EXCLUSIVE: न्यायाधीश को हटाने का अंतिम फैसला संसद के मतदान पर निर्भर, जज के लिए 'महाभियोग' नहीं तो फिर क्या?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले से संदिग्ध नोटों की बरामदगी ने न्यायपालिका में हलचल मचा दी है. संसद में उनके खिलाफ रिमूवल की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन मीडिया और आमजन में इसे "महाभियोग" कहा जा रहा है. जानिए, संविधान के अनुसार जज को हटाने की असली प्रक्रिया क्या है और "महाभियोग" से उसका क्या फर्क है?;
जब-जब आजाद भारत में किसी न्यायाधीश को पदच्युत यानी कुर्सी से हटाने की नौबत आई या आती है, तब-तब उसके खिलाफ ‘महाभियोग’ लाए जाने या चलाए जाने का शोर मचने लगता है. इन दिनों इस ‘महाभियोग’ ने फिर से आम-ओ-खास के कान फोड़ रखे हैं, इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले से बरामद भारी-भरकम संदिग्ध ‘नोट-कांड’ ने. इस बदनाम कांड में हास्य का पात्र बन चुके जस्टिस वर्मा के खिलाफ भले ही उन्हें कुर्सी से वक्त से पहले उतारने की तैयारियां शुरू की जा चुकी हों. अपनी पर अड़े मगर जस्टिस वर्मा अब भी यह मानने को कतई राजी नहीं है कि दिल्ली वाले उनके सरकारी बंगले से बरामद मोटी रकम से उनका कोई दूर-दूर तक वास्ता भी है.
फिलहाल इस सबके बीच राज्यसभा और लोकसभा में दो सौ से ज्यादा सांसदों ने ऐसे जिद्दी जज यशवंत वर्मा को जज की कुर्सी से हटाने की विधिक कार्यवाही शुरू कर दी है. सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय जांच कमेटी के सामने भी जब जस्टिस वर्मा ने यह नहीं माना कि बंगले से बरामद नोटों का भंडार उनका है. तब फिर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हे पद से हटाए जाने की फाइल आगे बढ़ा दी. जैसे ही फाइल संसद और राज्यसभा के पटल पर पहुंची. एक बार देश में शोर मचने लगा कि, जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ “महाभियोग” की कार्यवाही शुरु हो चुकी है.
यशवंत वर्मा की खामोशी पर चर्चा
अब तक पूरी तरह खामोशी अख्तियार किए बैठे जस्टिस वर्मा अपने वकील कपिल सिब्बल के जरिए सोमवार (28 जुलाई 2025) को सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचे. मीडिया छाई खबरों के मुताबिक सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में उनकी खासी फजीहत की गई. सुप्रीम कोर्ट ने जब पूछा कि अब तो महाभियोग की कार्यवाही शुरू की जा चुकी है. जब आप सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच कमेटी के सामने पहले ही पेश हो चुके हैं तब फिर, आप (जस्टिस यशवंत वर्मा) अब क्यों यहां (सुप्रीम कोर्ट) आये हो?
उच्चतम न्यायालय के इस सुप्रीम सवाल के जवाब में कपिल सिब्बल ने अपने मुवक्किल यशवंत वर्मा की ओर से जवाब दिया कि, “हम अपनी बात रखने आए हैं.” इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “महाभियोग की प्रक्रिया” शुरू करने से पहले हमने (सुप्रीम कोर्ट) तीन सदस्यी कमेटी आपकी बात सुनने के लिए ही तो गठित की थी. वहां आप क्यों नहीं बोले? सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल के जवाब में कपिल सिब्बल के सामने कोई माकूल जवाब नहीं था. फिलहाल अब इस मामले की सुनवाई 30 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में होनी है.
‘महाभियोग’ राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के लिए
इसी तमाम उठा-पटक के बारे में दो दिन पहले स्टेट मिरर हिंदी ने बात की दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस एन ढींगरा (Delhi High Court Justice Shiv Narayan Dhingra) से. उन्होंने बेहद चौंकाने वाला खुलासा किया और बोले, “मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि जब भारत के संविधान में जज को उसके पद से हटाने के लिए कहीं महाभियोग शब्द लिखा ही नहीं गया है. तब फिर क्यों नीचे से ऊपर तक और ऊपर से नीचे तक सब जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाए जाने के लिए शुरू हुई प्रक्रिया को महाभियोग-महाभियोग करके चीख-चिल्ला रहे हैं. संविधान में तो महाभियोग का इस्तेमाल देश के राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को उनके पद से हटाने के लिए किया गया है. फिर किसी जज को हटाने के लिए उसके खिलाफ महाभियोग कैसे आ जाएगा?”
