25 साल तक HC में चला मर्डर केस का मुकदमा, अब 104 वर्षीय बुजुर्ग को SC से क्यों मिली बेल?
रसिक चंद्र मंडल जो 104 वर्ष के हैं उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में बुढ़ापे और संबंधित बीमारियों के आधार पर समय से पहले रिहाई की याचिका दायर की. अदालत ने मामला सुना और उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. मंडल 1988 में हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए थे और तब से वे सजा काट रहे थे.;
रसिक चंद्र मंडल का जन्म 1920 में मालदा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. इसी साल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी, जो अंग्रेजों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संघर्ष था. मंडल ने एक सदी बाद, अपनी आज़ादी के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जबकि वह वर्तमान में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं.
मंडल को 1988 के एक हत्या मामले में 1994 में दोषी ठहराया गया था, जब उनकी उम्र 68 वर्ष थी. सजा के तहत, उन्हें उम्र संबंधी बीमारियों के कारण जेल से पश्चिम बंगाल के बालुरघाट स्थित सुधार गृह में स्थानांतरित कर दिया गया था. उनकी अपील 2018 में कलकत्ता हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई थी.
HC में 25 साल तक चला केस
मंडल ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की, जब वह 100 साल की उम्र को पार करने के करीब थे. याचिका में उन्होंने बुढ़ापे और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का हवाला देते हुए समय से पहले रिहाई की मांग की, साथ ही उन्होंने पैरोल या सजा में छूट के लिए 14 साल सलाखों के पीछे बिताने के मानदंड से छूट भी मांगी.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति ए अब्दुल नजीर (जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं) और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने 7 मई, 2021 को पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया और सुधार गृह के अधीक्षक से मंडल की शारीरिक स्थिति और स्वास्थ्य की स्थिति रिपोर्ट 14 जनवरी, 2019 से लेकर प्रस्तुत करने को कहा.
मंडल ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट के एक रिट याचिका दायर की थी, जब वह सौ साल पूरे करने से एक साल दूर था यानी 99 का था. उन्होंने बुढ़ापे और संबंधित बीमारियों का हवाला देते हुए समय से पहले रिहाई की मांग की थी. साथ ही पैरोल या सजा में छूट के लिए 14 साल सलाओं के पीछे बिताने के मानदंड से छूट मांगी थी.