CJI ने मांगा इस्तीफा, जस्टिस यशवंत वर्मा का इनकार, अब PM-राष्ट्रपति की 'अदालत' में मामला

सुप्रीम कोर्ट में अगर किसी जज के व्यवहार पर सवाल उठते हैं, तो उसके लिए एक खास प्रक्रिया होती है जिसे इन-हाउस जांच तंत्र कहा जाता है. इस प्रक्रिया में देश के चीफ जस्टिस (CJI) की राय को बहुत अहम माना जाता है.;

Edited By :  रूपाली राय
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भारत की न्यायपालिका में एक बड़ी और अहम घटना सामने आई है. देश के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा से इस्तीफा देने को कहा है. यह कदम उस जांच रिपोर्ट के बाद उठाया गया है जिसमें बताया गया कि जज वर्मा के घर में आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में नकदी (कैश) मिली थी, और यह आरोप सही पाए गए हैं.

मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित तीन-सदस्यीय उच्च स्तरीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में गंभीर टिप्पणियां की हैं. इस समिति में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश अनु शिवरामन शामिल थी. यह समिति 22 मार्च 2025 को न्यायमूर्ति वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर लगी आग के बाद वहां से कथित रूप से बरामद नकदी की जांच के लिए गठित की गई थी.

इस्तीफे के सुझाव से इंकार 

सूत्रों के अनुसार, जस्टिस वर्मा ने चीफ जस्टिस द्वारा दिए गए इस्तीफे के सुझाव को मानने से इनकार कर दिया. इसके जवाब में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने न केवल समिति की रिपोर्ट बल्कि न्यायमूर्ति वर्मा द्वारा 6 मई 2025 को दी गई प्रतिक्रिया को भी भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंप दिया है. अब समझा जा रहा है कि सीजेआई ने राष्ट्रपति से न्यायमूर्ति वर्मा को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की औपचारिक सिफारिश की है.

राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को भेजी रिपोर्ट 

गुरुवार को जारी एक प्रेस नोट में बताया गया कि भारत के चीफ जस्टिस (CJI) ने जज यशवंत वर्मा के खिलाफ जांच समिति की रिपोर्ट और उनके जवाब को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया है. ये रिपोर्ट 3 मई 2025 को तैयार हुई थी और जस्टिस वर्मा का जवाब 6 मई को मिला. सूत्रों के मुताबिक, जांच में यह सामने आया है कि जस्टिस वर्मा के घर से मिली नकदी को लेकर उनके जवाब में काफी गड़बड़ियां और अधूरी जानकारी पाई गई है. समिति ने माना है कि आरोप गंभीर हैं और उन पर आगे जांच होनी चाहिए. एक और चौंकाने वाली बात यह है कि इतनी गंभीर जांच के बीच भी जस्टिस वर्मा को 5 अप्रैल 2025 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का जज बना दिया गया और उन्होंने शपथ भी ले ली. अब कानूनी और न्यायिक हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि जब जांच चल रही थी, तो उन्हें जज की शपथ कैसे दी गई?

हटाया जाएंगे पद से 

सुप्रीम कोर्ट में अगर किसी जज के व्यवहार पर सवाल उठते हैं, तो उसके लिए एक खास प्रक्रिया होती है जिसे इन-हाउस जांच तंत्र कहा जाता है. इस प्रक्रिया में देश के चीफ जस्टिस (CJI) की राय को बहुत अहम माना जाता है. अगर राष्ट्रपति सीजेआई की सिफारिश मान लेती हैं, तो जज यशवंत वर्मा को उनके पद से हटाया जा सकता है. ऐसा फैसला बहुत ही कम लिया जाता है और यह एक असाधारण घटना होगी, क्योंकि आम तौर पर किसी सिटिंग हाई कोर्ट जज को हटाना बेहद दुर्लभ होता है. अब यह मामला पूरी तरह से राष्ट्रपति और केंद्र सरकार पर निर्भर करता है. सभी की नजरें इस बात पर हैं कि क्या सरकार न्याय व्यवस्था की साख बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठाएगी या यह मामला लंबी कानूनी प्रक्रिया में उलझ कर धीमा हो जाएगा?. 

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