मिड-डे मील में अंडे के लिए फंड नहीं, महाराष्ट्र सरकार बोली - स्कूल खुद करे जुगाड़!
महाराष्ट्र सरकार ने मिडडे मील में अंडे और शुगर के लिए फंड देने से इनकार कर दिया है. अब स्कूलों से कहा गया है कि अगर बच्चों को अंडा देना है, तो खुद फंड जुटाएं.;
विकास की नई परिभाषा लिखने वाली महाराष्ट्र सरकार ने अब बच्चों के पोषण पर भी कैंची चला दी है. भाईसाहब, सरकार ने फैसला कर लिया है कि मिडडे मील में से अंडे और शुगर हटाए जाएंगे. हां, आपने सही सुना – बच्चों की प्लेट से वो अंडा जो उनकी हेल्थ के लिए ज़रूरी था, अब गायब होने वाला है.
पहले अंडा था, अब ठंडा है
सरकार ने नवंबर 2023 में बड़ी शान से कहा था कि हर बच्चे को एक हफ्ते में एक अंडा मिलेगा ताकि प्रोटीन की कमी पूरी हो सके. वाह, क्या दूरदर्शिता थी! लेकिन ज़रा ठहरिए, जैसे ही कुछ ‘संस्कारी संगठनों’ ने विरोध किया, सरकार ने यू-टर्न ले लिया. अब जहां 40% पैरेंट्स ने अंडे को 'ना' कहा, वहां स्कूलों को साफ मना कर दिया गया कि अंडे मत दो.
भाई, क्या अब पेरेंट्स ये भी डिसाइड करेंगे कि बच्चों के शरीर को प्रोटीन चाहिए या नहीं? और जो बच्चे अंडा नहीं खा सकते थे, उनके लिए फ्रूट्स का ऑप्शन था. लेकिन अब सरकार ने फ्रूट्स पर भी बजट काट दिया.
SMC बोले – पब्लिक से मांगो पैसा
अब स्कूलों से कहा गया है कि अगर बच्चों को अंडा देना है, तो पैसा खुद जुगाड़ करो. SMC (स्कूल मैनेजमेंट कमेटी) को पब्लिक से चंदा लेना होगा. मतलब, सरकारी स्कूल चलाओ और सरकारी काम भी खुद करो.
सरकार कहती है – 'राइस-कटोरी खाओ और खुश रहो.' लेकिन भाई, प्रोटीन कहां से आएगा? या फिर ये मान लिया है कि बच्चे बड़े होकर हवा खाकर बड़े होंगे?
साउथ के बच्चे खाएं, महाराष्ट्र के भूखें?
कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों को देखो. वहां सरकार बच्चों को हफ्ते में 5 दिन अंडे दे रही है. केरल ने तो 22.66 करोड़ अंडे का बजट भी पास कर दिया. और यहां? यहां ₹200 करोड़ सिर्फ स्कीम के विज्ञापन पर खर्च हो रहे हैं – लड़की बचाओ, लेकिन बच्चों को भूखा रखो.
शैलेश घरत, जो एक स्कूल कमेटी मेंबर हैं, ने बिल्कुल सही कहा – सरकार को विज्ञापनों पर पैसे उड़ाने हैं, लेकिन बच्चों की थाली भरने के लिए फंड नहीं है. और एक और मास्टर साहब बोले – पहले से स्कूल बिल्डिंग के लिए पैसा हम खुद जुटाते हैं. अब बच्चों को खाना खिलाने का खर्चा भी हमारे सिर डाल दिया है.
बच्चों की सेहत का क्या?
सरकार, ये बच्चे आपके भी हैं. मिडडे मील से कई बच्चों को उनकी डेली न्यूट्रिशन मिलती है. आपने उनका अंडा और शुगर छीन लिया, अब क्या उनसे खाने की प्लेट भी छीनने का प्लान है?
सरकार का ये कदम समझ से परे है. बच्चों के भविष्य और उनकी सेहत के साथ ऐसा खिलवाड़ मत करो. विकास चाहिए, लेकिन किस कीमत पर?