महाभियोग और रिमूवल के मायने
कानून और संविधान से जुड़ी इतनी गहरी बात की “तह-तक” तो आप ही पहुंचा सकते हैं, क्योंकि आप पूरे जीवनकाल में वकील और जज रहे हैं. स्टेट मिरर हिंदी के साथ विशेष बातचीत में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा (Delhi High Court Justice SN Dhingra) बोले, “दरअसल संविधान में भारत के राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति को अगर किन्हीं विषम परिस्थितियों में पदच्युत किया जाना होता है, तब उसके लिए महाभियोग चलाया जाता है. किसी राज्य के उच्च न्यायालय या फिर देश के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को पदच्युत करने के लिए महाभियोग का दूर-दूर तक इस्तेमाल नहीं होता है. संविधान में किसी जज को उसके पद से हटाने के लिए सीधे सीधे साफ शब्दों में रिमूवल शब्द लिखा है.”
रिमूवल और महाभियोग में क्या है अंतर?
जब भारत के संविधान में रिमूवल और महाभियोग की परिभाषा और उसका कहां किसके लिए इस्तेमाल होगा? साफ साफ दर्ज है. तब फिर किसी जज को जैसे ही उसके पद से हटाने की बात भारत में शुरू होती है, यह महाभियोग का शोर क्यों मचने लगता है? स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में जस्टिस एस एन ढींगरा ने समझाया. “दरअसल यह संविधान में एकदम विस्तृत रूप में लिखा है. अब संविधान भारत के आमजन ने तो पढ़ा नहीं है. आमजन की छोड़िये अच्छे-अच्छे उच्च शिक्षितों ने भी अपना संविधान नहीं पढ़ा होगा. इसलिए लोगों को जानकारी भी कैसे हो या कैसे फर्क पता चले कि महाभियोग और रिमूवल का क्या और कैसे कहां इस्तेमाल होता है? दोनो में क्या फर्क है? हां इतना जरूर है कि जरूरत पड़ने पर विषम परिस्थितियों में देश के राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के हटाने के लिए जिस तरह से महाभियोग की पूरी प्रक्रिया है. ठीक उसी तरह से संविधान में उल्लिखित किसी जज को हटाने के लिए रिमूवल प्रक्रिया भी होती है. मतलब महाभियोग और रिमूवल प्रक्रिया है तो समान ही. मगर इन दोनो शब्दों का इस्तेमाल मगर अलग-अलग तरीके से किया जाता है. मतलब साफ है कि जज को उसके पद से हटाने की प्रक्रिया संविधान के मुताबिक रिमूवल है न कि महाभियोग.”
अब तक कोई जज नहीं हटाया जा सका
संविधान में मौजूद महाभियोग और रिमूवल की विस्तृत व्याख्या पर प्रकाश डालते हुए पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा आगे कहते हैं, “जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ तो रिमूवल (जिसे देश में गफलत में उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही माना कहा जा रहा है) की कार्यवाही अभी हाल ही में शुरू हुई है. वह अभी अपने शैशवकाल में ही है. यह रिमूवल प्रक्रिया अपने अंत तक पहुंचेगी भी या नहीं. जस्टिस यशवंत वर्मा इस प्रक्रिया के चलते पद से हट भी पाएंगे या नहीं. यह सब भी फिलहाल भविष्य के गर्भ में ही है. हां, इतना जरूर मुझे पता है कि अब तक आजाद भारत देश में 5 न्यायाधीशों के खिलाफ रिमूवल की प्रक्रिया अमल में लाई गई थी. और उन पांच में से एक भी न्यायाधीश को उसके पद से नहीं हटाया जा सका.
