र की लहरों में डूब गया था.

कब हुआ था हादसा?

कभी जिस पंबन ब्रिज से ट्रेनें गुजरती थीं, वहीं 1964 में समुद्र की विनाशकारी लहरों ने पूरी एक ट्रेन को निगल लिया था. 280 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चल रही थी और 23 फीट ऊंची ज्वार की लहरें उठ रही थीं. इस तूफान में कम से कम 1,800 लोग मारे गए, जिनमें पंबन-धनुषकोडी ट्रेन में यात्रा करने वाले 115 लोग भी शामिल थे. धनुषकोडी गांव तबाह हो गया और मद्रास सरकार ने उसे 'रहने योग्य नहीं' घोषित कर दिया. तभी से वो शहर एक सन्नाटे की गाथा बनकर रह गया. लेकिन चमत्कारों की भूमि में, कहानियां कभी पूरी तरह खत्म नहीं होतीं. पुराने पुल की मरम्मत की जिम्मेदारी भारत के महान इंजीनियर ई. श्रीधरन ने संभाली. स्थानीय मछुआरों की मदद से उन्होंने समुद्र में डूबे 126 गर्डर खोजे और उस टूटे हुए पुल को फिर से खड़ा कर दिया.

हादसे के बाद दिखा था सिर्फ ट्रेन इंजन

23 दिसंबर 1964 की रात पंबन द्वीप पर जब सुनामी आई तब एक 653 लोगों से भरी पंबन-धनुषकोडी पैसेंजर ट्रेन समुद्र में बह गई. इस हादसे में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. अगली सुबह सिर्फ उसका इंजन पानी से झांकता मिला था. गनीमत ये रही कि पुराना ब्रिज इस सुनामी को झेल गया और 146 में से 126 स्पैन बह गए और दो स्तंभ भी तबाह हो गए. बाद में इंजीनियर ई. श्रीधरन ने फिर से इस पुल को खड़ा कर दिया.

त्रासदी से जुड़े आखिरी व्यक्ति की भी हुई मौत

2013 में धनुषकोडी के स्टेशन मास्टर और भारतीय रेलवे के इस त्रासदी से जुड़े आखिरी जीवित व्यक्ति आर. सुंदरराज का मदुरै में उनके घर पर निधन हो गया. सुंदरराज की पत्नी ग्लेडिस ने बताया था कि कैसे वे अपने तीन छोटे बच्चों के साथ एक हफ़्ते से ज़्यादा समय तक रेलवे स्टेशन पर फंसे रहे, उसके बाद उन्हें एक जहाज़ द्वारा बचाया गया. वे त्रासदी में जीवित बचे कुछ लोगों में से एक थे. 

2019 में रखी गई नए पंबन ब्रिज की नींव

फिर सालों बाद, 2019 में एक नई शुरुआत हुई. नए पंबन ब्रिज की नींव रखी गई. 2.08 किलोमीटर लंबा, 99 स्पैन, 17 मीटर ऊंचाई तक उठ सकने वाला यह पुल आधुनिकता का प्रतीक बना. अब इससे वंदे भारत जैसी तेज रफ्तार ट्रेनें चलेंगी और बड़े जहाज भी बिना अड़चन गुजर सकेंगे. लेकिन ब्रिज से कुछ किलोमीटर दूर आज भी धनुषकोडी की रेतें अपने अतीत की कहानियां कहती हैं. जहां पर्यटक चांदी-से समुद्रतट पर खड़े होकर श्रीलंका की झलक पाने की कोशिश करते हैं, वहीं स्थानीय गाइड उन्हें बताते हैं कि यहीं से भगवान राम ने सेतु बनाया था रावण से युद्ध के लिए.

आज सिर्फ दिखता है खंडहर

कभी यहां ट्रेन चलती थी, चर्च में प्रार्थनाएं होती थीं, स्कूल और बाजार थे और अब सिर्फ दीवारें बची हैं. 2004 की सुनामी में कुछ देर के लिए शहर के डूबे हिस्से दिखाई दिए थे. जैसे समुद्र ने क्षमा मांगते हुए इतिहास की झलक दी हो. और इस सारी कहानी के बीच, धनुषकोडी तबाही और पुनर्निर्माण का एक प्रतीक बन गया. जहां अतीत की भूत-छवियां आज भी हवाओं में तैरती हैं, वहीं पास खड़ा नया पुल भविष्य की उम्मीदों का रास्ता बन चुका है. यह सिर्फ इंजीनियरिंग का चमत्कार नहीं, बल्कि यादों और आशाओं के बीच एक पुल है.

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