शादी का मज़ा खराब कर दिया! दर्जी Time पर नहीं सिल पाया ब्लाउज तो महिला पहुंच गई कोर्ट, अब देना होगा इतना जुर्माना
अहमदाबाद की एक महिला ने दर्जी पर शादी से पहले ब्लाउज समय पर न देने का आरोप लगाते हुए उपभोक्ता अदालत में शिकायत की. अदालत ने इसे उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए दर्जी को ₹7,000 का जुर्माना और मुआवज़ा अदा करने का आदेश दिया.;
गुजरात से एक अनोखा मामला सामने आया है जिसने हर किसी को चौंका दिया है. यहां अहमदाबाद की एक महिला ने अपने दर्जी पर समय पर ब्लाउज न देने का आरोप लगाते हुए उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाया. मामला छोटा जरूर था, लेकिन अदालत ने इसे उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन के तौर पर देखा और दर्जी को 7 हजार रुपये जुर्माने के साथ मुआवज़ा अदा करने का आदेश दिया.
यह मामला इस बात का सबूत है कि ग्राहक सेवा में लापरवाही या देरी को अब अदालतें हल्के में नहीं लेतीं. चाहे रकम कितनी भी कम क्यों न हो, अगर सेवा वादे के मुताबिक नहीं दी जाती तो उपभोक्ता को न्याय मिलना तय है.
रिश्तेदार की शादी के लिए सिलवाया था ब्लाउज, पर नहीं मिला समय पर
अहमदाबाद की एक महिला ने 24 दिसंबर 2024 को अपने रिश्तेदार की शादी में पहनने के लिए एक पारंपरिक ब्लाउज सिलवाने का ऑर्डर दिया था. महिला ने दर्जी को ₹4,395 एडवांस में भुगतान किया और तय तारीख पर ब्लाउज तैयार होने की उम्मीद थी. लेकिन जब वह ब्लाउज लेने गई, तो पाया कि वह उसके बताए डिज़ाइन से बिल्कुल अलग सिला गया था. दर्जी ने गलती सुधारने का आश्वासन दिया, मगर समय पर ब्लाउज नहीं दिया. नतीजतन, महिला को शादी में मनचाहा कपड़ा न पहन पाने की असुविधा झेलनी पड़ी.
उपभोक्ता अदालत ने दर्जी को ठहराया दोषी
महिला ने दर्जी के खिलाफ अहमदाबाद (अतिरिक्त) उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में शिकायत दर्ज कराई. नोटिस भेजे जाने के बावजूद दर्जी अदालत में पेश नहीं हुआ. आयोग ने दर्जी की अनुपस्थिति और गलती दोनों को “सेवा में कमी” माना. अदालत ने आदेश दिया कि दर्जी महिला को ₹4,395 मूल राशि 7% वार्षिक ब्याज सहित लौटाए. साथ ही मानसिक कष्ट और मुकदमे के खर्च के लिए ₹7,000 का अतिरिक्त मुआवज़ा देने का निर्देश दिया गया. अदालत ने टिप्पणी की कि “समय पर सेवा न देना उपभोक्ता अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है.”
केरल में भी हुआ था ऐसा ही मामला
यह कोई पहला मामला नहीं है. अप्रैल 2024 में केरल के कोच्चि में एर्नाकुलम डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर कमीशन ने एक टेलरिंग फर्म को ग्राहक को बताए गए नाप से अलग शर्ट सिलने पर ₹15,000 का मुआवज़ा देने का आदेश दिया था. उस मामले में भी शिकायतकर्ता ने बताया था कि गलत सिले कपड़े के कारण उसे मानसिक परेशानी और आर्थिक नुकसान हुआ. दुकान ने गलती सुधारने से इनकार किया और कोर्ट के नोटिस का जवाब तक नहीं दिया.
अहमदाबाद उपभोक्ता अदालत का यह फैसला उन सभी लोगों के लिए सबक है जो सेवाओं में लापरवाही बरतते हैं. अदालत ने साफ कहा कि “समय पर सेवा देना केवल प्रोफेशनल एथिक्स नहीं बल्कि उपभोक्ता का कानूनी अधिकार है.” यह मामला भले ही ब्लाउज सिलाई का हो, लेकिन इसका असर बड़े व्यवसायों से लेकर छोटे सर्विस प्रोवाइडर्स तक हर किसी पर पड़ेगा.