5 जज जिनके खिलाफ रिमूवल कार्यवाही ‘निर्रथक’
हाल ही में अगर किसी न्यायाधीश के खिलाफ रिमूवल की कार्यवाही शुरू होने का जिक्र करुं तो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ ही यह कार्यवाही शुरू हुई थी. जब जस्टिस दीपक मिश्रा को नोटिस दिया गया तो हमारी राज्यसभा के अध्यक्ष (भारत के उप-राष्ट्रपति) ने ही जांच करके कह दिया कि, जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ रिमूवल की कार्यवाही बनती ही नहीं है. सबसे पहले अगर देश के किसी न्यायाधीश के खिलाफ रिमूवल प्रक्रिया अमल में लाए जाने का मुझे ध्यान आ रहा है तो वह थे पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वीरामास्वामी रामास्वामी (12 नवंबर 1987 से 6 अक्टूबर 1989 तक). मूलत: तो वह मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे. उन्हें मगर साल 1987 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया था.
कांग्रेस ने न्यायमूर्ति वीरामास्वामी को बचा लिया
पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रहते हुए उनके ऊपर आर्थिक घोटाले-भ्रष्टाचार का आरोप लगा था. सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने आरोप सही पाए. तब उनके खिलाफ रिमूवल प्रक्रिया शुरू हुई चली. जब संसद में उनके खिलाफ रिमूवल प्रक्रिया पर मतदान का वक्त आया तो, उस वक्त देश में कांग्रेस की सरकार थी. दक्षिण भारत के राज्यों में भी तब कांग्रेसी हुकूमत का दौर था. लिहाजा उस वोटिंग में दक्षिण भारत के सांसदों ने न्यायमूर्ति वीरामास्वामी रामास्वामी के खिलाफ मतदान नहीं किया. कांग्रेसी सांसद तो सदन में मौजूद रहे मगर उन्होंने न्यायमूर्ति वीरामास्वामी स्वामी के खिलाफ रिमूवल के लिए हो रही मतदान प्रक्रिया में हिस्सा ही नहीं लिया. और ऐसे न्यायामूर्ति वीरामास्वामी स्वामी रिमूवल में फंसने से कोरे बच गए.
एक अड़ंगा यह भी आकर फंसता है
किस तरह रिमूवल की कार्यवाही संसद में सफल होती है? पूछे जाने पर दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश शिव नारायण ढींगरा बोले, “संसद में जो सदस्य मौजूद होते हैं रिमूवल प्रक्रिया को कामयाब करने के लिए उन उपस्थित सदस्यों का दो तिहाई बहुमत मिलना जरूरी होता है. दूसरे, जितने भी मत किसी जज को हटाने की प्रक्रिया में पड़ते हैं वह संख्या, संसद के कुल सदस्यों की पचास प्रतिशत संख्या से भी ऊपर ही होने चाहिए. तभी किसी जज को उसके पद से रिमूवल की प्रक्रिया पूरी मानी जाती है. मुझे लगता है कि महाभियोग और रिमूवल के बीच का फर्क आज की मीडिया को भी नहीं पता होगा. सच्चाई यह है कि संसद में हुए मतदान पर निर्भर होता है कि, रिमूवल प्रक्रिया सफल होगी या असफल.”
भ्रष्टाचार का इससे बड़ा मामला नहीं देखा
बाकी तीन न्यायाधीशों में एक सौमित्र सेन थे. और दो के नाम मुझे याद नहीं आ रहे हैं. वे तीनों भी किसी न किसी तरह से रिमूवल की प्रक्रिया से बच ही गए. रिमूवल की प्रक्रिया इतनी पेचीदा और कठिन है कि उसे अंजाम तक लाकर, किसी जज को भारत में उसके पद से हटा पाना टेढ़ी खीर है. और यह अंदर की बात हर वह जज बेहतर तरीके से जानता है कि, अगर उसके खिलाफ रिमूवल प्रक्रिया शुरू हो भी गई तो चिंता की कोई बात नहीं, संसद में जाकर तो यह रिमूबल प्रक्रिया औंधे मुंह गिरने की पूरी-पूरी उम्मीद रहती ही है. वैसे मैं कहना चाहूंगा कि जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले से बरामद संदिग्ध नोट कांड से बड़ा भारतीय न्यायिक सेवा में भ्रष्टाचार का और कोई दूसरा नमूना मैंने अब तक नहीं देखा. जिसमें न्यायाधीश के सरकारी बंगले के स्टोर रूम से इतने नोट मिले हों. तमाम गवाह मौजूद हों. उसके बाद भी जज साहब कहें कि उन्हें नहीं पता वे नोट उनके सरकारी बंगले के भीतर क्यों कैसे और कब पहुंचे किसने पहुंचाए?”