'निजी कमेंट कर फंसेगा तो खुद SC ही', न्यायाधीश प्रशांत के मामले पर दिल्ली HC के पूर्व जस्टिस एस एन ढींगरा ने कह डाली बड़ी बात

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार पर सुप्रीम कोर्ट की कठोर टिप्पणी और बाद में दो पैराग्राफ हटाने पर दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एस.एन. ढींगरा ने कहा कि किसी न्यायाधीश पर निजी टिप्पणी करने से सुप्रीम कोर्ट खुद भी संदेह के घेरे में आता है, क्योंकि हाईकोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति कोलिजियम की सिफारिश से होती है. उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश भी इंसान हैं, भगवान नहीं, और अक्सर अपने ईगो को संतुष्ट करने के लिए इस तरह की टिप्पणियां करते हैं.;

( Image Source:  Supreme court )
By :  संजीव चौहान
Updated On : 9 Aug 2025 12:18 PM IST

इन दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को लेकर देश की न्यायिक सेवा में खबरों का बाजार गरम है. तब से जबसे सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने जस्टिस प्रशांत कुमार को लेकर हैरतअंगेज टिप्पणी की है. हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12-13 न्यायाधीश-न्यायामूर्ति जैसे ही इस मसले को लेकर विरोध में खड़े होते दिखाई दिए उससे पहले ही, सुप्रीम कोर्ट की संबंधित दो सदस्यीय खंडपीठ ने अपने कठोरतम आदेश से दो पैराग्राफ हटा लिए, जिनको लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीशों में रोष व्याप्त हो गया था.

इस तमाम बवाल को लेकर स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने शुक्रवार को खास और लंबी बात की, दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस शिव नारायण ढींगरा (Delhi High Court Justice Shiv Narayan Dhingra) से. पूर्व न्यायाधीश ढींगरा बोले, “मैं अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं. हां जो मैंने अखबारों में देखा-पढ़ा सुना है उससे एक बात तो साफ हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश खुद को सर्वोपरि समझते हैं. एक बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट के जज काफी हद तक वकीलों के मश्विरे पर भी निर्भर होते हैं.”

सुप्रीम कोर्ट के जजों को वकील आकर पढ़ाते हैं

‘दरअसल इस झगड़े की जड़ यह है कि हमारे यहां स्पेशलाइजेशन नहीं है कि, फलां-फलां जज फलां फलां विशेष बेंच के मुकदमे देखेगा. हर जज को हर कानून नहीं पता होता है. हमारे यहां सुप्रीम कोर्ट का हर जज खुद अपने आपको ही हर चीज का एक्सपर्ट मानता है. उसे तो वकील आकर पढ़ाते हैं. उसकी अपनी तो कोई समझ नहीं होती है. हमारे यहां एक्सपर्ट विशेषज्ञ कोर्ट तो हैं ही नहीं. ऐसे बहुत से निर्णय हैं जो गलत हैं. जस्टिस कृष्णा अय्यर ने तो कहा भी था कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अंतिम इसलिए है क्योंकि उससे ऊपर की कोई कोर्ट ही नहीं है. अगर सुप्रीम कोर्ट से ऊपर भी कोई कोर्ट होती तो वह कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के पचास प्रतिशत से ज्यादा फैसले खारिज कर देती. सुप्रीम कोर्ट ने अगर अब जस्टिस प्रशांत कुमार के मामले में दिए अपने फैसले से दो पैराग्राफ निकाल भी दिए तो यह कोई बड़ी बात नहीं है. सुप्रीम कोर्ट को लगा कि जज के खिलाफ निजी टिप्पणी देने का उसका अधिकार नहीं है. फैसले पर वह (सुप्रीम कोर्ट) टिप्पणी दे सकता है. तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय से दो पैराग्राफ खुद ही हटा लिये. यही कानून भी कहता है. कानून भी कहता है कि अगर कोई फैसला गलत लगता है तो उस फैसले पर टिप्पणी दीजिए न कि, किसी जज के ऊपर निजी टिप्पणी की जा सकती है.’

किसी जस्टिस पर निजी कमेंट कर फंसेगा तो खुद सुप्रीम कोर्ट ही

स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा ने कहा, “मान भी लिया जाए कि अगर कोई जज या न्यायाधीश लायक-नालायक है. तो भी तो उसके ऊपर निजी टिप्पणी करने से फंसेगा तो पहले खुद सुप्रीम कोर्ट ही. क्योंकि किसी हाईकोर्ट का जो जज आज सुप्रीम कोर्ट को नालायक लग रहा है, उस जज का नाम भी तो हाईकोर्ट के लिए सुप्रीम कोर्ट के ही कोलिजियम ने सिफारिश करके भेजा होगा. इसका मतलब जिस जज के ऊपर सुप्रीम कोर्ट आज बेतुकी निजी टिप्पणी कर रहा है. तो ऐसे में उस जज से पहले तो खुद वही सुप्रीम कोर्ट खुद के बारे में सोचे कि किसी जज के ऊपर निजी टिप्पणी करने से सुप्रीम कोर्ट खुद भी तो संदेह के घेरे में आता है. क्योंकि हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति तो सुप्रीम कोर्ट के कोलिजियम की सिफारिश पर ही होती है.”

