75 की उम्र में रिटायर हों नेता? मोहन भागवत के बयान पर क्यों छिड़ी बहस, विपक्ष का सवाल - क्या PM मोदी देंगे इस्तीफा!
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कहा था कि देश के नेताओं को 75 साल की उम्र में खुद ही रिटायर हो जाना चाहिए. उनके इस बयान ने देश की राजनीति में 'उम्र की सीमा' को लेकर नई बहस को नए सिरे से जन्म दे दिया है. खासकर ऐसे समय में जब कई दिग्गज नेता इस उम्र के पार हैं. आइए जानते हैं इस बयान का सियासी मतलब और इसको लेकर उठते सवाल.;
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने 10 जुलाई को नागपुर में दिवंगत आरएसएस विचारक मोरोपंत पिंगले को समर्पित एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान जो कहा, वो अब भारतीय राजनीति में बड़ी बहस का मुद्दा बन गया है. उन्होंने कहा तो बस इतना ही कि हर किसी को तय उम्र पर रिटायर हो जाना चाहिए, जैसे 75 साल के बाद राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए. अब उनके इस बयान के कई राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं.
विपक्ष के नेता आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के 75 साल की उम्र में संन्यास लेने संबंधी बयान को लेकर यह पूछने लगे हैं कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर अमल करेंगे.
पिंगले को याद कर संघ प्रमुख ने कहा...
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में एक पुस्तक विमोचन समारोह में कहा, "नेता के लिए 75 साल होने का मतलब है कि आपको राजनीति छोड़ देना चाहिए. दूसरों के लिए रास्ता बनाना चाहिए."
इसके अलावा, मोहन भागवत ने आरएसएस विचारक मोरोपंत पिंगले को याद करते हुए कहा कि उनका स्वभाव बहुत ही विनोदी था. उन्होंने आगे कहा, "इस दुनिया को अलविदा कहने से पले पिंगले ने एक बार कहा था कि अगर 75 साल की उम्र के बाद आपको शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया जाता है, तो इसका मतलब है कि अब आपको रुक जाना चाहिए, आप बूढ़े हो गए हैं, एक तरफ हट जाइए और दूसरों को आने दीजिए."
मोहन भागवत ने ये भी कहा कि पिंगले राष्ट्र सेवा के प्रति अपनी निष्ठा के बावजूद, ज्यादा उम्र का मिलते ही शालीनता से पीछे हट जाने में विश्वास करते थे. अब उनकी इस टिप्पणी को कई लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक अप्रत्यक्ष संदेश माना है, जिससे भारतीय राजनीति में बहस छिड़ गई है.
पीएम खुद पर लागू करेंगे ये नियम - संजय राउत
शिवसेना (यूबीटी) के राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने तत्काल रिएक्शन देते हुए कहा, "प्रधानमंत्री मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और जसवंत सिंह जैसे नेताओं को 75 साल की उम्र के बाद सेवानिवृत्त होने के लिए मजबूर किया. देखते हैं कि क्या वह अब खुद पर भी यही नियम लागू करते हैं?"
शिवसेना सांसद संजय राउत ने पहले दावा किया था कि इस साल मार्च में नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में मोदी की यात्रा (जो एक दशक से भी ज्यादा समय में उनकी पहली यात्रा थी) उनके संभावित सेवानिवृत्ति पर चर्चा के लिए ही थी. उस समय बीजेपी ने इसका खंडन करते हुए कहा था कि यह यात्रा एक नियमित यात्रा थी और ऐसी किसी घोषणा से इसका कोई संबंध नहीं है.
बिना अनुभव के उपदेश देना खतरनाक - अभिषेक मनु सिंघवी
कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, "बिना अभ्यास के उपदेश देना हमेशा खतरनाक होता है. यह सिद्धांतहीन है कि मार्गदर्शक मंडल को 75 साल की आयु सीमा लागू करते हुए अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई, लेकिन संकेत स्पष्ट है कि वर्तमान व्यवस्था को इस नियम से छूट दी जाएगी."
बीजेपी के संविधान में रिटायरमेंट का जिक्र नहीं - अमित शाह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मई 2023 में पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा के संविधान में सेवानिवृत्ति का कोई प्रावधान नहीं है. उन्होंने कहा, "मोदी जी 2029 तक नेतृत्व करते रहेंगे. सेवानिवृत्ति की अफवाहों में कोई सच्चाई नहीं है. भारतीय जनता पार्टी झूठ बोलकर आगामी चुनाव नहीं जीतेगी."
खुद के रिटायरमेंट पर दिया ये बयान
यहां पर इस बात का भी जिक्र कर दें कि मोहन भागवत का उम्र को लेकर बयान आने के बाद अमित शाह ने नेताओं के सेवानिवृत्ति के बाद की अपनी आकांक्षाओं के बारे में बात की थी. उन्होंने कहा, "मैं अपना समय वेदों, उपनिषदों और जैविक खेती को समर्पित करना चाहूंगा." हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि वह कब सेवानिवृत्त होने वाले हैं. अमित शाह अप्रैल में 60 वर्ष के हो गए.
