देश में पहले भी होते रहे हैं एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव, क्या इस बार बनेगी बात?

One Nation One Election: केंद्र सरकार एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक इस सत्र में या अगले सत्र में संसद में पेश कर सकती है. उसके बाद इस विधेयक को जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाएगा. देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव पहले भी होते रहे हैं. आइए, इस बारे में विस्तार से जानते हैं...;

One Nation One Election
By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 9 Dec 2024 7:58 PM IST

One Nation One Election (ONOE): 'एक देश एक चुनाव' यानी 'वन नेशन वन इलेक्शन' विधेयक को केंद्र सरकार शीतकालीन सत्र या बजट सत्र के दौरान संसद में पेश कर सकती है. इस बिल को संयुक्त संसदीय जांच समिति यानी जेपीसी के पास भेजा जा सकता है. 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर गठित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की कमेटी की रिपोर्ट को कैबिनेट पहले ही मंजूरी दे चुकी है.

केंद्र सरकार चाहती है कि 'वन नेशन वन इलेक्शन' बिल पर सभी दलों की सहमति बने. इसके अलावा, सभी हितधारकों से भी विस्तृत चर्चा की जाए. जेपीसी सभी दलों के प्रतिनिधियों से चर्चा करेगी.  सभी राज्य विधानसभाओं के स्पीकरों को भी बुलाया जा सकता है. इसके अलावा, देश के बुद्धिजीवियों और आम लोगों की भी राय इसमें ली जाएगी.

कोविंद कमेटी ने 62 राजनीतिक दलों से किया संपर्क

'वन नेशन वन इलेक्शन' पर गठित कोविंद कमेटी ने देश भर के 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया. इनमें से 32 दलों ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया. वहीं, 15 दलों ने कोई जवाब नहीं दिया. कोविंद कमेटी का गठन 2 सितंबर 2023 को हुआ था.

बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में किया जिक्र

बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 में जारी किए गए अपने घोषणा पत्र में भी 'वन नेशन वन इलेक्शन' का जिक्र किया था. बीजेपी ने यह वादा किया था कि वह कोविंद कमेटी की सिफारिशों को लागू करेगी. इसी साल 15 अगस्त को लाल किले से देशवासियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक देश एक चुनाव' के लिए सभी लोगों से आगे आने की अपील की. उन्होंने कहा कि बार-बार चुनाव होने से देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है.

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देश में कैसे लागू होगा 'वन नेशन वन इलेक्शन'?

'वन नेशन वन इलेक्शन' के लिए केंद्र सरकार को सबसे पहले संसद में बिल पेश करना होगा. इस बिल के जरिए संविधान में संशोधन करना होगा. बिल को पास होने के लिए दो तिहाई सदस्यों का समर्थन जरूरी है. यानी लोकसभा में बिल को पास करने के लिए 362 और राज्यसभा में 163 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी. इसके बाद इस बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा से पारित करवाना होगा. इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये बिल कानून का रूप धारण करेंगे.

'वन नेशन वन इलेक्शन' के लिए संविधान में कौन-कौन से संशोधन होंगे?

'वन नेशन वन इलेक्शन' के लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85,172,174 और 356 में संधोधन किए जाएंगे. अनुच्छेद 83 के मुताबिक लोकसभा का कार्यकाल पांच साल तक रहेगा. अनुच्छेद 83 (2) के मुताबिक, कार्यकाल को एक बार में सिर्फ एक साल तक बढ़ाया जा सकता है. अनुच्छेद 85 के मुताबिक, राष्ट्रपति समय से पहले लोकसभा भंग कर सकते हैं. वहीं, अनुच्छेद 172 में विधानसभा का कार्यकाल पांच साल तय किया गया है. इसे एक साल के लिए बढ़ाया भी जा सकता है. वहीं, अनुच्छेद 174 ने राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार दिया है, जबकि अनुच्छेद 356 के मुताबिक, राज्यपाल की सिफारिश पर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है.

कोविंद कमेटी ने क्या प्रस्ताव दिया है?

रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने इसी साल मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में कई प्रस्ताव दिए गए हैं. जैसे- सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाया जाए, पहले फेज में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ हों, दूसरे फेज में शहरी और ग्रामीण निकाय चुनाव कराए जाएं, सभी चुनावों के लिए कॉमन इलेक्टोरल रोल तैयार हो, बहुमत न मिलने पर या अविश्वास प्रस्ताव पास होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराना और एक साथ चुनाव कराने के लिए जरूरी उपकरणों , जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग करना.

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर क्या है बड़ी चुनौती?

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर सबसे बड़ी चुनौती सदन में दो तिहाई बहुमत की है. कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने एक बार कहा था कि बीजेपी को लोकसभा में बिल पास कराने के लिए 361 सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी, जबकि उनके पास 293 सांसद हैं. उन्होंने कहा कि सरकार कहती है कि हम इसके जरिए चुनाव में होने वाले खर्चों को कम करेंगे, लेकिन बड़ी संख्या में वीवीपैट और ईवीएम के निर्माण पर क्या खर्च नहीं आएगा.

आखिरी बार कब एक साथ हुए थे लोकसभा और विधानसभा के चुनाव?

बता दें कि देश में 1951-52 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे. हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ राज्यों की विधानसभाओं को समय से पहले भंग कर दिया गया, जिससे एक साथ चुनाव कराने का क्रम टूट गया. इसके बाद, 1970 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा को समय से पहले ही भंग कर दिया था. इससे अधिकांश राज्यों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होने लगे. हालांकि, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और सिक्किम में लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव होते हैं.

'वन नेशन वन इलेक्शन' का विचार सबसे पहले कब आया?

'वन नेशन वन इलेक्शन' का विचार सबसे पहले 1983 में आया. उस समय चुनाव आयोग ने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार को एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का सुझाव दिया था. हालांकि, इंदिरा सरकार ने आयोग के इस फैसले को नहीं माना.

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