सुरंग में हो गया था अंधेरा, मिट्टी के टुकड़े गिरे और अलार्म बज गया; टनल से निकले मजदूरों ने बताई कहानी

तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले में श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (SLBC) सुरंग का एक हिस्सा ढहने से आठ मजदूर फंस गए. बचाव कार्य जारी है, लेकिन कीचड़ और पानी के कारण कठिनाइयां हो रही हैं. टनल से सुरक्षित निकले मजदूरों में से एक का चचेरा भाई भी फंसा हुआ है. मजदूरों ने बताई हादसे के वक़्त की कहानी.;

Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 24 Feb 2025 8:10 AM IST

तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले के डोमलपेंटा में सुरंग श्रमिकों की कॉलोनी में एक उदासी का माहौल है. श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) सुरंग में फंसे आठ मजदूरों को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है. वेल्डर संजय साह ने श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) सुरंग में फंसे आठ मजदूरों की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने भी यही काम चुना था, भले ही यह खतरनाक था, क्योंकि इससे उनके परिवारों की रोजी-रोटी चलती थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वेल्डर संजय साह ने बताया कि श्रमिक अक्सर पानी के रिसाव की घटनाओं की चर्चा करते थे, लेकिन मजबूरी में यह काम करना ही पड़ता था. शनिवार को एसएलबीसी सुरंग का एक हिस्सा ढह गया जिसके कारण आठ लोग अंदर फंसे रह गए.

घटना के समय क्या क्या हुआ?

संजय साह उन 50 मजदूरों में शामिल थे, जो शनिवार सुबह सात बजे सुरंग में गए थे. कुछ समय बाद सुरंग की छत का एक हिस्सा 13.5 किलोमीटर अंदर गिर गया. साह और 41 अन्य श्रमिक तो भागकर बाहर आ गए, लेकिन उन्हें बाद में पता चला कि आठ लोग बाहर नहीं निकल पाए. साह ने बताया कि रात की शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारियों ने उन्हें पानी के रिसाव के बारे में बताया था, लेकिन यह अक्सर होता था, इसलिए उन्होंने सावधानी बरतते हुए काम किया.

वे सुरंग में 13 किलोमीटर से अधिक पैदल चले, जिसमें एक घंटा लगा. लेकिन उनके पहुंचने के 15-20 मिनट बाद ही मिट्टी के टुकड़े गिरने लगे. वह दुर्घटना स्थल से मात्र 20 मीटर दूर थे. जब शिफ्ट इंचार्ज ने खतरा भांपते हुए अलार्म बजाया, तो सभी भागने लगे. कुछ ही मिनटों में तेज आवाज़ के साथ सुरंग का एक हिस्सा ढह गया. जब मजदूर बाहर निकले और अटेंडेंस रजिस्टर देखा गया, तब पता चला कि आठ लोग अभी भी अंदर फंसे हुए हैं.

चलाया जा रहा रेस्क्यू ऑपरेशन

फंसे हुए मजदूरों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर राहत अभियान चलाया जा रहा है. इसमें करीब 300 प्रशिक्षित कर्मचारी शामिल हैं, जिनमें एनडीआरएफ के 128, एसडीआरएफ के 120, सिंगरेनी कोलियरीज के 23 और सेना के 24 जवान शामिल हैं. हालांकि बचाव दल सुरंग में 13 किलोमीटर तक पहुंच चुका है, लेकिन अगले कुछ सौ मीटर में पानी और कीचड़ के कारण वे फंसे हुए लोगों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. रविवार शाम को एनडीआरएफ के कमांडेंट प्रसन्ना कुमार ने बताया कि उन्होंने पानी निकाल लिया है और अब कीचड़ हटाने का काम जारी है. भारी कीचड़ और जोखिमों के कारण प्रगति धीमी है, लेकिन टीम धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है और लगभग 100 मीटर की दूरी तय करनी बाकी है. उन्हें उम्मीद है कि रात तक वे उस जगह तक पहुंच जाएंगे, जहां मजदूर फंसे हुए हैं. टीम लगातार आवाज़ देकर उनकी प्रतिक्रिया पाने की कोशिश कर रही है.

