महाराष्ट्र-झारखंड में BJP को RSS का साथ? हरियाणा के रास्ते पहले ही कम हो चुकी है दूरियां
BJP-RSS: हरियाणा में आरएसएस ने बैकडोर से मदद कर भाजपा को उन जगहों पर बढ़त दिलाने में मदद की, जहां वह पिछड़ रही थी. दोनों की ओर से हाल ही में दिए गए बयानों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोकसभा के नतीजे किस तरह आंखें खोलने वाले साबित हुए.;
BJP-RSS: हरियाणा में बीजेपी की शानदार जीत ने सभी को हैरान कर दिया, लेकिन ये सब आरएसएस के बिना संभव नहीं था. बीजेपी ने उस जीत पर भी जीत दर्ज की जहां वह पिछड़ रही थी. ऐतिहासिक जीत ने आरएसएस के साथ उसके रिश्तों में आई दरार को भरने का काम किया है. इस चुनाव के जरिए एक बार फिर से भाजपा और आरएसएस की अपनी परस्पर निर्भरता को साबित कर दिया है. ऐसे में इसका जादू एक बार फिर से आने वाले विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है, खासकर झारखंड में.
उत्तर प्रदेश के मथुरा में पिछले हफ़्ते हुए संघ की बैठक के दौरान आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने जोर देकर कहा कि संघ और बीजेपी के बीच सब ठीक है. दोनों के बीच तनाव लोकसभा चुनाव के दौरान देखने को मिली थी, जब जेपी नड्डा ने कहा था कि बीजेपी को अपने काम चलाने के लिए आरएसएस की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब वह अपने आप में सक्षम है. हालांकि, भाजपा नेता इस बात पर जोर देते हैं कि जमीनी स्तर पर पार्टी और संघ के कार्यकर्ताओं के बीच कभी कोई तनाव नहीं रहा.
दूरियां हुई कम तो हरियाणा में मिली जीत!
लगातार हो रही घटनाओं पर हम ध्यान दें तो हमें दोनों के बीच कम होती दूरियां और आगे की प्लानिंग का अंदाजा लगा सकते हैं. हरियाणा की जीत इस बात का प्रमाण है कि उसका संगठन और नेटवर्क अभी भी चुनाव को पलट सकता है. फिर भी कुछ खामियों को दूर करने की आवश्यकता है. यह कई चर्चाओं के दौरान किया गया था, जिसमें रांची और पलक्कड़ में हाल ही में आरएसएस की बैठकों और दिल्ली में भी चर्चा शामिल थी.
'दोनों संगठनों के बीच नहीं था वैचारिक मतभेद'
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों संगठनों के बीच कभी भी वैचारिक मतभेद नहीं था, केवल काम कर करने की प्रक्रिया में कठिनाइयां थी, जिसे सुलझाया जा रहा है. रिपोर्ट में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख योजनाओं की निगरानी केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सौंपने का निर्णय और अगले भाजपा अध्यक्ष के लिए सबसे आगे रहने वालों में से एक उसी अभ्यास का हिस्सा है, क्योंकि उन्हें आरएसएस का पसंदीदा माना जाता है.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के विजयादशमी संबोधन के तुरंत बाद पीएम मोदी की पोस्ट में भी संकेत देखे जा रहे हैं, जिसमें लोगों से उनके उठाए गए महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान देने का आग्रह किया गया था. हरियाणा में आरएसएस के छोटे पैमाने पर नेटवर्किंग, सामाजिक संपर्क और छोटी-छोटी सभाओं के पारंपरिक तरीकों ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी है और संविधान बदलने वाले नैरेटिव को भी बदल दिया. एक भाजपा नेता ने कहा कि कई लोग खुद वोट देने नहीं निकले. समाधान यह था कि उन्हें प्रचार और वोट के लिए बाहर निकाला जाए और आरएसएस के स्वयंसेवकों ने इसमें मदद की.
महाराष्ट्र में चल रही है खास प्लानिंग
भाजपा को उम्मीद है कि वह महाराष्ट्र में मराठों और मुसलमानों पर महा विकास अघाड़ी के फोकस का मुकाबला करने के लिए ओबीसी समूहों और एससी/एसटी समुदायों को भी इसी तरह एकजुट करेगी. इसलिए अगर कांग्रेस के पास महार समुदाय के बीच बड़ा समर्थन आधार है तो आरएसएस ने मातंग जाति समूहों के साथ बातचीत की है.
एससी कोटा के उप-वर्गीकरण पर चर्चा करने के लिए एकनाथ शिंदे सरकार के एक समिति नियुक्त करने का कदम कथित तौर पर आरएसएस के दबाव डालने के बाद उठाया गया था. माना जाता है कि एससी समुदायों के उप-वर्गीकरण पर निर्णय ने हरियाणा में भी भाजपा की मदद की है.
झारखंड में BJP-RSS का मास्टरस्ट्रोक
दूसरे चुनावी राज्य झारखंड में आदिवासियों के बीच अपने काम के कारण आरएसएस का एक मजबूत आधार है और उसने आदिवासी बहुल क्षेत्रों में अपने स्वयंसेवकों को छोटी-छोटी इकाइयों में संगठित किया है. ये प्रयास लोकसभा चुनावों से स्थिति को उलटने का है, जब भाजपा झारखंड में सभी पांच आदिवासी बहुल सीटों पर हार गई थी.
आरएसएस जिन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, उनमें से एक संताल परगना है, जो झामुमो का गढ़ है. यहां भाजपा का अभियान कथित बांग्लादेशी घुसपै पर केंद्रित है, जो आदिवासियों की संख्या को कम कर रहा है. संघ इस अभियान को सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से इसे बढ़ा रहा है.