Explainer : क्यों बार-बार फटते हैं बादल? क्या है इसकी वैज्ञानिक वजह, कैसे आती है अचानक बाढ़, और कैसे बचें इस विनाश से

हिमाचल प्रदेश में मंगलवार को 11 स्थानों पर बादल फटने से मंडी में 10 लोगों की मौत हुई. 20 मकान और 15 पशुशालाएं क्षतिग्रस्त हो गईं. 406 सड़कें बंद हैं, 1515 ट्रांसफार्मर खराब हुए और 171 पेयजल योजनाएं प्रभावित हुईं. मंडी के संधोल में सबसे ज्यादा 223.6 मिमी बारिश दर्ज की गई.;

Edited By :  प्रवीण सिंह
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पिछले कुछ दिनों से हिमाचल प्रदेश में बादल फटने (Cloudburst) की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं. कुल्लू, चंबा और मंडी जैसे पहाड़ी इलाकों में अचानक भारी बारिश, नदियों का उफान और भूस्खलन जैसी आपदाएं लोगों की जान और संपत्ति पर खतरा बनकर टूट रही हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर बादल फटते क्यों हैं?

दरअसल, बादल फटना एक अत्यधिक मौसमीय घटना होती है, जब सीमित क्षेत्र में बहुत ही कम समय में अत्यधिक बारिश होती है. यह तब होता है जब वायुमंडल में अत्यधिक नमी अचानक एक जगह जमा हो जाती है और हवा की गति या तापमान में बदलाव के कारण वह एक ही स्थान पर फट जाती है. इसका प्रभाव किसी विस्फोट जैसा होता है - कुछ ही मिनटों में इतनी बारिश होती है जितनी सामान्यत: कई दिनों में होती है.

हिमालयी क्षेत्र में ऊंचाई, टेढ़े-मेढ़े भूगोल और तेजी से बदलता मौसम इसे और भी गंभीर बना देता है. जलवायु परिवर्तन और मानवीय दखल ने भी इन घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाया है, जिससे ये इलाके अब बार-बार प्रकृति के क्रोध का सामना कर रहे हैं.

इस रिपोर्ट में पढ़िए - बादल फटने का विज्ञान, हिमालयी क्षेत्रों में इसकी अधिकता के पीछे की वजहें, इससे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएं, और बचाव के रास्ते.

क्या होता है बादल फटना (Cloudburst)?

यह कोई विस्फोट नहीं, बल्कि एक साथ भारी मात्रा में बारिश होने की घटना है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, जब किसी सीमित क्षेत्र (लगभग 10 वर्ग किलोमीटर) में 1 घंटे में 100 मिमी या उससे अधिक बारिश होती है, तो उसे बादल फटना कहा जाता है. इतनी अधिक मात्रा में पानी जब कुछ ही मिनटों में गिरता है, तो ज़मीन उसे सोख नहीं पाती और पानी तेजी से बहने लगता है, जिससे अचानक बाढ़ (flash flood), भूस्खलन, और बुनियादी ढांचे का ध्वस्त होना आम हो जाता है.

पहाड़ी इलाकों में ही क्यों फटते हैं सबसे ज्यादा बादल?

1. Orographic Lift (भौगोलिक उठान)

पहाड़ों से टकराकर हवा ऊपर उठती है. इस दौरान अगर हवा में नमी हो, तो ऊपर जाकर ठंडी होकर वो बादल बनाती है. यदि ये प्रक्रिया तेज़ी से होती है, तो बादल अचानक भारी बारिश छोड़ते हैं.

2. तेज़ ढलान - तेज़ तबाही

पानी पहाड़ों में रुकता नहीं, सीधे घाटियों की तरफ बहता है. जब एकसाथ इतनी बारिश होती है तो ये पानी नदियों और नालों को उफान पर ले आता है.

3. जलवायु परिवर्तन का असर

अब पहाड़ों में रिकॉर्ड गर्मी पड़ रही है, जिससे वायुमंडलीय अस्थिरता बढ़ रही है. नमी और गर्म हवा की तेजी से ऊपर चढ़ने की वजह से बादल फटने की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं.

 

बादल फटने की घटनाएं - कब और क्यों होती हैं?

कारण

विवरण

मानसून का मौसम (जून-सितंबर)

इस दौरान हवा में नमी सबसे ज्यादा होती है

गर्म और ठंडी हवाओं का टकराव

गर्म हवा ऊपर उठती है, नमी ले जाती है, और ठंडी हवा से टकराकर भारी बारिश का कारण बनती है

कम दबाव का क्षेत्र

गर्म और नम हवाएं तेजी से ऊपर जाती हैं और बादल जमकर बरसते हैं

स्थानीय जटिल भूगोल

संकरी घाटियों में बादल अटक जाते हैं और बारिश का दबाव वहीं बनता है

कैसे आती है बाढ़ और तबाही?

  • अचानक जलस्तर में उछाल – नाले, जो सामान्यतः छोटे होते हैं, भारी बारिश के कारण बड़ी नदियों जैसे दिखने लगते हैं
  • मलबे और पत्थरों के साथ बहाव – बारिश के साथ-साथ मिट्टी, चट्टानें और पेड़ बहकर नीचे आते हैं और रास्ते में आने वाली हर चीज को तबाह कर देते हैं
  • सड़कें, पुल और खेत उजड़ जाते हैं – कनेक्टिविटी टूट जाती है, गांवों में फंसे लोग बाहर नहीं निकल पाते

कैसे करें बचाव? जानिए जरूरी उपाय

उपाय

विवरण

मौसम पूर्वानुमान पर ध्यान दें

IMD और NDMA की एडवाइजरी पर गंभीरता से अमल करें

स्थानीय अलर्ट सिस्टम

SMS, सायरन या वॉइस अलर्ट से समय पर सूचना मिले

पुनर्वास और बचाव योजनाएं

हर गांव और शहर में पहले से नक्शे, सुरक्षित स्थान और राहत सामग्री तैयार हो

इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करें

जल निकासी, स्टॉर्म वॉटर चैनल, और स्थायी पुलों का निर्माण

स्थानीय समुदाय को प्रशिक्षित करें

लोगों को आपदा प्रबंधन की बेसिक ट्रेनिंग दी जाए

भारत की प्रमुख बादल फटने की घटनाएं और उनका असर

वर्ष

स्थान

नुकसान

1998

मालपा, उत्तराखंड

225 मौतें (60 कैलाश मानसरोवर यात्री सहित)

2004

बद्रीनाथ मंदिर

17 मौतें, मंदिर क्षेत्र क्षतिग्रस्त

2005

मुंबई

900+ मौतें, 1000 करोड़ से अधिक का नुकसान

2013

केदारनाथ

5,000+ मौतें, पूरी घाटी तबाह

2025

कुल्लू, हिमाचल

घर, स्कूल, सड़कें बहीं, 3 लोग लापता

क्या सीखना चाहिए?

हिमाचल और उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पहाड़ी राज्यों में बादल फटना अब सामान्य आपदा नहीं रह गई है, बल्कि यह जलवायु संकट की गंभीर चेतावनी है. समय रहते अगर पूर्व चेतावनी तंत्र, स्थानीय स्तर पर तैयारी और ठोस प्रशासनिक रणनीति नहीं बनाई गई, तो हर मानसून इसी तरह डर लेकर आएगा.

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