क्या है SCO और क्यों है इतना इम्पोर्टेंट? 9 साल बाद पाकिस्तान जा रहा कोई विदेश मंत्री
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने शुक्रवार को कहा कि विदेश मंत्री एस जयशंकर अक्टूबर महीने के अंत में होने वाली शंघाई समिट में भाग लेने के लिए पाकिस्तान का दौरा करेंगे. ये इनका विदेश मंत्री के तौर पर पहला दौरा होगा. भारत ने 2015 के बाद से पाकिस्तान से सीधी बातचीत बंद कर रखी है. अब देखना होगा कि इस दौरे से हमें क्या मिलेगा.;
पाकिस्तान में इस महीने को होने वाली शंघाई समिट में भाग लेने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर इस्लामाबाद जाएंगे. दिसंबर 2015 के बाद भारत के विदेश मंत्री की ये पहली यात्रा होगी. इसके पहले दिवंगत सुषमा स्वराज ने 2015 में एक सुरक्षा सम्मेलन ‘हार्ट ऑफ एशिया’ में भाग लेने के लिए इस्लामाबाद का दौरा किया था.
2024 का शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सदस्य देशों के बीच अक्टूबर में होने वाली है. इसमें सभी देशों के लीडरों के बीच आयोजित की जाती है.
क्या है सको?
शंघाई सहयोग संगठन (Sanghai Cooperation Organization) की बुनियाद 1996 में रखी गई थी जब चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान ने मिलकर शंघाई-फ़ाइव का गठन किया था. बाद में उज़्बेकिस्तान इसमें शामिल हो गया और 2001 में एससीओ ने आधिकारिक रूप से जन्म लिया. साल 2017 में भारत और पाकिस्तान भी इसमें शामिल हो गए बाद में ईरान भी इसमें पूर्ण सदस्य की हैसियत से शामिल हो गया है. पूर्ण सदस्य देशों के अलावा कई देश पर्यवेक्षक और डायलॉग पार्टनर की हैसियत से भी इसके हिस्सा हैं.
यह एक परमानेंट inter-governmental international Organization हैं, जिसकी स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई, चीन में हुई थी. फाउंडर मेंबर के रूप में 5 सदस्य देश चीन, रूस, किर्गिस्तान, उजबेकिस्तान, तजाकिस्तान हैं. फिलहाल इसमें 9 सदस्य देश हैं. इन 5 देशों के अलावा भारत, पाकिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान शामिल है. इसके तीन ऑबजर्वर देश है, अफगानिस्तान, मंगोलिया और बेलारूस हैं. ये एक राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है. पश्चिमी देशों के संगठनों के मुक़ाबले ये एशियाई देशों का संगठन है. एससीओ की ऑफ़िशियल वर्किंग लैंग्वेज रूसी और चीनी है.
SCO का क्या है उद्देश्य
सबसे पहले संगठन में तीन बातों पर जोर दिया गया था, मध्य एशिया में आतंकवाद, अलगाववाद और चरपमंथ के खिलाफ मिल कर काम करना. इसमें बाद में आर्थिक सहयोग को भी शामिल किया गया.
2020 में जब भारत ने कोविड-19 में वर्चुअली इसकी अध्यक्षता की थी तब पाकिस्तान की ओर से विदेशी मामलों के संसदीय सचिव ने किया था.
SCO की महत्ता क्या हैं
अब सवाल ये है कि क्या SCO दुनियाभर में इतना असरदार है कि पाकिस्तान से किसी भी तरह की बातचीत बंद करने का ऐलान कर चूके विदेश मंत्री एस जयशंकर पाक जाने के लिए तैयार हो गए. SCO को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानि नाटो का प्रति-संतुलन माना जाता है. इसी आधार पर एससीओ को अमेरिका विरोधी गुट कहा जाता है. हालांकि इस पर सभी देशों पर अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का अलग-अलग मत है. इस समय एससीओ देशों में पूरी दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी रहती है. पूरी दुनिया की जीडीपी में एससीओ देशों की 20 फीसदी हिस्सेदारी है. दुनिया भर के तेल रिजर्व का 20 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों में है.
एससीओ संगठन का मकसद ‘तीन बुराइयों’ यानी चरमपंथ, अलगाववाद और अतिवाद से लड़ना है. हालांकि अब तक इस पर कुछ खास काम हुआ नहीं है. चीन एससीओ को ऐसे मंच के तौर पर बढ़ावा देना चाहता है, जो पश्चिमी देशों की अगुआई वाली विश्व व्यवस्था के विकल्प की बात करता हो. चीन ‘इसे इंटर सिविलाइजेशन डायलॉग’ कहता है.
SCO की अब तक की उपलब्धियां
एससीओ में बड़े और ताकतवर देश शामिल हैं. इस लिहाज से देखें तो ये संगठन अपना असर नहीं छोड़ पाया है. इसके खाते में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है. इसका कारण सदस्य देशों का अपसी विवाद को माना जाता है. भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से सीमा को लेकर विवाद चल रहा है. चीन और भारत के बीच भी सीमा विवाद है. पाकिस्तान और ईरान के बीच विवाद रहे हैं.
भारत के लिए क्या मायने
मौजूदा दौर में भारत के लिए एससीओ को ज्यादा अहमियत देने की एक खास वजह है. एससीओ रूस का ब्रेन चाइल्ड और उसके ग्रेटर यूरेशिया ड्रीम का हिस्सा है. फिलहाल युद्ध की जाल में रूस फंसा है. वहीं रुस के साथ भारत के ऐतिहासिक रिश्ते हैं. एससीओ में शामिल कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान पूर्व सोवियत संघ के हिस्सा हैं. मध्य एशिया के देशों के साथ भी भारत के अच्छे संबंध हैं. इन सबको देखते हुए महज पाकिस्तान से नाराजगी के चलते भारत एससीओ से दूरी नहीं बना सकता.