सीनियर एम्प्लॉई के मैम न कहने पर भड़की कंपनी की सीईओ, सबके सामने दी सजा
एक रेडिट यूजर द्वारा शेयर किए पोस्ट में सामने आया है कि एक सीनियर एम्प्लॉई को अपनी सीईओ का नाम लेना भारी पड़ गया जिसकी वजह से उसे सबके सामने सजा मिली है. जिसके बाद कई यूजर्स सीईओ की इस हरकत पर भड़क गए हैं.;
आज के समय में टॉक्सिक वर्क एनवायरनमेंट में काम करना आम बात हैं. लेकिन कई लोगों को इसका शारीरिक और मानसिक तौर से बुरा नतीजा भुगतना पड़ता है. इसका एक हालिया उदाहरण एक रेडिट यूजर्स देखने को मिला है. जहां एक सीनियर एम्प्लॉई ने अपने सीईओ को मैम न कहकर उसके नाम से बुलाया. जिसके लिए उस एम्प्लॉई को सजा दी गई.
रेडिट पोस्ट के अनुसार, सजा के तौर पर सीईओ ने कर्मचारी को एक कागज पर 100 बार 'मैं तुम्हें तुम्हारे नाम से नहीं बुलाऊंगी' लिखने का आदेश दिया, ठीक वैसे ही जैसे स्कूल में छोटे बच्चों को गलती करने पर ऐसी सजा दी जाती थी. हालांकि मामला किस कंपनी का इसकी जानकारी नहीं है क्योंकि पोस्ट को शेयर करने के बाद डीलीट कर दिया गया है. वहीं यूजर्स का कई तीखे कॉमेंटस पड़े हैं.
फॉर्मल बेहेवियर सीईओ का गुस्सा
पोस्ट में कंपनी में काम करने वाले एक दोस्त से जुड़ी घटना का जिक्र किया गया है और इसे परेशान करने वाला बताया गया है. उसके दोस्त ने मैसेज किया, 'तुम्हें यकीन नहीं होगा कि आज मेरे सीनियर के साथ क्या हुआ?. उसने बताया कि सीईओ ने फॉर्मल बिहेवियर करने की उसकी मांग को पूरा करने के लिए बहुत सारे कदम उठाए.'
उम्मीद से बहार थी सजा
हालांकि सीनियर ने सीईओ को एक साल से भी ज़्यादा समय तक नाम से पुकारा था, लेकिन यह सज़ा उम्मीद से बाहर थी. पोस्ट में आगे लिखा है, 'सीईओ ने मेरी सीनियर आज सजा देने का फैसला किया जबकि वह इतनी सी बात के लिए पर्सनली भी बोल सकती थी. लेकिन उसने ऐसा न करते हुए उसे पेपर पर 100 बार 'मैं तुम्हें तुम्हारे नाम से नहीं बुलाऊंगी' लिखवाते हुए सभी ग्रुप में शेयर करने को कहा.'
यूजर्स का रिएक्शन
अब सीईओ की इस हरकत कई रेडिट यूजर्स भड़के हैं. एक ने कहा, 'मैं तुम्हारे सीनियर की जगह होता तो "आई क्विट" लिखा होता.' दूसरे ने कहा, 'वह मूर्ख है, वह कंपनी छोड़ने के 100 बेहतरीन कारण लिख सकता था और लिंक्डइन पर कंपनी के नाम के साथ इसे जोड़ सकता था, वह यहां सिर्फ अपनी भड़ास निकालने के लिए आया है.' एक अन्य ने कहा, 'आईटीईएस कंपनियों और एक्सपोर्ट से जुड़ी अन्य कंपनियों के लोगों के प्रभाव के कारण, बहुत से लोग अपने सीनियर्स को भी उनके पहले नाम से ही बुलाया करते हैं. लेकिन बाबूगिरी के दौर में जीने वाले कई चाचा-चाचियों को यह पसंद नहीं है. इसलिए मैं सावधान रहता हूँ और देखता हूँ कि हर व्यक्ति को कैसे बुलाया जा रहा है. मैं एक बहुत सीनियर पर्सन को उसके नाम से बुलाता था क्योंकि मैंने देखा कि उसे इससे कोई परेशानी नहीं थी जबकि मैं उससे कई जूनियर लोगों के सामने उनका नाम लेते हुए सर या मैडम कहता था.'