INS घड़ियाल बना 'देवदूत'! भारतीय नौसेना ही बन गई जिंदगी, बीच सुनामी में जन्मी ग्लोरी की कहानी
20 Years Of Tsunami: हालांकि, 2004 की सुनामी के निशान अब भी मौजूद हैं, लेकिन उनकी जैसी कहानियां दुनिया को याद दिलाती हैं कि सबसे बड़ी त्रासदियों से भी उम्मीद और जीवन उभर सकता है. ऐसी ही एक कहानी ग्लोरी की भी है.;
20 Years Of Tsunami: बी ग्लोरी का जन्म किसी चमत्कार से कम नहीं है. भारतीय नौसेना के लिए भी यह युद्धपोत पर अपनी तरह का पहला इमरजेंसी डिलीवरी था. अब तो इस कहानी के 20 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी कहानी खत्म नहीं हुई है, बॉस! अभी तो ग्लोरी ने कर्ज उतारने की ठानी है, वह सिर्फ बीच समुद्र में जन्मी नहीं, अब जीना भी चाहती है.
बीस साल पहले 26 दिसंबर 2004 को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ने इतिहास की सबसे घातक प्राकृतिक आपदाओं में से एक हिंद महासागर में आई 'सुनामी' का सामना किया था. इस तबाही के बीच बचाव जहाज INS घड़ियाल पर की एक कहानी आज आपका दिल जीत लेगी. ये जहाज द्वीपों से बचे लोगों को निकाल रहा था.
बीच सुनामी में बी ग्लोरी की इमरजेंसी डिलीवरी
सुनामी के तीसरे दिन 29 दिसंबर 2004 को बी बलराम और बी लक्ष्मी भी INS घड़ियाल पर सवार थे. बलराम ने अपनी पत्नी की स्थिति के बारे में सबसे पहले मिले वरिष्ठ अधिकारी को बताया. हालांकि जहाज पर सिर्फ एक डॉक्टर थे, जिन्होंने कभी भी डिलीवरी नहीं कराई थी. इस दौरान बी ग्लोरी की इमरजेंसी डिलीवरी हुई. बी ग्लोरी के माता-पिता ने सुनामी में 26 दिसंबर 2004 हट बे द्वीप (लिटिल अंडमान) में अपने घर और गांव को तबाह होते देखा था, लेकिन खुश थे कि उन्हें बेटी सही-सलामत दुनिया में आ गई.
आईएनएस घड़ियाल बना देवदूत
बलराम उस समय एक मछुआरे के तौर पर काम करते थे. उन्होंने बताया, 'हम तीन दिनों तक बिना भोजन, पानी या किसी गर्म चीज के वहां रहे. चौथे दिन, आईएनएस घड़ियाल ऊपर से एक देवदूत की तरह आया और मुझे, मेरी मां - पत्नी और बहन के साथ-साथ कई अन्य लोगों को भी बचाया, जिन्होंने वहां शरण ली थी.
भारतीय नौसेना ने पाला-पोसा और पढ़ाया
भारतीय नौसेना ने इस अवसर पर घोषणा की कि वह ग्लोरी को 'गोद' लेगी और उसकी शिक्षा का खर्च उठाएगी. बाद में जब बलराम मछली पकड़कर अपना गुजारा नहीं कर सके तो नौसेना ने उसके गांव में उसके लिए नौकरी दिलाई. INS घड़ियाल के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर कमोडोर ए वेणुगोपाल (सेवानिवृत्त) ने बताया, 'हमने परिवार को उनके पुनर्वास में भी मदद की.'
खुद को लकी मानती है ग्लोरी
ग्लोरी के अब दो छोटे भाई-बहन एक 19 वर्षीय भाई और एक 15 वर्षीय बहन हैं. ग्लोरी ने बताया कि बचपन से ही मुझे एहसास था कि मैं कितनी लकी हूं कि मैं उन परिस्थितियों से बच गई और अपने बड़े होने के सालों तक भारतीय नौसेना का हिस्सा रही. हर साल मेरे जन्मदिन पर मुझे शुभकामनाएं दीं, अपने कर्मचारियों को यह देखने के लिए भेजा कि हमें किसी चीज़ की ज़रूरत है या नहीं. मेरी शिक्षा में पूरी की और फीस दी.'
अब कर्ज उतारना चाहती है ग्लोरी
ग्लोरी दो साल पहले JNRM कॉलेज से कंप्यूटर साइंस में बैचलर की पढ़ाई पूरी करने के लिए पोर्ट ब्लेयर चली गई. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्लोरी एक अधिकारी के रूप में भारतीय नौसेना में शामिल होना चाहती हैं. उन्होंने कहा, 'एक बार जब मैं ग्रेज्युट हो जाऊंगी तो मैं सेवा चयन बोर्ड(SSB) परीक्षा में दूंगी और भारतीय नौसेना में शामिल हो जाऊंगी. यह एकमात्र तरीका है जिससे मैं अपना कर्ज चुका सकती हूं.