श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामला, 5 नवंबर को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में फैसला सुनाते हुए मुस्लिम पक्ष द्वारा दाखिल रिकॉल अर्जी को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने 16 अक्टूबर को सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.;
श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में 5 नवंबर को सुनवाई होगी. यह सुनवाई ईदगाह कमेटी की ओर से दायर 3 याचिकाओं पर होगी. दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष द्वारा दायर मुकदमे को सुनवाई लायक माना था, पहली याचिका दायर कर मुस्लिम पक्ष ने इसी फैसले को चुनौती दी है.
दूसरी याचिका में मुस्लिम पक्ष ने मथुरा की निचली अदालत में चल रहे सभी मुकदमों को हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. साथ ही तीसरी याचिका में मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 11 जनवरी 2024 को दिए फैसले को चुनौती दी है जिसमें हाईकोर्ट ने 15 मुकदमों को एक साथ सुनवाई के लिए क्लब कर दिया था.
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि सभी मुकदमों में अलग-अलग मुद्दे उठाए गए हैं, इसलिए इन्हें अलग-अलग सुना जाना चाहिए.
बता दें, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में फैसला सुनाते हुए मुस्लिम पक्ष द्वारा दाखिल रिकॉल अर्जी को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने 16 अक्टूबर को सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
जानें क्या है विवाद?
इस विवाद की शुरुआत 350 साल पहले औरंगज़ेब के शासनकाल में हुई थी. हिंदू पक्ष का दावा है कि औरंगज़ेब ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बने केशवनाथ मंदिर को तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद बनवाई थी. वहीं, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि शाही ईदगाह मस्जिद के निर्माण के पीछे मंदिर को तोड़ने का कोई सबूत नहीं है.
औरंगजेब ने तुड़वाया था मंदिर
1670 में औरंगजेब ने मथुरा की श्रीकृष्ण जन्म स्थान को तोड़ने का आदेश दिया था, जिसके बाद यहां शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई. बताया जाता है कि रमजान महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को नष्ट किया गया था. इस मंदिर पर लगभग 100 साल तक हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित रहा था. 1770 के मुगल-मराठा युद्ध में मराठों की जीत हुई और उन्होंने इस मंदिर को बनवाया. तब इसका नाम केशवदेव मंदिर हुआ करता था.
इस दौरान भूकंप की वजह से मंदिर को नुकसान पहुंचा तो 1815 में अंग्रेजों ने जमीन को नीलाम कर दिया, जिसे काशी के राजा ने खरीद लिया लेकिन वह मंदिर नहीं बनवा सके. 1944 में ये जमीन मशहूर उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने खरीद ली. इसके बाद देश आजाद हुआ और 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना जिसे ये जमीन दे दी गई.
1953 में ट्रस्ट के पैसे से मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और 1958 में मंदिर बनकर तैयार हुआ. फिर 1958 में ही श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान नामक एक संस्था बनी जिसने 1968 में मुस्लिम पक्ष के साथ एक समझौता किया. जिसमें कहा गया कि जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहेंगे. श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट इस समझौते को नहीं मानता है.