EXCLUSIVE: कभी मछलियों को दाना तो कभी जादू-टोना, श्रीप्रकाश शुक्ला तक पहुंचने के लिए IG STF को क्या- क्या पापड़ बेलने पड़े थे?
1990 के दशक के कुख्यात गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला ने नेताओं-माफियाओं के लिए सुपारी किलिंग की. यूपी सीएम कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी लेने पर STF सक्रिय हुई। IG विक्रम सिंह के नेतृत्व में कई नाकाम कोशिशों और ज्योतिषी-टोटके तक अपनाने के बाद 22 सितंबर 1998 को गाजियाबाद वसुंधरा में मुठभेड़ में शुक्ला व उसके दो शूटर ढेर हुए.;
याद करिए 1990 के दशक का अंतिम दौर यानी 1997-1998 और उस दौर के कुख्यात शूटर-बदमाश श्रीप्रकाश शुक्ला को. वही श्रीप्रकाश शुक्ला जिसका खुद का हथियार-गुंडई के अलावा और कुछ नहीं था. वही गोरखपुरिया गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला जिसे उस जमाने के यूपी बिहार के सफेदपोश ‘कांटे से कांटा’ निकलवाने के लिए, किसी कार की स्टेपनी की तरह इस्तेमाल किया करते थे.
गुजरे कल का वही बदनाम और अब करीब 28 साल पहले यूपी पुलिस एसटीएफ द्वारा ठंडा किया जा चुका गुंडा श्रीप्रकाश शुक्ला, जो माफियाओं और नेताओं के ‘पे-रोल’ पर रहकर उनकी न केवल “चाकरी” करता था. अपितु जिस नेता की ‘रोटियों’ पर वह पल रहा होता उसी नेता के एक इशारे पर, श्रीप्रकाश शुक्ला (Gangster Shri Prakash Shukla) उन नेताजी के जी का जंजाल बने दूसरे दुश्मन-नेताजी को, यही श्रीप्रकाश शुक्ला (Shri Prakash Shukla Encounter) पलक झपकते गोलियों से भून डालने के लिए तब बदनाम था.
श्रीप्रकाश शुक्ला कितना भी बड़ा तुर्रम-खा रहा होगा लेकिन...
ऐसा श्रीप्रकाश शुक्ला अपने आप में कितना ही बड़ा या तुर्रम-खां बदमाश क्यों न रहा हो. कानून और पुलिस की नजर में किसी भी खूंखार और समाज के दुश्मन अपराधी की जिंदगी बहुत दिन की नहीं होती है. सो जिस स्टाइल में श्रीप्रकाश शुक्ला (Shri Prakash Shukla) बदमाशी करता था. उसी स्टाइल में उस जमाने में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह को ही ठिकाने लगाने की करोड़ों रुपए की ‘सुपारी’ जब बौराए श्रीप्रकाश शुक्ला ने उठा ली. तो उन्हीं यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Chief Minister Kalyan Singh) की पुलिस की नई-नई बनी स्पेशल टास्क फोर्स (UP STF) ने, 22 सितंबर 1998 को यूपी से दिल्ली तक अपनी जिंदगी की ‘भीख’ मांगते फिर रहे श्रीप्रकाश शुक्ला को, दिल्ली से सटे गाजियाबाद के वसुंधरा इलाके में जाकर खुले मैदान में घेर लिया.
अजय राज शर्मा और विक्रम सिंह की जोड़ी का खौफ
तब उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक थे वरिष्ठ आईपीएस के एल गुप्ता. उन्हीं दिनों यूपी पुलिस की नई-नई बनी एसटीएफ के प्रमुख थे 1966 बैच यूपी कैडर के दबंग बेखौफ आईपीएस अजय राज शर्मा. एसटीएफ में नंबर-दो पायदान के बॉस हुआ करते थे अजय राज शर्मा के बेहद करीबी विश्वासपात्र 1974 बैच के आईपीएस और देश के गजब के निशानेबाज, अपराधियों के लिए “अकाल-मौत” का पहला नाम विक्रम सिंह. वही विक्रम सिंह जो कालांतर में (मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल) उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक भी बने.