सुप्रीम कोर्ट का कोलिजियम भी संदिग्ध ही था क्या?

पूर्व न्यायाधीश कहते हैं कि, “इस बवाल का कारण बने सुप्रीम कोर्ट के आदेश में लिखा गया था कि, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को रिटायरमेंट तक दीवानी मुकदमे सुनने को न दिए जाएं. इससे मेरी नजर में तो सुप्रीम कोर्ट यह भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से साबित करती है कि, जो जज आज अपने किसी कानूनी पक्ष में कमजोर है भी तो, वह अपने पूरे बचे हुए न्यायिक सेवाकाल में भी संबंधित विषय में कमजोर ही बना रहेगा. मतलब, ऐसा जज कभी कुछ आइंदा भी सीखने के भी लायक नहीं है. यानी कि कोलिजियम के जरिए ऐसे जज को हाईकोर्ट भेजने की सिफारिश करने वाला सुप्रीम कोर्ट का कोलिजियम भी संदिग्ध ही था क्या!

हां, सुप्रीम कोर्ट अगर इस मामले में यह कहता कि जज किसी विषय विशेष के कानून में कमजोर है तो उसे, कानून का प्रशिक्षण लेने के लिए नेशनल न्यायिक प्रशिक्षण केंद्र में भेज दीजिए. तब भी बात समझ में आती है. ताकि संबंधित जज वहां क्रिमिनल लॉ पढ़कर आए. यह क्या बात हुई कि सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को उनकी सेवानिवृत्ति तक के लिए दीवानी मुकदमों की अदालत ही न देने का फरमान जारी कर डाला. ऐसी टिप्पणी तो आइंदा भी वह (सुप्रीम कोर्ट) फिर किसी के भी खिलाफ कर सकते हैं.”

... तो हमारी न्यायिक सेवा में गदर मच जाएगा

विशेष बातचीत के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शिव नारायण ढींगरा आगे बोले, “अपने ही जजमेंट की करेक्शन तो सुप्रीम कोर्ट ने ही की. जोकि उसका अधिकार है. हां, सुप्रीम कोर्ट ने महसूस किया कि उसने गलत किया तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में से कुछ मैटर हटा भी लिया. अगर किसी जज को जिस विषय की विशेज्ञता हासिल नहीं है, और उसे उससे संबंधित मुकदमे सुनवाई के लिए दिए जाना ही बंद हो गया, तो हमारी न्यायिक सेवा में गदर मच जाएगा. वैसे तो सुप्रीम कोर्ट के जज खुद को भगवान ही समझते हैं. जबकि मेरी नजर में वे भी एक इंसान क्या आम-इंसान ही हैं. हमारे देश के वकीलों और सरकार ने चढ़ा रखा है इन्हें कि वे भगवान से कम नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के जज कुछ भी कर सकते हैं. जहां तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार की है तो, एक बार को तो उन्हें जनता की नजरों में तो गिरा ही दिया गया है कि, वे एक ऐसे जज हैं जिन्हें क्रिमिनल लॉ नहीं आता है. लेकिन यह करना तो सुप्रीम कोर्ट की फितरत है.”

अपने ईगो को सैटिस्फाई करते हैं SC के जज

स्टेट मिरर हिंदी से खास बातचीत में पूर्व जस्टिस एस एन ढींगरा खुद से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हुए बोले, “मुझे याद आ रहा है कि 1990 के दशक में जब पूर्व केंद्रीय उर्जा मंत्री कल्पनाथ राय की अपील सुप्रीम कोर्ट सुन रहा था, मिस्टर अरुण जेटली वकील के तौर पर बहस कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ अरुण जेटली को सुनकर टिप्पणी कर दी कि जज एस एन ढींगरा को तो, क्रिमिनल लॉ की ‘एबीसी’ ही नहीं आती है. तब मैं सेशन जज हुआ करता था. इस तरह की टिप्पणियां देने में सुप्रीम कोर्ट को बहुत मजा आता है. ऐसी टिप्पणियां देकर वह अपने ईगो को सैटिस्फाई करते हैं. मैंने जो कुछ कहा है वह सब तथ्यों के आधार पर कहा है. इसके अलावा मैं इस विषय पर अब और कुछ नहीं कहूंगा.”

यहां इसका जिक्र करना जरूरी है कि आखिर यह बवाल शुरू कहां से कब और क्यों हुआ? दरअसल 4 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ (जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को फटकार लगाई थी. पीठ ने कहा था कि जस्टिस प्रशांत कुमार ने खुद के लिए दयनीय स्थिति बना ली है. और उन्होंने न्याय का मजाक उड़ाया है. शीर्ष अदालत ने कड़ी आपत्ति जताई कि पैसों के लेनदेन में बकाया राशि के एक विशुद्ध दीवानी मामले में आपराधिक मामला दायर किया गया, और इलाहाबाद हाईकोर्ट को इसमें कुछ भी गलत नहीं दिखाई दिया. सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट जज ने सिविल विवाद में दर्ज ‘आपराधिक विश्वासघात’ के लिए आपराधिक मामला स्वीकार करने में कुछ भी गलत नहीं पाया.

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