CM की कुर्सी दो और अध्यक्ष पद लो... कर्नाटक कांग्रेस में सियासी संग्राम, यहां से भी ख़त्म होगी पार्टी की सत्ता?
कर्नाटक कांग्रेस में मुख्यमंत्री सिद्दारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच सत्ता संघर्ष तेज हो गया है. प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर तकरार ने पार्टी में गुटबाजी को उजागर कर दिया है. हाईकमान के हस्तक्षेप के बावजूद स्थिति अस्थिर बनी हुई है. पंचायत चुनावों से पहले नेतृत्व का यह संकट कांग्रेस के भविष्य पर गहरा असर डाल सकता है.;
कर्नाटक, जो कांग्रेस का सबसे मज़बूत गढ़ माना जाता है, वहां इन दिनों अंदरूनी घमासान तेज़ होता जा रहा है. एक ओर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया हैं, जो अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं, तो दूसरी ओर उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार हैं, जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ-साथ मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा भी पाल रहे हैं. यह टकराव सिर्फ दो नेताओं की व्यक्तिगत लड़ाई नहीं, बल्कि राज्य में कांग्रेस की स्थिरता पर बड़ा सवाल है.
हाल ही में दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान से मुलाकात कर लौटे शिवकुमार ने साफ किया कि वे तब तक प्रदेश अध्यक्ष का पद नहीं छोड़ेंगे, जब तक उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिलती. सिद्धारमैया खेमे के मंत्रियों ने 'एक व्यक्ति, एक पद' के सिद्धांत का हवाला देते हुए बदलाव की मांग की, लेकिन हाईकमान ने पंचायत चुनावों तक स्थिति यथावत रखने का संकेत दिया है. यह फैसले फिलहाल शिवकुमार के पक्ष में हैं, लेकिन अंदरूनी मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं.
शिवकुमार बनना चाहते हैं सीएम
इस संघर्ष ने पार्टी में फूट को और गहरा कर दिया है. एक तरफ शिवकुमार अपने संगठन कौशल और जनाधार का हवाला देकर खुद को अगला मुख्यमंत्री साबित करना चाहते हैं, वहीं सिद्धारमैया समर्थक उन्हें सत्ता की दौड़ से हटाना चाहते हैं. हनीट्रैप विवाद ने फिलहाल सिद्धारमैया खेमे की रणनीति को झटका दिया है, लेकिन उनके मंत्री अभी भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.
मंत्री पेश कर रहे अध्यक्ष पद की दावेदारी
लोक निर्माण मंत्री सतीश जरकीहोली जैसे नेताओं ने भी अध्यक्ष पद की दावेदारी पेश की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह संघर्ष सिर्फ दो नेताओं तक सीमित नहीं. कांग्रेस के भीतर एक नए नेतृत्व की तलाश और शक्ति संतुलन का खेल चल रहा है. जरकीहोली का मानना है कि 2028 विधानसभा चुनावों से पहले संगठन को मजबूत करने के लिए एक पूर्णकालिक अध्यक्ष जरूरी है.
दोनों नेताओं के लिए है अग्निपरीक्षा
अब सबकी निगाहें पंचायत चुनावों पर हैं, जो दोनों नेताओं के लिए अग्निपरीक्षा बनेंगे. अगर शिवकुमार पार्टी को जमीनी स्तर पर मज़बूत कर पाते हैं, तो उनका दावा और प्रबल होगा. लेकिन यदि पार्टी कमजोर होती है, तो सिद्धारमैया गुट को नया मौका मिल सकता है. इस सत्ता संग्राम ने एक बार फिर दिखा दिया है कि कांग्रेस के लिए सत्ता जितनी मुश्किल है, उतनी ही चुनौतीपूर्ण है उसे संभालना.