भागवत मोदी से हैं सिर्फ 6 दिन बड़े
यह भी एक संयोग ही है कि मोहन भागवत और पीएम नरेंद्र मोदी एक ही साल यानी 1950 में ही पैदा हुए. भागवत मोदी से सिर्फ छह दिन बड़े हैं. भागवत का जन्म 11 तारीख को और मोदी का जन्म छह दिन 17 तारीख है.
मोदी पर लागू नहीं होता भागवत का बयान - डॉ. श्रीनिवास
वरिष्ठ अर्थशास्त्री और नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. श्रीनिवास खंडेवाले का कहना है कि मोहन भागवत का बयान काफी अहम है. आरएसएस प्रमुख के लिए कोई आयु सीमा नहीं है, जब तक कि वह स्वेच्छा से पद न छोड़ दें, लेकिन मोदी के मामले में सेवानिवृत्ति का मानदंड भाजपा ने ही तय किया था.
आरएसएस पर नजर रखने वाले और पूर्व स्वयंसेवक दिलीप देवधर ने किसी भी नेता के पद छोड़ने की संभावना को खारिज कर दिया. उन्होंने एक बैठक का हवाला देते हुए कहा, "यह बहस फीकी पड़ जाएगी. भागवत ने पांच साल पहले स्पष्ट किया था कि मोदी 75 साल के मानदंड के अपवाद होंगे. उन्होंने कुछ स्तंभकारों से एक बैठक का हवाला देते हुए कहा, "अपवाद नियम को सिद्ध करता है."
आरएसएस में किसने कब छोड़ा पद?
हालांकि, देवधर ने तर्क दिया था कि भागवत के बयान को आरएसएस द्वारा भाजपा पर अपनी पकड़ और मजबूत करने के प्रयास के रूप में भी देखा जाना चाहिए. नाम न छापने की शर्त पर बोलते हुए एक वरिष्ठ आरएसएस स्वयंसेवक ने भागवत के पद न छोड़ने पर देवधर की भावना को दोहराया. "संघ में एक परंपरा है. कोई भी सरसंघचालक शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने पर ही पद छोड़ता है. बालासाहेब देवरस, रज्जू भैया और के.एस. सुदर्शन, सभी ने गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के कारण ही पद छोड़ा था. रज्जू भैया और सुदर्शन दोनों ने 78 वर्ष की आयु में अपने खराब स्वास्थ्य के कारण सेवानिवृत्ति की घोषणा की थी. जबकि तीसरे सरसंघचालक बालासाहेब देवरस 1994 तक 79 वर्ष की आयु तक आरएसएस प्रमुख रहे. जब उन्होंने बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण औपचारिक रूप से पद छोड़ दिया और रज्जू भैया को अपना उत्तराधिकारी बनाया। यहां, भागवत और मोदी दोनों शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं और प्रभावी ढंग से सेवा जारी रख रहे हैं."
आरएसएस-बीजेपी में सत्ता संघर्ष का संकेत
नाम न छापने की शर्त पर एक भाजपा नेता ने कहा कि यह टिप्पणी 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले आरएसएस और भाजपा के बीच सत्ता संघर्ष का संकेत हो सकती है. इस व्यक्ति ने कहा कि इससे संकेत मिलता है कि भाजपा और आरएसएस अभी भी अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं और एक पहलू जहां यह एक प्रमुख कारक था. वह था भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा?
भागवत की टिप्पणी संघ की आंतरिक सोच में बदलाव का संकेत देती है या केवल मोरोपंत पिंगले की विरासत को श्रद्धांजलि है, यह देखना बाकी है, लेकिन इसने निश्चित रूप से राजनीतिक अटकलों का एक नया दौर शुरू कर दिया है. भागवत और मोदी दोनों ही कुछ महीनों में एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच रहे हैं.
क्या भाजपा 2014 में बनाई अपनी नीति पर कायम रहेगी?
यह पहली बार नहीं है जब RSS ने उम्र सीमा को लेकर संकेत दिए हों. साल 2014 में भाजपा ने भी अपने स्तर पर '75 पार, आराम यार' की नीति अपनाई थी, जिसके तहत लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं को 'मार्गदर्शक मंडल' में भेज दिया गया था, लेकिन अब जब नरेंद्र मोदी खुद 74 के करीब पहुंच रहे हैं, तो भागवत के बयान को भाजपा के भीतर ही बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा रहा है.
मोहन भागवत का यह बयान सिर्फ उम्र की बात नहीं है, यह सत्ता, रणनीति और नेतृत्व के हस्तांतरण की ओर संकेत करता है. भारतीय राजनीति में अब यह सवाल है कि क्या 2029 में मोदी नहीं होंगे? क्या भाजपा अपने ही बनाए नियम पर अब भी कायम रहेगी? और क्या यह बयान नेतृत्व बदलाव की शुरुआती घंटी है?