अब MGNREGA का नया नाम होगा PBGRY, बजट 1.51 लाख करोड़, क्या है इसका मकसद?
केंद्र सरकार MGNREGA (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) का नाम बदलने जा रही है और इसे PBGRY (Pujya Bapu Gramin Rozgar Yojana) के नाम से पेश करने की योजना को अंतिम रूप देने में जुटी है. इस योजना के लिए ₹1.51 लाख करोड़ का बजट जारी करने की योजना है. जानें क्या बदल रहा है, नई योजना के फायदे और इसके पीछे का उद्देश्य.;
केंद्रीय मंत्रिमंडल MGNREGA का नाम बदलने की तैयारी कर रही है. अब इसका नाम Pujya Bapu Gramin Rozgar Yojana (PBGRY) हो सकता है. इस बदलाव का उद्देश्य ग्रामीण रोजगार योजना को नई पहचान देना और उसमें सुधार लाना है. जबकि इसके लिए लगभग ₹1.51 लाख करोड़ का आवंटन प्रस्तावित किया गया है.
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MGNREGA क्या है?
MGNREGA यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 में लागू हुआ एक सामाजिक सुरक्षा और रोजगार गारंटी कानून है, जिसका मूल उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम 100 दिनों तक मजदूरी आधारित रोजगार उपलब्ध कराना है. यह देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना माना जाता है.
PBGRY क्या है?
केंद्र सरकार MGNREGA का नाम बदलकर “Pujya Bapu Gramin Rozgar Yojana” (PBGRY) करने पर विचार कर रही है, ताकि योजना को नई पहचान और जनप्रियता मिल सके. इस बदलाव पर केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिलना अभी बाकी है.
बजट 1.51 लाख करोड़
सरकार ने इस योजना के तहत ₹1.51 लाख करोड़ के बड़े बजट आवंटन का प्रस्ताव रखा है. ताकि ग्रामीण रोजगार के अवसर बढ़ाने और रोजगार गारंटी के दायरे को मजबूत किया जा सके.
रोजगार अवधि और लाभ
पुनर्निर्धारित योजना के तहत गारंटी रोजगार दिनों की संख्या को बढ़ाकर 125 दिनों तक करने का प्रस्ताव है, जिससे ग्रामीण मजदूरों को साल में अधिक रोजगार अवसर मिल सकें. इसके अलावा, न्यूनतम दैनिक मजदूरी को भी बढ़ाने के संकेत दिए जा रहे हैं. सरकार गारंटी देने के लिए बिल लाने की योजना बना रही है.
सरकार का कहना है कि नाम बदलने का उद्देश्य योजना के सन्देश को और अधिक प्रभावी बनाना, ग्रामीण रोजगार सुरक्षा को मजबूत करना, और जनता में सकारात्मक धारणा बनाना है. कुछ विशेषज्ञ इसे पुष्टि और पहचान के राजनीतिक बदलाव के रूप में भी देख रहे हैं.
ग्रामीण भारत पर प्रभाव
अगर PBGRY प्रस्ताव को लागू किया जाता है और बजट आवंटन सुनिश्चित होता है, तो ग्रामीण परिवारों को गारंटी रोजगार, बेहतर मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा के विस्तार का लाभ मिल सकता है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में स्थिरता आती है और पलायन की प्रवृत्ति कम हो सकती है.