लोकसभा में ‘वंदे मातरम’ पर 'महा-बहस': पीएम मोदी के निशाने पर नेहरू, कांग्रेस ने पूछे ये तीन तीखे सवाल...

लोकसभा में ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्षों पर शुरू हुई विशेष चर्चा तेजी से राजनीतिक टकराव में बदल गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस पर आरोप लगाया कि 1937 में मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम को दो हिस्सों में बांटा गया और यह तुष्टिकरण की शुरुआत थी. मोदी ने दावा किया कि नेहरू ने जिन्ना की भावना से सहमति जताई और वंदे मातरम की पृष्ठभूमि पर आपत्ति स्वीकार की. कांग्रेस ने तुरंत पलटवार करते हुए पीएम मोदी को “Master Distorian” कहा और तीन सवाल उठाए - किस नेता ने पाकिस्तान प्रस्ताव लाने वाले व्यक्ति से बंगाल में गठबंधन किया, किसने 2005 में कराची में जिन्ना की प्रशंसा की, और किसने 2009 में जिन्ना की तारीफ में किताब लिखी.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On : 8 Dec 2025 3:45 PM IST

लोकसभा के शीतकालीन सत्र में सोमवार को ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्षों के अवसर पर शुरू हुआ विशेष संसदीय विमर्श सिर्फ एक सांस्कृतिक विषय तक सीमित नहीं रहा. चर्चा मिनटों में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में बदल गई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में आज़ादी के बाद की राजनीति, विभाजन और मुस्लिम लीग के साथ ‘कांग्रेस के समझौते’ का मुद्दा उठाते हुए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को कठघरे में खड़ा किया. पीएम मोदी के भाषण के बाद कांग्रेस ने तीखे पलटवार का मोर्चा संभाला और इस बहस ने पूर्ण राजनीतिक रंग ले लिया.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और उसके तुरंत बाद वंदे मातरम को लेकर कांग्रेस की स्थिति डांवाडोल रही. उनके अनुसार 1937 में मुस्लिम लीग ने वंदे मातरम के विरोध का अभियान छेड़ा, उसी समय मोहम्मद अली जिन्ना ने 15 अक्टूबर 1937 को लखनऊ से इसे “नारा-ए-मर्दूद” (नापसंद गीत) करार दिया और कहा कि इसका धार्मिक बैकग्राउंड मुसलमानों को अस्वीकार्य है.

‘आनंदमठ की पृष्ठभूमि मुसलमानों को चुभ सकती है’

यहीं से मोदी ने अपना मुख्य तर्क प्रस्तुत किया, “नेहरू जी ने जिन्ना की भावना से सहमति जताई. उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखकर कहा कि ‘आनंदमठ की पृष्ठभूमि मुसलमानों को चुभ सकती है’, और इसके तुरंत बाद कांग्रेस ने गीत को दो भागों में बांटने का फैसला किया.” प्रधानमंत्री के अनुसार 26 अक्टूबर 1937 को बंगाल में वंदे मातरम् के ‘विश्लेषण’ का आदेश जारी हुआ, और यह “समझौता” न सिर्फ सांस्कृतिक स्तर पर, बल्कि राजनीतिक रूप से भी मुस्लिम लीग के सामने झुकने का प्रतीक था.

मोदी ने आगे कहा, “वंदे मातरम को काटकर दो अंतरों तक सीमित करने वाले वही लोग थे, जिन्होंने आगे चलकर विभाजन स्वीकार किया. तुष्टिकरण की वही राजनीति आज भी जारी है. कांग्रेस अब इंडियन नेशनल कांग्रेस नहीं - मुस्लिम लीग कांग्रेस बन चुकी है.”

कांग्रेस का पलटवार: ‘Master Distorian’, तीन सवाल और 70 साल की गिनती

पीएम का संबोधन समाप्त होते ही कांग्रेस ने मोर्चा संभाला. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सीधे प्रधानमंत्री पर इतिहास तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया और उन्हें “Master Distorian” कहा.

रमेश ने तीन सवाल सदन और प्रधानमंत्री के सामने रखे:

कौन भारतीय नेता 1940 के दशक की शुरुआत में बंगाल में उस व्यक्ति के साथ सत्ता में गठबंधन में थे जिसने लाहौर में पाकिस्तान संकल्प पेश किया?

उत्तर: श्यामा प्रसाद मुखर्जी

कौन भारतीय नेता 2005 में कराची में जिन्ना की प्रशंसा करते हुए दिखे?

उत्तर: लालकृष्ण आडवाणी

कौन भारतीय नेता ने 2009 में जिन्ना की प्रशंसा में किताब लिखी?

उत्तर: जसवंत सिंह

कांग्रेस ने तर्क दिया, “बीजेपी जिन्ना और मुस्लिम लीग पर इतिहास याद दिलाना चाहती है, लेकिन अपने घर की तरफ देखना नहीं चाहती.”

गौरव गोगोई का हमला: “PM मोदी हर भाषण में नेहरू को ढूंढ लेते हैं”

कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने भी सीधे प्रधानमंत्री पर निशाना साधा. उनके अनुसार मोदी सरकार हर राष्ट्रीय उपलब्धि के मंच को नेहरू के खिलाफ हमले में बदल देती है. गोगोई ने आंकड़े भी पढ़कर सुनाए कि कब-कब पीएम ने अपने संबोधनों में नेहरू और कांग्रेस का जिक्र किया. जैसे - ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा में 14 बार नेहरू और 50 बार कांग्रेस का जिक्र किया गया. वहीं संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर हुई चर्चा में 10 बार नेहरू तो 26 बार कांग्रेस का जिक्र आया. ऐसे ही साल 2022 और 2020 में भी राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान कई बार नेहरू और कांग्रेस का नाम लिया गया. गोगोई ने कहा, “इतिहास और राजनीति में भले ही आपकी राय अलग हो, लेकिन आप लाख कोशिश कर लें - नेहरू की विरासत पर एक भी दाग नहीं लगा पाएंगे.”

बहस का बड़ा सवाल - मुद्दा ‘वंदे मातरम’ या 2024-25 की राजनीति?

विश्लेषकों के अनुसार, यह बहस सिर्फ गीत या सांस्कृतिक विरासत की नहीं, बल्कि दो राजनीतिक आख्यानों की टकराहट है. PM मोदी की रणनीति है कांग्रेस के ऐतिहासिक निर्णयों को "तुष्टिकरण" के तौर पर पेश कर वर्तमान विपक्ष को वैचारिक रक्षात्मक स्थिति में धकेलना जबकि कांग्रेस की रणनीति मोदी के ऐतिहासिक संदर्भों और जिन्ना-सम्बंधी उदाहरणों को बीजेपी की ओर पलटकर ले जाना, ताकि बहस को वैचारिक ध्रुवीकरण से हटाया जा सके.

लोकसभा में बहस के बाद मंगलवार को राज्यसभा में ‘वंदे मातरम’ पर विशेष चर्चा होगी, जिसमें नेतृत्व गृह मंत्री अमित शाह करेंगे. माना जा रहा है कि सदन में फिर कांग्रेस–बीजेपी के बीच वैचारिक और ऐतिहासिक टकराव देखने को मिलेगा. वंदे मातरम पर बहस भारत के राष्ट्रीय गीत, संस्कृति और इतिहास पर विचार-विमर्श की एक अहम घड़ी हो सकती थी. लेकिन सदन में उठे सवालों और प्रतिक्रियाओं ने इसे चुनावी मोर्चे, ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता और भावनात्मक ध्रुवीकरण के मंच में बदल दिया.

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