'वन नेशन वन इलेक्शन' के बाद देश का कितना होगा फायदा, जानें बीच में सदन या विधानसभा भंग होने पर क्या होगा?
अगर देश में 'वन नेशन वन इलेक्शन' लागू हो जाता है और पांच साल से पहले अगर लोकसभा या विधानसभा भंग हो जाती है तो फिर से मध्यावधि चुनाव होंगे। मान लीजिए अगर एक साल बाद मध्यावधि चुनाव होंगे तो उसका कार्यकाल बचे हुए चार साल के लिए ही होगा। फिर पांच साल बाद फिर से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे।;
केंद्र की मोदी कैबिनेट ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसे लेकर केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में बिल पेश करेगी। इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि देश में 'वन नेशन वन इलेक्शन' हर हाल में 2029 से पहले लागू होगा।
बता दें, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली कमेटी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि पहले कदम में लोकसभा और राज्यसभा चुनाव को एक साथ कराना चाहिए। कमेटी ने सिफारिश की थी कि लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ संपन्न होने के 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव हो जाने चाहिए।
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन?
'वन नेशन वन इलेक्शन' का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हों। आसान शब्दों में कहा जाए तो देश की सभी 543 लोकसभा सीटों और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ चुनाव होंगे। अब आप एक ही दिन सांसद और विधायक चुनने के लिए वोट कर सकते हैं। विधायक मुख्यमंत्री का चयन करेंगे और सांसद प्रधानमंत्री का। इसका सीधा मतलब है कि आप एक ही दिन मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री चुनने के लिए वोट कर सकते हैं।
समय से पहले लोकसभा या विधानसभा भंग होने पर क्या होगा?
अगर देश में 'वन नेशन वन इलेक्शन' लागू हो जाता है और पांच साल से पहले अगर लोकसभा या विधानसभा भंग हो जाती है तो फिर से मध्यावधि चुनाव होंगे। मान लीजिए अगर एक साल बाद मध्यावधि चुनाव होंगे तो उसका कार्यकाल बचे हुए चार साल के लिए ही होगा। फिर पांच साल बाद फिर से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे।
देश को क्या होगा फायदा?
'एक देश एक चुनाव' से बाद बाद चुनाव कराने में जो करोड़ों खर्च होते हैं वह कम हो जायेगा। साथ ही वोटिंग परसेंट भी बढ़ेगा। अधिकारियों का समय बचेगा और सरकारें राज्य और केंद्र के विकास कार्यों पर ध्यान देगी। और आर्थिक विकास में तेजी आएगी।
पहले भी हो चुके हैं चुनाव
एक देश और एक चुनाव भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। आजादी के बाद 1947 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे। फिर 1952, 1957, 1962 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन जैसे जैसे राज्य बनते गए उनके कारण या और किसी वजह से चुनावों के समय में बदलाव होता गया।
क्षेत्रीय दल क्यों कर रहे हैं विरोध?
इसे लेकर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बसपा और सपा इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी है। साथ ही क्षेत्रीय पार्टियों में भय है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे तो राष्ट्रीय मुद्दे बड़े हो जायेंगे और वे स्थानीय मुद्दों को ढंग से उठा नहीं पाएंगे।
कमेटी में कौन-कौन हैं सदस्य?
इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं। सदस्यों में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, डीपीए पार्टी के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग पूर्व अध्यक्ष इनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी हैं।