केरल में छात्रों से पैर धुलवाने पर बवाल, शिक्षा मंत्री ने बताया 'गुलामी की मानसिकता'; राज्यपाल बोले- गुरु पूजन हमारी संस्कृति का हिस्सा

केरल के कई निजी स्कूलों में गुरु पूर्णिमा पर छात्रों द्वारा शिक्षकों के पांव धोने की रस्म (पादपूजन) ने विवाद खड़ा कर दिया है. शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने इसे 'गुलाम मानसिकता' और 'प्रतिगामी' परंपरा करार देते हुए जांच के आदेश दिए हैं. वहीं, राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अरलेकर ने इस परंपरा को भारतीय संस्कृति का हिस्सा बताया और इसका बचाव किया. आरएसएस से जुड़े स्कूलों में इस आयोजन को लेकर SFI-DYFI ने विरोध प्रदर्शन किए हैं.;

( Image Source:  AI )

Kerala Guru Purnima row: केरल में 10 जुलाई को गुरुपूर्णिमा के अवसर पर कुछ निजी स्कूलों में हुए 'पादपूजन' (Pada Pooja) समारोहों को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. इन आयोजनों में छात्रों ने अपने शिक्षकों और सेवानिवृत्त स्टाफ के पैर धोए, फूल अर्पित किए और आशीर्वाद लिया. यह कार्यक्रम भारत विद्या निकेतन (BVN) से संबद्ध स्कूलों में हुए, जो आरएसएस की शिक्षा शाखा विद्या भारती से जुड़ा संगठन है.

इन घटनाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद राज्य की राजनीति गरमा गई है. राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने इन आयोजनों को भारतीय संस्कृति का हिस्सा बताया, जबकि केरल के शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने इन्हें 'गुलामी मानसिकता थोपने वाला' और 'गैर-लोकतांत्रिक' करार दिया. मंत्री ने शिक्षा निदेशक को स्कूलों से स्पष्टीकरण मांगने के निर्देश दिए हैं और इस मामले की जांच रिपोर्ट एक सप्ताह में मांगी है.

विवाद और राजनीतिक प्रतिक्रिया

शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने कहा कि ये समारोह आरएसएस की विचारधारा को स्कूलों में लागू करने का प्रयास हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि कोई स्कूल राज्य सरकार के 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' (NOC) का दुरुपयोग करेगा तो उस पर सख्त कार्रवाई होगी. वहीं CPI(M) के राज्य सचिव एम.वी. गोविंदन ने आरोप लगाया कि आरएसएस छुआछूत और जातिवादी चातुर्वर्ण्य व्यवस्था को फिर से लागू करने की कोशिश कर रहा है. कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने भी राज्यपाल पर हमला करते हुए कहा कि ऐसे विचार प्रगतिशील केरल के लिए शर्म की बात हैं.

लेफ्ट संगठनों का प्रदर्शन

डीवाईएफआई (DYFI), एसएफआई (SFI) और बाल संगठन बालसंगम जैसे वामपंथी संगठनों ने इस आयोजन को 'पिछड़ेपन और ब्राह्मणवादी मानसिकता' से प्रेरित बताते हुए राज्यव्यापी प्रदर्शन शुरू किया है. एसएफआई ने इस घटना के खिलाफ बाल अधिकार आयोग (KSCPCR) और शिक्षा विभाग में शिकायत दर्ज करवाई, जिसके बाद आयोग ने पुलिस से रिपोर्ट मांगी है.

स्कूल प्रशासन और राज्यपाल का बचाव

इस बीच, बंडडका स्कूल की प्रधानाचार्या पीटी उमा ने कहा कि यह आयोजन व्यास जयंती का हिस्सा था और छात्रों ने केवल फूल अर्पित किए, पैर शिक्षकों ने ही धोए. वहीं विवेकानंद स्कूल के पीटीए प्रतिनिधि राजीवन ने इसे सनातन धर्म का हिस्सा बताया और कहा कि विरोध करने वालों का एकजुट होकर विरोध किया जाएगा.

“हम अपनी संस्कृति भूल जाएंगे तो हम खुद को ही खो बैठेंगे.”

राज्यपाल ने एक कार्यक्रम में कहा, “गुरु पूजन हमारी संस्कृति का हिस्सा है. कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं, लेकिन मैं नहीं जानता कि वे किस संस्कृति से आते हैं. अगर हम अपनी संस्कृति भूल जाएंगे, तो हम खुद को ही खो बैठेंगे.”

केरल में गुरु पूजन पर छिड़ा विवाद अब महज शिक्षा पद्धति या परंपरा से जुड़ा नहीं रहा, बल्कि यह राज्य की धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक शिक्षानीति को लेकर एक बड़ा वैचारिक टकराव बन गया है. एक ओर परंपरा और संस्कृति के नाम पर समर्थन है, तो दूसरी ओर वाम और कांग्रेस पार्टियां इसे 'सांप्रदायिक एजेंडा' करार देकर इसका विरोध कर रही हैं. अब सभी की नजर सरकार की जांच रिपोर्ट और उसके बाद होने वाली कार्रवाई पर टिकी है.

Similar News