क्या सच में श्रीप्रकाश शुक्ला को था यकीन कि वह पुलिस के हाथ नहीं आएगा?
इन्हीं यूपी एसटीएफ के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक से जब श्रीप्रकाश शुक्ला एनकाउंटर की अब तक दबी पड़ीं परतें खोलने की मंशा से स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ‘पॉडकास्ट’ के लिए मिले, तो वह हैरतअंगेज जानकारियां कैमरे मे रिकॉर्ड हो गईं, जिन्हें सुनकर उत्तर प्रदेश पुलिस में अतीत के कई ‘बांक-बहादुर’ अफसरों को सांप सूंघ गया. दुर्दांत श्रीप्रकाश शुक्ला के खौफनाक अंत की इनसाइड स्टोरी पर बेबाकी से बोलते हुए यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह ने कहा,
“श्रीप्रकाश शुक्ला भले ही खूंखार रहा हो. उसने जितना आतंक मचाया उसकी उतनी ही दुर्गति-दुर्दशा से मौत भी हुई. बेशक उस तक यूपी पुलिस एसटीएफ को पहुंचने के लिए क्यों न पापड़ बेलने पड़े हों. मगर जो पापड़ बेले या मेहनत मशक्कत यूपी एसटीएफ ने की. उस सबकी की कीमत 22 सितंबर 1998 को श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके संग एनकाउंटर में ढेर उसके दो शूटर्स की मौत से वसूल कर पूरी कर ली गई.” श्रीप्रकाश शुक्ला को उम्मीद थी कि वह आसानी से पुलिस के हाथ नहीं आएगा? इसमें कितनी सच्चाई है?
ज्योतिषी का टोटका और STF की जंग: कैसे मिली आख़िरी कामयाबी?
स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में यूपी एसटीएफ के पहले आईजी रहे डॉ. विक्रम सिंह बोले, “हां, इसमें शक नहीं है कि हमें उसके करीब पहुंचने की कोशिशों में कई बार असफलता ही हाथ लगी. सफलता तो उसी दिन मिली जब 22 सिंतबर 1998 को श्रीप्रकाश शुक्ला अपने दो साथी विश्वासपात्र शार्प-शूटर्स के साथ गाजियाबाद के थाना इंदिरापुरम इलाके में वसुंधरा क्षेत्र में हुई खूनी मुठभेड़ में ढेर कर लिया. हालांकि, एसटीएफ ने तब भी उसे सरेंडर कराने की हर-संभव कोशिश की थी. मगर वह इसी जिद पर अड़ा रहा कि सरेंडर नहीं करेगा चाहे उसकी जान पुलिस मुठभेड़ में क्यों न चली जाए.”
श्रीप्रकाश शुक्ला को मुठभेड़ में ढेर करने से उसके करीब तक पहुंचने की कोशिशों का एक आंखों-देखा किस्सा बयान करते हुए डॉ. विक्रम सिंह (IPS Dr Vikram Singh) बोले, “हम उसे जिस शिद्दत से तलाश रहे थे वह उसी शिद्दत से हमसे दूर भागते रहने में कामयाब होता जा रहा था. परेशान होकर मैंने तो उसके करीब पहुंचने के लिए जिसने जैसा कहा वैसा भी किया. इन्हीं तमाम कोशिशों के बीच एक दिन नौबत यहां तक आ पहुंची कि मुझे किसी ज्योतिषी के कहने पर एक टोटका करने, लखनऊ स्थित गोमती नदी के तट पर भी जाना पड़ा. वह टोटका भी दो बार फेल हो गया. तीसरी बार में वह टोटका पास हुआ. और तभी हमारी टीमों को इशारे मिलने शुरू हो गए कि अब श्रीप्रकाश शुक्ला हमारे आसपास बहुत जल्दी आ फटकेगा. वही हुआ भी. 22 सितंबर 1998 को श्रीप्रकाश और यूपी एसटीएफ जब पहली बार आमने-सामने आए, तो वह तारीख श्रीप्रकाश शुक्ला की जिंदगी की अंतिम तारीख कहिए या फिर अंतिम दिन सिद्ध हुआ.”