क्या मृत्यु के बाद भी जीवन संभव है? साइंटिस्ट ने किया 'तीसरी अवस्था' का खुलासा
जीवन और मृत्यु दो अलग चीजों के रूप में देखा जाता है. किसी भी जीव का विकास उसकी शुरूआत है जबकि अंत उसकी मृत्यु. लेकिन हाल में हुए रिसर्च ने इसके बीच की अवस्था को समझने का प्रयास किया है. कैसे एक डेड सेल मल्टीसेलुलर जीवन के रूप में बदल सकता है. इस खोज से मृत्यु और जीवन की सामान्य समझ पर एक नया नजरिया सामने आया है.;
जीवन और मृत्यु को हमेशा से दो अलग-अलग और विपरीत चीजों के रूप में देखा गया है. जीवन जहां एनर्जी, विकास और एक्टीविटी का साइन माना जाता है, वहीं मृत्यु को इसका अंत समझा जाता है. लेकिन हाल के कुछ वैज्ञानिक शोधों ने इस धारणा को चुनौती दी है और यह साबित किया है कि जीवन और मृत्यु के बीच एक और अवस्था हो सकती है, जिसे "तीसरी अवस्था" कहा जा रहा है. इस अवस्था में मृत कोशिकाएं (Dead Cells) एक नई तरह के बहुकोशिकीय (multicellular) जीवन के रूप में बदल सकती हैं. यह खोज जीवन और मृत्यु के बारे में हमारी पुरानी समझ को बदल रही है और सेल्स के व्यवहार पर नई रोशनी डाल रही है.
आमतौर पर हम यह मानते हैं कि किसी भी जीव के मरने के बाद उसकी सेल्स भी धीरे-धीरे मर जाती हैं और खत्म हो जाती हैं, लेकिन नए शोध से पता चला है कि कुछ खास परिस्थितियों में कोशिकाएं जीवित रह सकती हैं और एक नए तरह के जीवन रूप में बदल सकती हैं. इन सेल्स को अगर सही न्यूट्रीशन, ऑक्सीजन और बायो-एनर्जी दी जाए तो ये नई जीवन इकाइयों में बदल सकती हैं, जो पहले की कोशिकाओं से पूरी तरह से अलग तरीके से काम करती हैं. ये नई कोशिकाएं अपने मूल कामों से हटकर कुछ नए और अनोखे काम करने लगती हैं.
Xenobotes का उदाहरण
इस "तीसरी अवस्था" का सबसे बड़ा उदाहरण "ज़ेनोबॉट्स" हैं. ज़ेनोबॉट्स, मेंढक के fetus से ली गई कोशिकाओं से बनाए गए छोटे-छोटे जीव होते हैं. वैज्ञानिकों ने मरे मेंढकों की स्किन की सेल्स को निकालकर इन्हें एक बर्तन में रखा. हैरानी की बात यह है कि ये सेल्स नए जीवन रूपों में बदल गए, जिन्हें ज़ेनोबॉट्स कहा गया. ज़ेनोबॉट्स में नेविगेशन यानी दिशा ढूंढ़ने की क्षमता पाई गई, जिसके लिए ये सिलिया (Type of Micro Hair) का उपयोग करते हैं। सिलिया आमतौर पर मेंढकों में कफ को ट्रांसफर करने के लिए काम करता है, लेकिन ज़ेनोबॉट्स में इसे अलग कामों के लिए उपयोग किया गया.
ज़ेनोबॉट्स की एक और खासियत यह है कि ये पारंपरिक तरीकों से नहीं बढ़ते, बल्कि अपनी ही संरचना को दोबारा बनाकर खुद का रूप तैयार करते हैं. इसे 'गतिज स्व-प्रतिकृति' (kinematic self-replication) कहा जाता है. ज़ेनोबॉट्स सिर्फ मेंढकों तक ही सीमित नहीं हैं. रिसर्च से यह भी पता चला है कि मानव फेफड़े की कोशिकाएं भी कुछ इसी तरह की क्षमता दिखा सकती हैं. जब इन्हें खास प्रयोगशाला स्थितियों में रखा गया, तो ये कोशिकाएं छोटे-छोटे जीवों में तब्दील हो गईं जो चल सकते थे और खुद को ठीक भी कर सकते थे.
White Blood Cells
इस शोध ने यह भी दिखाया है कि कोशिकाएं मृत्यु के बाद कितनी देर तक जीवित रह सकती हैं, यह कई कारकों पर निर्भर करता है. इनमें पर्यावरणीय परिस्थितियां, कोशिकाओं की मेटाबॉलिक गतिविधि (एनर्जी का उपयोग) और सुरक्षा की तकनीकें अहम भूमिका निभाती हैं. उदाहरण के लिए, मानव शरीर में WBC (white blood cells) मृत्यु के 60 घंटे बाद तक जीवित रह सकती हैं, जबकि चूहे की कंकाल की सेल्स 14 दिनों तक जीवित रह सकती हैं. कुछ खास तकनीकों, जैसे क्रायोप्रिजर्वेशन (तापमान को बेहद कम करके सेल्स को सुरक्षित करना), से कोशिकाओं को लंबे समय तक जीवित रखा जा सकता है.
इन खोजों से यह साफ होता है कि जीवन और मृत्यु के बीच की सीमाएं उतनी स्पष्ट नहीं हैं जितना हम अब तक समझते आए थे. यह "तीसरी अवस्था" जीवन के नए रूपों की संभावनाओं को जन्म दे रही है और कोशिकाओं के काम करने के तरीके पर नई जानकारी प्रदान कर रही है.