पति को सेक्स में नहीं मंदिर जाने में Interest, तो कोर्ट ने सुना दिया ये फैसला

हाल ही में केरल हाईकोर्ट में एक तलाक के मामले में महिला ने आरोप लगाया कि उसका पति वैवाहिक संबंधों में बिल्कुल भी रुचि नहीं रखता और पूरी तरह मंदिरों और आश्रमों में लीन रहता है. महिला ने यह भी दावा किया कि पति ने उसे भी अपनी तरह आध्यात्मिक जीवन अपनाने के लिए मजबूर किया. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट के तलाक के फैसले को बरकरार रखा, जिससे पति-पत्नी के अलग होने का रास्ता साफ हो गया.;

Husband dont have Interest in Sex, Husband Only Go to Temple, state mirror hindi news,हाल ही में केरल हाईकोर्ट में एक तलाक के मामले में महिला ने आरोप लगाया कि उसका पति वैवाहिक संबंधों में बिल्कुल भी रुचि नहीं रखता और पूरी तरह मंदिरों और आश्रमों में लीन रहता है. महिला ने यह भी दावा किया कि पति ने उसे भी अपनी तरह आध्यात्मिक जीवन अपनाने के लिए मजबूर किया. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट के तलाक के फैसले को बरकरार रखा, जिससे पति-पत्नी के अलग होने का रास्ता साफ हो गया.

समझें पूरा मामला

केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में वैवाहिक जीवन में मानसिक क्रूरता की परिभाषा का विस्तार करते हुए एक महिला को तलाक की मंजूरी दी. महिला ने आरोप लगाया था कि उसका पति वैवाहिक घनिष्ठता में कोई रुचि नहीं रखता था और पूरी तरह आध्यात्मिक साधनाओं में लीन था.

यह फैसला 24 मार्च 2025 को न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन और न्यायमूर्ति एम.बी. स्नेहलता की पीठ ने दिया. हाईकोर्ट ने मुवत्तुपुझा फैमिली कोर्ट द्वारा O.P. No. 224/2022 में पारित तलाक के आदेश को बरकरार रखा और पति की अपील को खारिज कर दिया. 

पति-पत्नी की शादी 23 अक्टूबर 2016 को हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी. पत्नी, जो एक आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं, ने आरोप लगाया कि शादी के शुरुआती दिनों से ही पति ने वैवाहिक संबंधों में कोई रुचि नहीं दिखाई. संतानोत्पत्ति के प्रति उदासीनता दिखाई और कभी भी परिवार बढ़ाने की इच्छा नहीं जताई. अत्यधिक धार्मिकता में लीन रहकर मंदिरों और पूजाओं में व्यस्त रहता था. अंधविश्वासों को अपनाने के लिए मजबूर करता था. पत्नी की उच्च शिक्षा में बाधा डालने की कोशिश की. उसकी शिक्षा के दौरान मिलने वाली छात्रवृत्ति का दुरुपयोग किया. पहले 2019 में तलाक की मांग की, लेकिन जब पत्नी ने तलाक की याचिका दाखिल की, तो उसने सुलह का आश्वासन दिया, जिसके बाद पत्नी ने O.P. No. 871/2019 वापस ले ली. लेकिन बाद में, पति का व्यवहार फिर वैसा ही हो गया.

कानूनी सवाल

क्या पति का वैवाहिक संबंधों में उदासीनता दिखाना और संतानोत्पत्ति में रुचि न लेना, मानसिक क्रूरता माना जा सकता है? क्या किसी को आध्यात्मिक गतिविधियों को अपनाने के लिए बाध्य करना मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आता है? भावनात्मक उपेक्षा, वैवाहिक घनिष्ठता की कमी और संवादहीनता तलाक का आधार बन सकते हैं, भले ही शारीरिक हिंसा न हुई हो? क्या फैमिली कोर्ट के फैसले में हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करने की जरूरत है?

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