क्या है MUDA केस? सिद्धारमैया की याचिका खारिज, चल सकता है मुकदमा
कर्नाटक हाई कोर्ट ने आज यानी मंगलवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की याचिका पर अपना फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि तमाम दलीलों को सुनने के बाद सिद्धारमैया की याचिका खारिज कर दी. इस याचिका में मुख्यमंत्री मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) साइट आवंटन मामले में उनके खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत की मंजूरी की वैधता को चुनौती दी थी.;
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ चल रही जांच के लिए राज्यपाल की मंजूरी को चुनौती दी थी. यह मामला उनके पिछले कार्यकाल के दौरान मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा साइट आवंटन में अनियमितताओं से जुड़ा हुआ है, जहां उन पर आरोप है कि उन्होंने नियमों का उल्लंघन करते हुए अपनी पत्नी को प्राइम लोकेशन में भूमि आवंटित कराने में मदद की थी.
क्या है MUDA मामला?
MUDA साइट आवंटन विवाद में सिद्धारमैया की पत्नी बी एम पार्वती को मैसूर के एक प्रमुख इलाके में भूमि आवंटित की गई थी. यह आवंटन उस भूमि के बदले में किया गया था जिसे MUDA ने उनसे अधिग्रहित किया था. आरोप है कि पार्वती को मिली भूमि की कीमत उनकी जमीन के मुकाबले कहीं अधिक थी. यह भी आरोप लगाया गया कि इस प्रक्रिया में अनियमितता की गई थी. विवादित योजना के तहत, MUDA ने पार्वती को 50:50 अनुपात में उनकी 3.16 एकड़ भूमि के बदले विकसित भूमि का आवंटन किया था.
हाईकोर्ट का फैसला
हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने मुख्यमंत्री की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि राज्यपाल द्वारा दी गई अभियोजन की मंजूरी कानून के अनुसार है. न्यायाधीश नागप्रसन्ना ने कहा कि इस मामले में लगाए गए आरोपों की जांच जरूरी है, खासकर जब लाभार्थी मुख्यमंत्री के परिवार से हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यपाल ने विवेकपूर्ण तरीके से मंजूरी दी है और इसमें किसी भी तरह की कानूनी त्रुटि नहीं है.
सिद्धारमैया की प्रतिक्रिया और आगे की अपील
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इस फैसले के खिलाफ अपील करने की योजना बना रहे हैं. उनकी कानूनी टीम एक डबल बेंच के समक्ष याचिका दायर करेगी और अदालत से जांच पर रोक लगाने की मांग कर सकती है. सिद्धारमैया का मानना है कि राज्यपाल की मंजूरी कानूनी रूप से अस्थिर और बाहरी दबावों से प्रभावित थी.
शिकायतकर्ता की प्रतिक्रिया
शिकायतकर्ताओं में से एक टीजे अब्राहम ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के लिए एक बड़ी जीत बताया. उन्होंने कहा कि न्यायाधीश ने विचार और विभिन्न न्यायिक निर्णयों को पढ़ने के बाद यह आदेश दिया है. अब्राहम का मानना है कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है जो न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.