सिंचाई मंत्री ने क्या बताया?

तेलंगाना के सिंचाई मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी ने बताया कि तीन विकल्पों पर विचार किया जा रहा है - ऊपर से ड्रिलिंग, बगल से ड्रिलिंग, या क्षेत्र से गाद निकालकर मजदूरों को बाहर लाना. सेना के निरीक्षण के अनुसार, एसएलबीसी सुरंग की छत का लगभग तीन मीटर लंबा हिस्सा ढह गया है और बचाव कार्य तेजी से चल रहा है. सेना के तेलंगाना और आंध्र सब एरिया की टीमें राहत अभियान का समन्वय कर रही हैं, और सिकंदराबाद से बाइसन डिवीजन के इंजीनियर टास्क फोर्स को भी तैनात किया गया है.

मजदूरों की हुई पहचान

फंसे हुए श्रमिकों की पहचान उत्तर प्रदेश के मनोज कुमार और श्री निवास, झारखंड के संदीप साहू, जगता जेस, संतोष साहू और अनुज साहू, जम्मू-कश्मीर के सन्नी सिंह और पंजाब के गुरप्रीत सिंह के रूप में हुई है. अनुज के चचेरे भाई संजीव साहू, जो उस समय सुरंग के अंदर थे लेकिन सुरक्षित बाहर आ गए. उन्होंने भावुक होकर बताया कि वे दोनों साथ गए थे, लेकिन अनुज सुरंग खोदने वाली मशीन के आगे कुछ देखने गया था और तभी हादसा हो गया. भगदड़ में संजीव को पता ही नहीं चला कि अनुज पीछे रह गया. वह अपने चाचा को फोन करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए, क्योंकि अनुज अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था.

भयावह था मंजर

फंसे हुए मजदूरों के परिवार अपने सहकर्मियों को बार-बार फोन कर रहे हैं, लेकिन किसी के पास ठोस जानकारी नहीं है. सुरंग में काम करने वाले जी गोविंद ने कहा कि अधिकारी कोई जानकारी साझा नहीं कर रहे हैं, जिससे वे परिवारों को कुछ बता भी नहीं पा रहे. गोविंद ने बताया कि इस दुर्घटना के बाद से वे परेशान हैं और शनिवार दोपहर से कुछ मजदूरों ने खाना तक नहीं खाया है. बिजली आपूर्ति बाधित होने से सुरंग में अंधेरा हो गया था, और वह भयावह मंजर आज भी झकझोर देता है. वे खुद को खुशकिस्मत मानते हैं कि बाहर आ गए, लेकिन उनके साथी अभी भी अंदर फंसे हुए हैं, जिससे बेचैनी बढ़ती जा रही है.

तीन महीने से नहीं मिली सैलरी

कुछ श्रमिकों ने वेतन न मिलने को लेकर भी नाराजगी जताई. संजीव साहू ने बताया कि कई मजदूरों को तीन महीने से वेतन नहीं मिला है. कंपनी केवल इंजीनियरों और वरिष्ठ कर्मचारियों की भर्ती करती है, जबकि मजदूरों को ठेकेदारों के जरिये काम पर रखा जाता है. ठेकेदार ने उन्हें अब तक भुगतान नहीं किया है. सुरंग बंद हो गई है और काम जल्दी शुरू होने की संभावना भी नहीं दिख रही, जिससे मजदूरों को चिंता है कि वे घर कैसे जाएंगे.

कॉलोनी में है शांति

इस परियोजना पर 2019 से काम कर रहे राज कुमार ने बताया कि श्रमिकों की कॉलोनी, जो आमतौर पर चहल-पहल से भरी रहती थी, अब पूरी तरह शांत है. आमतौर पर मजदूर काम के बाद आपस में बातचीत करते थे, परिवारों को फोन करते थे और साथ बैठकर खाना खाते थे. लेकिन इस हादसे के बाद से माहौल बेहद उदास है. ज्यादातर लोग अपने कमरों से बाहर नहीं निकल रहे, और चारों ओर केवल चिंता और बेचैनी पसरी हुई है.

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