10 साल में 193 नेताओं पर केस दर्ज, लेकिन सजा सिर्फ 2 को... क्या विपक्षी नेताओं को ही टारगेट करती है ED?
चुनाव के समय विपक्षी दलों के नेताओं पर ईडी की छापेमारी एक विवादास्पद विषय रहा है. विपक्षी दल अक्सर आरोप लगाते हैं कि सत्तारूढ़ सरकार राजनीतिक लाभ के लिए केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करती है. केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि पिछले 10 सालों में ईडी ने 193 केस दर्ज किए हैं, जिसमें से सजा सिर्फ 2 नेताओं को हुई है.;
ED Raids During Elections, Opposition vs Government: विपक्षी नेताओं के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) की छापेमारी, खासकर चुनाव के समय, एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर लंबे समय से बहस होती रही है. विपक्षी दल अक्सर आरोप लगाते हैं कि सत्ताधारी पार्टी ईडी और अन्य केंद्रीय एजेंसियों (जैसे सीबीआई) का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए करती है. खासकर चुनाव से पहले ऐसी कार्रवाइयां बढ़ जाती हैं, ताकि विपक्षी नेताओं की छवि खराब हो, उनकी चुनावी तैयारियों में बाधा पड़े, या उन्हें कानूनी उलझनों में फंसाया जा सके. उदाहरण के लिए, हाल के वर्षों में दिल्ली, झारखंड, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी की कार्रवाइयां चुनाव से ठीक पहले देखी गई हैं.
केंद्र सरकार के मुताबिक, 10 साल में 193 नेताओं के खिलाफ केस दर्ज किए गए, जिसमें से केवल 2 को सजा मिली है. हालांकि, किसी को भी निर्दोष करार नहीं दिया गया. जिन दो लोगों को सजा मिली है, उनमें एक मामला 2016-17 और दूसरा मामला 2019-20 का है. यह जानकारी केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने संसद में माकपा सांसद एए रहीम की तरफ से पूछे गए सवाल के जवाब में कही.
महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान ईडी की छापेमारी
बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान क्रिप्टो फंड घोटाला मामले में 20 नवंबर 2024 को छत्तीसगढ़ में ऑडिट कर्मचारी के यहां ईडी ने छापा मारा था. यह मामला राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की सांसद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और महाराष्ट्र कांग्रेस इकाई के तत्कालीन अध्यक्ष नाना पटोले से जुड़ा हुआ था. इसके साथ ही, झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान से ठीक एक दिन पहले 12 नवंबर 2024 को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कथित बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर ईडी ने झारखंड और पश्चिम बंगाल में 17 स्थानों पर रेड मारी थी.
2015 से 2024 तक ईडी ने कितने मामले दर्ज किए?
ईडी ने 2015-16 में 10, 2016-17 में 14, 2017-18 में 7, 2018-19 में 11, 2019-20 में 26, 2020-21 में 27, 2021-22 में 26, 2022-23 में 32, 2023-24 में 27 और 2024 के फरवरी तक 13 मामले दर्ज किए हैं.
विपक्षी नेताओं पर केंद्रित होती है ईडी की कार्रवाइयां
बता दें कि कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि ईडी की कार्रवाइयां विपक्षी नेताओं पर केंद्रित होती हैं। जैसे, 2014 से 2022 के बीच ईडी द्वारा की गई जांच में 95 फीसदी से अधिक मामले विपक्षी नेताओं से जुड़े थे. ऐसे में यह सवाल उठाता है कि क्या यह संयोग है या सुनियोजित रणनीति.
चुनाव के समय कार्रवाई पर विपक्ष-सरकार में तकरार
चुनाव के दौरान राजनीतिक माहौल गरम होता है. इस समय किसी भी कार्रवाई का प्रभाव बढ़ जाता है. ईडी की रेड या समन को विपक्षी दल 'प्रतिशोध की राजनीति' करार देते हैं, जबकि सत्ताधारी पक्ष इसे 'कानून का शासन' और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई बताता है. मिसाल के तौर पर, 2023 में राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेताओं पर छापेमारी और 2024 में झारखंड में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को विपक्ष ने राजनीति से प्रेरित बताया.कानूनी प्रक्रिया या दुरुपयोग?
ईडी के पास मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत व्यापक अधिकार हैं, जिसके आधार पर वह जांच और छापेमारी करती है। सत्ताधारी पक्ष का दावा है कि ये कार्रवाइयाँ कानूनी सबूतों पर आधारित होती हैं। लेकिन विपक्ष का कहना है कि कई मामलों में जाँच लंबे समय तक चलती है, सजा कम होती है (जैसे, 193 मामलों में सिर्फ 2 को सजा का उल्लेख), और इसका मकसद केवल परेशान करना होता है।
चुनाव से पहले ऐसी रेड से विपक्षी नेताओं की छवि पर असर पड़ सकता है, भले ही वे दोषी साबित न हों। यह मतदाताओं के बीच संदेह पैदा कर सकता है, जो सत्ताधारी दल के लिए फायदेमंद हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को दी नसीहत
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2023 में तृणमूल कांग्रेस (TMC) विधायक पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि ईडी को दोषसिद्धि दर खराब है. किसी को अनिश्चितकाल तक विचाराधीन बंदी नहीं रख सकते. वहीं, अगस्त 2024 में शीर्ष अदालत ने कहा कि 10 सालों में ईडी ने 5000 केस दर्ज किए, जिसमें से 40 मामलों में दोषसिद्धि हुई.
ईडी ने 2019 से लेकर 2024 तक कितनी शिकायतें दर्ज कीं?
सरकार ने दिसंबर 2024 को संसद में बताया कि ईडी ने 1 जनवरी 2019 से 31 अक्टूबर 2024 के बीच 911 शिकायतें दर्ज कीं. वहीं, 654 का ट्रायल हुआ, जिसमें से 42 मामलों में दोषसिद्धि हुई.
कानूनी प्रक्रिया है या राजनीतिक हथियार?
कुल मिलाकर, ईडी की रेड के समय और लक्ष्य को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं है कि यह केवल राजनीतिक दुरुपयोग है, लेकिन आंकड़े और समय संदेह पैदा करते हैं. यह भी सच है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई जरूरी है. अगर सबूत हों तो समय की परवाह नहीं की जानी चाहिए. फिर भी, जब ये कार्रवाइयां चुनाव के ठीक पहले बढ़ती हैं, तो यह स्वाभाविक रूप से सवाल उठाता है कि क्या यह कानूनी प्रक्रिया है या राजनीतिक हथियार.