90 दिन से पहले भारत करना चाहता है अमेरिका से ट्रेड डील, जानें किस चीज का है दबाव
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों को मज़बूत करने के लिए टैरिफ रोक के बाद बातचीत को नई दिशा दी जा रही है. मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि दोनों देश व्यापार समझौते पर जल्द निर्णय ले सकते हैं. इससे व्यापार बढ़कर 500 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. अमेरिकी शेयर बाजार में भी सकारात्मक असर दिखा. विशेषज्ञ मानते हैं कि वार्ता में सावधानी और रणनीति ज़रूरी है.;
90 दिनों के लिए अमेरिका द्वारा पारस्परिक टैरिफ़ रोके जाने के बाद भारत सरकार अब व्यापार समझौते को नए सिरे से गति देने पर विचार कर रही है. केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने स्पष्ट किया कि भारत इस पूरे वार्ता-प्रक्रिया को 'इंटेलिजेंस और रणनीति के साथ' आगे बढ़ा रहा है. उनका मानना है कि यह निर्णय प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की उस प्रतिबद्धता का हिस्सा है, जिसमें दोनों नेताओं ने व्यापार को सुगम बनाने के लिए एक समझौते पर सहमति व्यक्त की थी.
यदि यह प्रस्तावित समझौता अमल में आता है, तो भारत-अमेरिका व्यापार का स्तर मौजूदा से लगभग ढाई गुना बढ़कर 500 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. इससे न केवल द्विपक्षीय व्यापार में भारी इजाफा होगा, बल्कि दोनों देशों में रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे. भारत पहले ही वैश्विक व्यापार की दौड़ में अग्रणी भूमिका निभा रहा है और इस दिशा में हो रही चर्चाएं सकारात्मक संकेत दे रही हैं.
उद्योग जगत का है दबाव
भारतीय उद्योग जगत के कई हिस्से सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि वह जल्द से जल्द इस समझौते को अंतिम रूप दे. कारोबारी जगत को डर है कि अगर अमेरिका ने टैरिफ फिर से लागू कर दिए, तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसे में सरकार के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह केवल कूटनीतिक समझौते नहीं, बल्कि व्यावहारिक समाधान भी जल्द लेकर आए.
टैरिफ फैसले का क्या हुआ असर?
ट्रंप प्रशासन द्वारा कुछ देशों के लिए टैरिफ रोकने के फैसले के बाद अमेरिकी शेयर बाजार में तेज़ उछाल देखा गया. एसएंडपी, नैस्डैक और डॉव जोंस सभी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. टेक कंपनियों जैसे टेस्ला, एनवीडिया के शेयरों में भी जबरदस्त उछाल दर्ज की गई. हालांकि, निवेशकों और विशेषज्ञों का कहना है कि यह उछाल अस्थायी हो सकता है क्योंकि मौजूदा अनिश्चितता अभी टली नहीं है.
इन्फ्लेशन की चिंता बरकरार
एफ/एम इन्वेस्टमेंट के CIO एलेक्स मॉरिस के मुताबिक, टैरिफ विराम भले ही बाजार को कुछ समय के लिए राहत दे, लेकिन इससे कोई स्थायी समाधान नहीं निकलता. यदि अगली 90 दिनों की बातचीत में कोई ठोस परिणाम नहीं निकला, तो बाजार में अस्थिरता फिर लौट सकती है. साथ ही, लोग संभावित टैरिफ की आशंका में वस्तुएं स्टॉक करने लगेंगे, जिससे मुद्रास्फीति भी बढ़ सकती है. यानी यह सिर्फ 'ब्रेक बटन' है, अंत नहीं.