न्यायमूर्ति ने बेंगलुरु के एक हिस्से को बताया था पाकिस्तान, अब HC ने लिया ये फैसला
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति वी श्रीशानंद की विवादास्पद टिप्पणी के बाद सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अदालत से जुड़ी कार्यवाही को दिखाने से मना कर दिया है. इस अंतरिम आदेश में अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के उपयोग और अपलोडिंग को रोकने के लिए अंतरिम आदेश जारी किया है. यह आदेश न्यायमूर्ति वी श्रीशानंद की विवादास्पद टिप्पणी के कुछ दिनों बाद आया है, जिसमें उन्होंने बेंगलुरु के मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान बताया था और एक महिला वकील के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.;
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक अंतरिम आदेश जारी किया, जिसके तहत न्यायालय की कार्यवाही के वीडियो को YouTube चैनल पर लाइव स्ट्रीम करने और अपलोड करने पर रोक लगा दी गई है. यह आदेश न्यायमूर्ति वी श्रीशानंद की विवादास्पद टिप्पणी के बाद आया, जिसमें उन्होंने बेंगलुरु के मुस्लिम बहुल क्षेत्र की तुलना पाकिस्तान से की थी और एक महिला वकील पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. उनकी यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया.
न्यायमूर्ति श्रीशानंद की विवादास्पद टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने गंभीरता से संज्ञान लिया. सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय से इस मामले में रिपोर्ट मांगी और चेतावनी देते हुए कहा कि "हम पर नजर रखी जा रही है." चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) ने जजों को संयम बरतने की सलाह दी और कहा कि कार्यवाही की पवित्रता को बनाए रखने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जा सकते हैं, ताकि न्यायालय का सम्मान बना रहे और इससे न्यायालय को मजाक का हिस्सा बनने से बचाया जा सके.
न्यायमूर्ति श्रीशानंद ने जताया खेद
शनिवार को न्यायमूर्ति वी श्रीशानंद ने अदालत में अपनी की गई टिप्पणी पर पहले ही खेद जता चुके हैं. हालांकि, इस मामले में एक अन्य अंतरिम आदेश न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर द्वारा पारित किया गया, जिसमें उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे फेसबुक, एक्स, और यूट्यूब को यह निर्देश दिया कि निजी संस्थाओं या व्यक्तियों द्वारा अदालती कार्यवाही के वीडियो अपलोड न किए जाएं और पहले से अपलोड किए गए वीडियो को तुरंत हटा दिया जाए.
लाइव स्ट्रीमिंग पर अस्थायी रोक
अंतरिम आदेश में न्यायमूर्ति चंदनगौदर ने यह भी कहा कि अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग रोकने का उद्देश्य शरारती तत्वों द्वारा दुरुपयोग को रोकना है. याचिकाकर्ता एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरु ने यह तर्क दिया कि कुछ लोग अदालती कार्यवाही के लाइव-स्ट्रीम किए गए वीडियो को संपादित कर रहे हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया के बारे में गलत धारणा बनाई जा रही है.
न्यायपालिका की छवि को नुकसान
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि जिन वीडियो क्लिप को पोस्ट कर सोशल मीडिया पर दिखाया जा रहा है, वे दर्शकों को भ्रामक जानकारी दे रही हैं. लोग इन क्लिप्स को देखकर गलत राय बना रहे हैं, क्योंकि उनमें कानूनी प्रक्रिया का केवल आंशिक हिस्सा दिखाया जा रहा है. इसके परिणामस्वरूप, न्यायपालिका की छवि खराब हो रही है और अदालती कार्यवाही के प्रति लोगों का विश्वास कमजोर हो सकता है.