मां की गाली से लेकर सियासी हाईड्रोजन बम तक, कांग्रेस का दम या RJD चीनी कम - 16 दिन की वोटर अधिकार यात्रा का हासिल क्या?
राहुल गांधी के नेतृत्व में बिहार में निकाली गई वोटर अधिकार यात्रा ने विपक्षी एकता और लोकतंत्र के मुद्दों पर नई बहस छेड़ी. जानें यात्रा के उद्देश्य, विवाद, संगठनात्मक फायदा और बिहार की राजनीति पर इसका असर. 16 दिनों, 1300 किलोमीटर और 110 विधानसभा क्षेत्रों की इस यात्रा का पूरा विश्लेषण.;
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के नेतृत्व में बिहार में इंडिया गठबंधन (INDIA Bloc) ने "वोटर अधिकार यात्रा" निकाली. यह 16 दिनों तक चली और 25 जिलों व 110 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुज़री. लगभग 1300 किलोमीटर लंबी इस यात्रा का घोषित उद्देश्य था – चुनाव आयोग की मतदाता सूची से हटाए गए कथित 65 लाख से अधिक वोटरों के अधिकार की बहाली. राहुल गांधी ने इसे सिर्फ चुनावी मुद्दा नहीं, बल्कि "लोकतंत्र और संविधान की रक्षा" की नैतिक लड़ाई करार दिया.
यात्रा को विपक्ष ने "नैतिक लड़ाई" कहा, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक रणनीति भी साफ दिखी. 'वोट चोर, गद्दी छोड़' जैसे नारे लगे, रैलियों में संविधान और लोकतंत्र का हवाला दिया गया. यह एक तरह से BJP और चुनाव आयोग के खिलाफ संयुक्त हमला था, जिसमें जनता को भावनात्मक रूप से जोड़ने की कोशिश हुई. राहुल गांधी खुद को आम आदमी के नज़दीक दिखाने के लिए जमीन पर उतरे, जिससे यह संदेश गया कि यह सिर्फ राजनीति नहीं बल्कि अधिकारों की लड़ाई है.
विपक्षी एकता का मंच
यात्रा में कांग्रेस के बड़े नेताओं के अलावा RJD से तेजस्वी यादव, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, DMK के एमके स्टालिन, JMM के हेमंत सोरेन, शिवसेना (उद्धव गुट) के संजय राउत और वामपंथी दलों के नेता भी शामिल हुए. इससे विपक्षी एकता का प्रदर्शन हुआ. हालांकि, यह भी साफ दिखा कि INDIA गठबंधन की अंदरूनी खटास इस यात्रा में सामने आई – कुछ पार्टियों ने दूरी बनाए रखी.
संविधान और मताधिकार की दुहाई
राहुल गांधी ने बार-बार कहा कि हटाए गए मतदाताओं में दलित, पिछड़े, मुस्लिम और गरीब वर्ग शामिल हैं. उनका संदेश था – “यह सिर्फ बिहार नहीं, पूरे भारत के लोकतंत्र का मामला है.” गांधी मैदान से आंबेडकर की प्रतिमा तक की मार्च में उन्होंने संविधान और सामाजिक न्याय की विरासत को जोड़ा. यह एक सिम्बॉलिक मूव था, जिससे यात्रा को वैचारिक ताकत देने की कोशिश की गई.
कांग्रेस का खोया जनाधार और नई उम्मीद
बिहार में कांग्रेस लंबे समय से हाशिए पर रही है. इस यात्रा ने पार्टी के कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरने का काम किया. कार्यकर्ता, जो वर्षों से निष्क्रिय थे, फिर से सक्रिय होते दिखे. सवाल यह है कि क्या यह उत्साह वोटों में तब्दील होगा या नहीं. विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस को इस यात्रा से संगठनात्मक फायदा तो हुआ, लेकिन चुनावी स्तर पर असर सीमित रह सकता है.
