अकाउंट में गलती से आई ज्यादा सैलरी, जारी रखना चाहता था कर्मचारी, हाई कोर्ट ने कहा- गलती दोहराई नहीं जाती साहब
J&K High Court: सरकारी कर्मचारियों के अकाउंट में गलती से ज्यादा रकम सैलरी के रूप में पहुंच गई थी. इसके बाद उन्होंने उसी वेतन को बरकार रखने की मांग की. इस संबंध में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने कहा, यदि किसी कर्मचारी को गलती से ज्यादा सैलरी मिल गई हो, तो उससे वह पैसा वापस नहीं लिया जा सकता. लेकिन सरकार अपनी गलती सुधार सकती है.;
J&K High Court: जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि यदि किसी कर्मचारी को गलती से ज्यादा सैलरी मिल गई हो, तो उससे वह पैसा वापस नहीं लिया जा सकता. हालांकि कर्मचारी भविष्य में गलती से आई ज्यादा सैलरी की मांग को जारी करने के लिए नहीं बोल सकता. एक व्यक्ति ने याचिका दायर की थी कि मुझे धोखे से ज्यादा वेतन मिला था. अब सरकार ने उसे कम कर दिया. इसलिए वह मदद के लिए कोर्ट पहुंचा था.
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार ने दलील दी कि व्यक्ति के अकाउंट में गलती से ज्यादा अमाउंट चला गया था, लेकिन हर बर वह सैलरी कम कैसे दे सकते हैं. इस मामले पर जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस पुनीत गुप्ता की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की बात सही है कि बिना धोखाधड़ी के गलती से मिले पैसे की वसूली नहीं की जा सकती, लेकिन सरकार को यह अधिकार है कि वह गलती सुधारते हुए वेतन दोबारा तय कर सकती है.
क्या है मामला?
सरकार की ओर से दलील दी गई कि यह लाभ पुराने नियम (SRO 59 of 1990) के तहत दिया गया था, जिसे 1996 में ही रद्द कर दिया गया था. कर्मचारी ने कहा था कि अगर वे लाभ लेने के पात्र नहीं पाए गए, तो वे उसे वापस करेंगे. अदालत को पता चला कि यह गलती से हुआ था. ट्रिब्यूनल ने कहा, वेतन में सुधार किया जा सकता है, लेकिन जो रकम पहले ही दी जा चुकी है, वह रिटायर होने वाले कर्मचारियों से वापस नहीं ली जा सकती.
हाई कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखा. सरकार वेतन को सही कर सकती है, लेकिन पूर्व में दिए गए पैसे की वसूली नहीं कर सकती. अदालत ने कहा कि गलती सुधार सकते हैं , लेकिन इससे कर्मचारियों को परेशानी नहीं होनी चाहिए.
भूमि विवाद पर सुनवाई
जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने भूमि विवाद पर सुनवाई की और कहा, जहां किसी केस में कब्जे के अधिकार का दावा किया जाता है. विवाद होता है और इसे कृषि सुधार अधिनियम के तहत नियुक्त अधिकारी दिया जाता है तो सिविल कोर्ट को ऐसे मामले निपटारा करने से रोक सकते हैं. इस मामले याचिकाकर्ता ने कहा था कि अधिनियम की गलत व्याख्या की गई और इसलिए वर्तमान हाई कोर्ट यह फैसला लिया.