नो-डिटेंशन पॉलिसी पर लगी रोक, इस बदलाव से कैसे पड़ेगा बच्चों के भविष्य पर असर
केंद्र ने नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने का फैसला लिया है. हालांकि,सरकार ने साफ किया है कि किसी भी बच्चे को उसकी शिक्षा पूरी होने तक किसी भी स्कूल से नहीं निकाला जा सकता है.;
केंद्र सरकार ने स्कूली शिक्षा में एक बड़ा बदलाव किया है. इसमें केंद्र के स्कूलों में क्लास 5 और 8 के लिए 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' को खत्म कर दिया है. यानी अब टीचर साल के आखिर में होने वाले एग्जाम पास न करने वाले स्टूडेंट्स को फेल कर सकते हैं.
साल 2019 में राइट टू एजुकेशन एक्ट (आरटीई) में संशोधन के बाद कम से कम 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही दो क्लास के लिए 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' पर रोक लगा दी थी. इस मामले में सरकार ने कहा है कि अगर स्टूडेंट एनुअल एग्जाम पास नहीं कर पाता है, तो उन्हें एक्सट्रा कोचिंग दी जाएगी और रिजल्ट के दो महीने के भीतर दोबारा एग्जाम देने का मौका भी दिया जाएगा. चलिए जानते हैं कैसे इस नए नियम से बच्चों के भविष्य पर असर पड़ेगा.
दी जाएगी एक्सट्रा कोचिंग
नोटिफिकेशन में कहा गया है कि दोबारा एग्जाम में बैठने वाला बच्चा प्रमोशन के क्राइटेरिया को पूरा नहीं कर पाता है, तो उसे पांचवीं या आठवीं क्लास में रोक दिया जाएगा. अगर जरूरत होगी, तो क्लास टीचर बच्चे के साथ-साथ माता-पिता को भी गाइड करेंगे. असेस्मेंट के अलग-अलग स्टेज में सीखने के गैप की पहचान करने के बाद स्पेशल इनपुट भी देंगे, लेकिन सरकार ने साफ किया है कि किसी भी बच्चे को उसकी शिक्षा पूरी होने तक किसी भी स्कूल द्वारा निकाला नहीं जा सकता है.
3 हजार स्कूलों पर लागू होगी पॉलिसी
शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार यह नोटिफिकेशन केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा संचालित 3,000 से अधिक स्कूलों पर लागू होगी. चूंकि स्कूली शिक्षा राज्य का विषय है. इसलिए राज्य इस संबंध में अपना निर्णय ले सकते हैं. दिल्ली सहित 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही इन दो क्लास के लिए नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया है.
हरियाणा और पुडुचेरी ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है, जबकि बाकि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस नीति को जारी रखने का फैसला किया है.
नो-डिटेंशन पॉलिसी से कैसे पड़ता है बच्चों पर असर?
- आज भी ज्यादातर गांव के स्कूलों में टीचर नहीं होते हैं. ऐसे में अगर नो-डिटेंशन पॉलिसी जारी रहती है, तो भारत के एजुकेशन क्राइटेरिया को बुरी तरह प्रभावित करेगी. साथ ही, इसके कारण बच्चों को भविष्य में ज्यादा कठिनाइयों का सामना कर पड़ेगा.
- इस रणनीति के चलते बच्चों में फेल होने का डर खत्म हो जाता है. साथ ही, यह इसके चलते अच्छे और कमजोर बच्चों में फर्क कर पाना मुश्किल हो जाएगा. यही नहीं, इसकी वजह से बच्चे अगली क्लास में फेल हो सकते हैं. इतना ही नहीं, टीचर यह सुनिश्चित करने की जहमत नहीं उठाते हैं कि बच्चों को सही शिक्षा मिले.
- महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों पर असर पड़ेगा.खास तौर पर लड़कियों को स्कूलों में उचित शिक्षा न मिलने पर बहुत बड़ी समस्या होगी. अगर बच्चों को दूसरी क्लास में प्रमोट करते समय उनकी योग्यता पर विचार नहीं किया जाता है, तो वे कभी भी पढ़ाई और सीखने के महत्व को नहीं समझ पाएंगे. इसका नतीजा क्लास में खराब परफॉर्मेंस होगा.