राहुल गांधी का नया अवतार
यात्रा के दौरान राहुल गांधी का लुक और अंदाज़ चर्चा में रहा. सफेद टी-शर्ट और गमछा पहनकर वे खुली जीप में जनता से सीधे संवाद करते दिखे. मखाने के खेतों में जाकर किसानों से बात करना और सोशल मीडिया पर ग्रामीण जीवन की तस्वीरें शेयर करना, सबकुछ उनकी छवि को "जमीनी नेता" बनाने की रणनीति का हिस्सा था. राहुल गांधी ने कहा कि "99% बहुजन मेहनत करते हैं, पर फायदा 1% को मिलता है" यह बयान स्पष्ट तौर पर सामाजिक न्याय और आर्थिक असमानता को जोड़ने की कोशिश थी. साथ ही हाइड्रोजन बम वाला बयान काफी बवाल मचाया.
विवादों की परछाई
हर बड़े राजनीतिक आयोजन की तरह इस यात्रा के दौरान भी विवाद हुए. दरभंगा में मंच से पीएम मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी ने माहौल गरमा दिया. बीजेपी ने इसे "प्रधानमंत्री और बिहार का अपमान" बताया. वहीं, पुलिस कांस्टेबल के घायल होने और पटना में कार्यकर्ताओं की झड़प ने विपक्ष को रक्षात्मक स्थिति में ला दिया. साथ ही, DMK नेता स्टालिन की मौजूदगी ने भी विवाद खड़ा किया, क्योंकि उनके पुराने बयानों पर BJP ने कड़ा विरोध जताया. इसके साथ ही राहुल गांधी की बाइक रैली में भी एक शख्स ने आरोप लगाया कि मेरा बाइक छीना गया और कइयों की गाड़ी को बिना चाबी ही लॉक तोड़कर ले जाया गया.
क्या यात्रा से कांग्रेस को वास्तविक लाभ?
2020 विधानसभा चुनाव में जिन 67 सीटों को इस यात्रा में कवर किया गया, वहां कांग्रेस सिर्फ 9 सीट जीत सकी थी. विश्लेषकों का कहना है कि इस यात्रा ने कांग्रेस को RJD के बराबर खड़े होने का मौका तो दिया, लेकिन मतदाता आधार को मजबूत करने में अभी लंबा रास्ता तय करना है. संगठनात्मक मजबूती मिली है, लेकिन "वोट चोरी" के सबूतों को जनता ने गंभीरता से नहीं लिया – यह विपक्ष के लिए चुनौती है.
BJP और JDU का पलटवार
BJP और JDU ने इस यात्रा को चुनावी नौटंकी करार दिया. BJP ने आरोप लगाया कि यात्रा के बहाने बिहार और प्रधानमंत्री को गाली देकर उनका अपमान किया गया. वहीं JDU ने कहा कि वोट चोरी का आरोप बेबुनियाद है और जनता विकास के मुद्दे पर ही सरकार को चुनेगी. यह प्रतिक्रिया दिखाती है कि सत्ता पक्ष ने यात्रा को हल्के में नहीं लिया और इसे काउंटर करने के लिए आक्रामक रणनीति अपनाई.
बिहार की राजनीति पर असर
यात्रा ने बिहार की राजनीति में हलचल जरूर मचाई है. विपक्षी एकता का संदेश तो गया, लेकिन विभाजन की तस्वीर भी उभरकर सामने आई. कांग्रेस के लिए यह संगठनात्मक पुनर्जीवन का मौका है, वहीं RJD के लिए तेजस्वी यादव की स्थिति को और मजबूत करने का. सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी की यात्रा बिहार की राजनीति को स्थायी रूप से प्रभावित करेगी, या यह सिर्फ एक शॉर्ट-टर्म पॉलिटिकल इवेंट बनकर रह जाएगी.
इन मुद्दों पर था फोकस
राहुल गांधी की "वोटर अधिकार यात्रा" लोकतंत्र, संविधान और मताधिकार जैसे संवेदनशील मुद्दों पर केंद्रित थी. इसमें राजनीतिक प्रतीकवाद, विपक्षी एकता और विवाद – सबकुछ शामिल था. कांग्रेस को संगठनात्मक लाभ मिला, लेकिन चुनावी लाभ अभी अनिश्चित है. विपक्ष ने मुद्दा उठाया, BJP ने पलटवार किया और जनता ने इसे गौर से देखा. बिहार में आगामी चुनाव तय करेंगे कि यह यात्रा एक मोमेंटम क्रिएटर साबित हुई या सिर्फ एक राजनीतिक नौटंकी.