Aadhaar बन रहा इंश्योरेंस फ्रॉड का नया हथियार, बीमा कंपनियों और पुलिस के सामने बड़ी चुनौती
उत्तर प्रदेश में आधार आधारित इंश्योरेंस धोखाधड़ी के मामलों में तेजी आई है, जहां अपराधी फर्जी आधार कार्ड और दस्तावेज़ों से करोड़ों के बीमा दावे कर रहे हैं. पुलिस ने जांच शुरू की है और बीमा कंपनियों को नोटिस जारी किए हैं. ये संगठित गिरोह गांव से लेकर अस्पताल तक फैले हैं. बीमा कंपनियां अब सतर्क होकर डेटा एनालिटिक्स, OTP प्रमाणीकरण और बायोमेट्रिक सत्यापन जैसे उपाय अपना रही हैं.;
भारत में आधार से जुड़े इंश्योरेंस धोखाधड़ी के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है. उत्तर प्रदेश पुलिस ने ऐसे कई मामलों में जांच शुरू की है, जहां अपराधी फर्जी आधार कार्ड और दस्तावेज़ों के ज़रिए बीमा कंपनियों से धोखे से बड़ी रकम वसूलने की कोशिश कर रहे हैं. इस खुलासे ने इंश्योरेंस सेक्टर को हिला दिया है और अब बीमा कंपनियां सतर्कता बढ़ाने के लिए नए उपाय अपना रही हैं.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अब तक बीमा धोखाधड़ी के मामलों में पिन कोड के हेरफेर को मुख्य हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब अपराधियों ने आधार को निशाना बनाना शुरू कर दिया है. अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (संभल), अनुकृति शर्मा के अनुसार, "धोखेबाज अब नकली या बदले हुए आधार कार्ड के जरिए न केवल पॉलिसी खरीद रहे हैं, बल्कि फर्जी दावे भी दाखिल कर रहे हैं."
इन मामलों में अपराधी या तो मृत व्यक्तियों के नाम पर पॉलिसी लेते हैं या फिर गंभीर रूप से बीमार लोगों के नाम का उपयोग कर बीमा कंपनियों से करोड़ों रुपये हड़पने का प्रयास करते हैं. कई मामलों में फर्जी आधार कार्ड के जरिए बीमा खरीदने और क्लेम फाइल करने में छोटे वित्तीय बैंक मदद करते पाए गए हैं.
यूपी पुलिस की जांच और बीमा कंपनियों को नोटिस
जुलाई के अंत तक उत्तर प्रदेश पुलिस ने कई बीमा कंपनियों को नोटिस जारी कर उनके फ्रॉड कंट्रोल टीम और क्लेम्स एक्जीक्यूटिव्स की जानकारी मांगी है. पुलिस को संदेह है कि कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से यह फर्जीवाड़ा बड़े पैमाने पर किया गया है. इन मामलों में शामिल अपराधी आधार लिंक्ड मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी को भी बदल देते हैं, जिससे बीमा कंपनियां असली पॉलिसीधारकों से संपर्क नहीं कर पातीं और फर्जी क्लेम मंजूर हो जाते हैं. धोखाधड़ी का खुलासा तब होता है जब बीमा राशि निकाल ली जाती है या फिर केस रिव्यू होता है.
बीमा उद्योग में हड़कंप, कंपनियां हुईं सतर्क
बीमा कंपनियां अब संदिग्ध डेटा को तेजी से Insurance Information Bureau (IIB) के साथ साझा कर रही हैं, जो पूरे बीमा सेक्टर में फ्रॉड मॉनिटरिंग का केंद्रीय निकाय है. IIB अब डेटा एनालिटिक्स मॉड्यूल्स के ज़रिए क्लेम पैटर्न को स्कैन कर रही है ताकि अनियमितताओं की पहचान हो सके. एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में 3 लाख से अधिक संभावित फर्जी जीवन बीमा मामलों का पता चला है, जिनका कुल बीमा राशि अनुमानित ₹1.73 लाख करोड़ थी. Niva Bupa Health Insurance के एमडी और सीईओ कृष्णन रामचंद्रन ने बताया, "हमने यूपी फ्रॉड से जुड़े 2–3 मामलों की पहचान की है. हमारी जांच टीम इस पर काम कर रही है. ऐसे मामले आमतौर पर फर्जी दस्तावेजों और योजनाबद्ध तरीके से की गई कोशिशों से जुड़े होते हैं."
गांव से अस्पताल तक फैला फ्रॉड नेटवर्क
जांच से यह भी सामने आया है कि ये फर्जीवाड़ा संगठित गिरोहों के जरिए किया जा रहा है, जिनका नेटवर्क ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी अस्पतालों तक फैला है. इनमें कई बार गरीब और अशिक्षित लोगों को लालच देकर उनके आधार डिटेल्स लिए जाते हैं और फिर उनके नाम पर बीमा पॉलिसी खरीदी जाती है. बीमा राशि ₹20 लाख या उससे अधिक की होती है और यह राशि नकली दावों के जरिए वसूलने की कोशिश होती है. कुछ मामलों में ब्लैकलिस्ट किए गए पिन कोड से बचने के लिए पता बदल दिया जाता है.
क्या किया जा रहा है समाधान के लिए?
बीमा कंपनियां अब आधार सत्यापन प्रक्रिया को और सख्त करने की दिशा में काम कर रही हैं. इसके अलावा दोहरी पहचान सत्यापन, बायोमेट्रिक जांच और क्लेम प्रक्रिया में OTP आधारित प्रमाणीकरण जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं. IIB और बीमा नियामक संस्था IRDAI मिलकर सभी बीमा कंपनियों के बीच डेटा साझा करने की व्यवस्था पर भी विचार कर रहे हैं, जिससे फर्जीवाड़ा रोकने के लिए एक सेंट्रल वॉचडॉग सिस्टम बन सके.
आधार कार्ड ने जहां एक ओर भारत में डिजिटल पहचान को नई मजबूती दी है, वहीं इसका दुरुपयोग भी अब सामने आ रहा है. बीमा क्षेत्र में इस तरह की धोखाधड़ी न केवल कंपनियों को आर्थिक नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि आम नागरिकों की निजता और सुरक्षा को भी खतरे में डाल रही है. इस चुनौती से निपटने के लिए पुलिस, बीमा कंपनियों और नियामक संस्थाओं को मिलकर काम करना होगा ताकि देश में बीमा व्यवस्था में भरोसा बना रहे.