मनमोहन सिंह का 1991 का वो बजट, जिसने बदल दी थी अर्थव्यवस्था की दिशा; केवल दो सांसद थे साथ
मनमोहन सिंह को पी.वी. नरसिंह राव की सरकार में वित्त मंत्री बनाया गया था. इस दौरान उनके द्वारा किए गए ऐतिहासिक सुधारों ने न केवल भारत को दिवालियापन से बचाया, बल्कि एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में इसकी दिशा को भी पुनर्परिभाषित किया. कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने अपनी किताब ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में इसका जिक्र किया है.;
Manmohan Singh 1991 Budget: देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर को 92 साल की उम्र में निधन हो गया. उनका 28 दिसंबर को अंतिम संस्कार किया जाएगा. पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मनमोहन सिंह के घर पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. पूर्व प्रधानमंत्री को आर्थिक सुधारों का जनक माना जाता है. उनके द्वारा पेश किए गए 1991 के ऐतिहासिक बजट ने देश को अपने सबसे खराब वित्तीय संकट से उबारा था. हालांकि, इसके लिए उन्हें अग्नि परीक्षा का सामना करना पड़ा.
मनमोहन सिंह को पी.वी. नरसिंह राव की सरकार में वित्त मंत्री बनाया गया था. इस दौरान उनके द्वारा किए गए ऐतिहासिक सुधारों ने न केवल भारत को दिवालियापन से बचाया, बल्कि एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में इसकी दिशा को भी पुनर्परिभाषित किया.
जयराम रमेश ने अपनी किताब में किया जिक्र
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने 2015 में प्रकाशित अपनी किताब ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में लिखा है कि बजट पेश होने के एक दिन बाद 25 जुलाई 1991 को सिंह बिना किसी पूर्व योजना के प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए थे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके बजट का संदेश अधिकारियों की उदासीनता के कारण विकृत न हो जाए. किताब में जून 1991 में राव के पीएम बनने के बाद तेजी से आए बदलावों का जिक्र है. उन्होंने इस किताब में लिखा कि वित्त मंत्री ने अपने बजट की व्याख्या करते हुए इसे मानवीय बजट बताया. उन्होंने खाद, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में इजाफा के प्रस्तावों का बड़ी दृढ़ता से बचाव किया.
मनमोहन सिंह ने खुद किया अपनी आलोचना का सामना
राव के कार्यकाल के शुरुआती महीनों में जयराम रमेश उनके सहयोगी थे. कांग्रेस में असंतोष को देखते हुए राव ने एक अगस्त 1991 को कांग्रेस संसदीय दल (CPP) की बैठक बुलाई और पार्टी सांसदों को खुलकर अपनी बात रखने का मौका देने का फैसला किया. रमेश ने लिखा कि प्रधानमंत्री ने बैठक से दूरी बनाए रखी और मनमोहन सिंह को उनकी आलोचना का खुद ही सामना करने दिया. दो-तीन अगस्त को दो और बैठकें हुईं, जिनमें राव पूरे समय मौजूद रहे.
सीपीपी की बैठकों में अकेले नजर आए वित्त मंत्री
रमेश ने लिखा कि सीपीपी की बैठकों में वित्त मंत्री अकेले नजर आए. प्रधानमंत्री ने उनका बचाव करने या उनकी परेशानी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया. केवल दो सांसदों, मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा, ने बजट का पूरी तरह समर्थन किया. अय्यर ने बजट का समर्थन करते हुए कहा कि यह बजट राजीव गांधी की इस धारणा के अनुरूप है कि वित्तीय संकट को टालने के लिए क्या किया जाना चाहिए.
कांग्रेस के दबाव के आगे झुकते हुए मनमोहन सिंह ने खाद की कीमतों में 40 प्रतिशत की वृद्धि को घटाकर 30 प्रतिशत करने पर सहमति व्यक्त की थी. हालांकि, एलपीजी और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि को यथावत रखा था.
राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की चार-पांच अगस्त 1991 को दो बार बैठक हुई. इसमें यह निर्णय लिया गया कि छह अगस्त को मनमोहन सिंह लोकसभा में क्या भाषण देंगे. किताब के मुताबिक, इस बयान में इस वृद्धि को वापस लेने की बात नहीं मानी गई, जिसकी मांग पिछले कुछ दिनों से की जा रही थी बल्कि इसमें छोटे तथा सीमांत किसानों के हितों की रक्षा की बात की गई.
दोनों पक्षों की हुई जीत
रमेश ने लिखा कि दोनों पक्षों की जीत हुई. कांग्रेस ने पुनर्विचार के लिए मजबूर किया, लेकिन सरकार जो चाहती थी उसके मूल सिद्धांतों... यूरिया के अलावा अन्य उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना और यूरिया की कीमतों में इजाफा को बरकरार रखा गया.