गर्लफ्रेंड के लिए ज्वाइन किया थिएटर, जज बनकर हंसाया, मजेदार है कल्लू मामा उर्फ Saurabh Shukla की जर्नी
सौरभ शुक्ला एक पॉपुलर भारतीय एक्टर होने के साथ, राइटर और फिल्म निर्देशक भी हैं. वे मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा और टेलीविजन में अपनी शानदार एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं. सौरभ शुक्ला की जर्नी भारतीय फिल्म और टेलीविजन इंडस्ट्री में बहुत इंस्पायरिंग रही है.;
हिंदी सिनेमा के दिग्गज सौरभ शुक्ला (Saurabh Shukla) ने हमें 'बैंडिट क्वीन' में कैलाश, 'सत्या' में कल्लू मामा, 'जॉली एलएलबी' में जस्टिस त्रिपाठी, 'बर्फी' में इंस्पेक्टर सुधांशु दत्ता और कई अन्य जैसे कई यादगार किरदार दिए हैं. अनुभवी स्टार ने सौ से अधिक फिल्मों में अपना मल्टी टैलेंट साबित किया है और अपनी फिल्मों और वेब शो के सिलेक्शन के साथ दर्शकों का एंटरटेन करना जारी रखा है.
सौरभ शुक्ला एक पॉपुलर भारतीय एक्टर होने के साथ, राइटर और फिल्म निर्देशक भी हैं. वे मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा और टेलीविजन में अपनी शानदार एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं. सौरभ शुक्ला की जर्नी भारतीय फिल्म और टेलीविजन इंडस्ट्री में बहुत इंस्पायरिंग रही है. उन्होंने अपनी हार्डवर्क, डेडिकेशन और एक्टिंग के प्रति प्यार से सफलता हासिल की, आइए, उनकी यात्रा पर एक नजर डालें.
यूपी के गोरखपुर में जन्मे थे सौरभ
सौरभ शुक्ला का जन्म 5 मार्च 1963 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था. भारत की पहली महिला तबला वादक जोगमाया शुक्ला और आगरा घराने के गायक शत्रुघ्न शुक्ला के घर जन्मे शुक्ला का परिवार दो साल की उम्र में गोरखपुर छोड़कर दिल्ली आ गया था. उन्होंने अपनी स्कूलिंग पूरी की और दिल्ली के एस.जी.टी.बी. खालसा कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. उनका एक्टिंग करियर 1984 में थिएटर में प्रवेश के साथ शुरू हुआ.
गर्लफ्रेंड बनाने के इरादे से ज्वाइन किया थिएटर
दिग्गज एक्टर का 1948 में थिएटर ज्वाइन करना किसी मजेदार किस्से से कम नहीं है. दरअसल खालसा कॉलेज में पढाई के दौरान वह एक थिएटर के बाहर से गुजरते थे, जहां उन्हें बड़ी सुन्दर-सुन्दर लड़कियां दिखती थी. यह देखते हुए उन्होंने सोचा कि यह थिएटर ज्वाइन करने से शायद यहां उनकी कोई गर्लफ्रेंड बन जाए. फिर क्या था एक दिन शुक्ला ने थिएटर ज्वाइन कर लिया और एक्टिंग में पहले से इंट्रेस्ट होने की वजह से वह एक्टिंग बारीकियां सिखने में कामयाब रहें.
इन ड्रामों में किया काम
शुक्ला ने 1986 में ए व्यू फ्रॉम द ब्रिज (आर्थर मिलर), लुक बैक इन एंगर (जॉन ओसबोर्न), घासीराम कोतवाल (विजय तेंदुलकर) और हयवदन जैसे ड्रमों में भूमिकाओं के साथ गंभीर थिएटर की शुरुआत की. 1991 में, वह एक एक्टर के रूप में एनएसडी रिपर्टरी कंपनी - नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की प्रोफेशनल ब्रांच - में शामिल हो गए.
ऐसे मिली पहली फिल्म
एक प्ले के दौरान सौरभ की मुलाकात एक्टर शेखर कपुर से हुई. उन दिनों सौरभ थिएटर में एक्टिंग सीखने के साथ-साथ चार हजार रुपये की सैलरी में एनएसडी में नौकरी करते थे. इस फ़िल्म के बाद सौरभ ने दूरदर्शन के शो क्राइम ड्रामा 'तहकीकात' में भी काम किया था.
कल्लू मामा से मिली पहचान
हालांकि सौरभ को असली पहचान राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'सत्या' से मिली. जो साल 1998 में आई थी. इस फिल्म में सौरभ ने कल्लू मामा की भूमिका निभाई जो अंडर वर्ल्ड में शामिल होता है. इस फिल्म का पॉपुलर सॉन्ग 'गोली मार भेजे में' आज भी लोगों की जुबां पर होता है. बता दें कि सौरभ इस फिल्म के को-राइटर भी हैं.
राष्ट्रपति ने तोड़ दिया था प्रोटोकॉल
यूं तो सौरभ ने अपनी कई दमदार भूमिकाओं से दर्शकों का दिल जीता है, लेकिन 'जॉली ललबी' में उनके द्वारा निभाए गए कॉमेडियन जज 'सुदंर लाल त्रिपाठी' के किरदार को कोई नहीं भूल सकता है. इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिव रोल के लिए दिवगंत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से नेशनल फिल्म अवार्ड मिला था. इस अवार्ड सेरेमनी से जुड़ा एक मजेदार किस्सा भी सौरभ ने सुनाया था. जब उनके लिए राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल तोड़ दिया था.
क्या पूरा किस्सा
दरअसल अपने एक इंटरव्यू में सौरभ ने शेयर किया कि नेशनल अवार्ड लेने के लिए वहां आपको एक दिन पहले पहुंचना पड़ता है और वहां आपकी रिहर्सल होती है. जहां सिखाया जाता है कि कैसे चलकर आना है कैसे राष्ट्रपति को नमस्ते करना है. इस बीच उन्होंने कहा, 'वहां ऐसा नहीं होता की बस पहुंचे और अवार्ड ले लिया वहां आपको पूरी तैयारी के साथ बतया जाता है कि आपको कितनी दूर खड़े रहना है अनाउंसमेंट होने पर इतंजार करना है जब आपके बारें में पढ़ा जाए. इस बीच उन्होंने बताया कि अवार्ड लेने से पहले आप सिर्फ राष्ट्रपति को नमस्ते कह सकते है उनसे हाथ नहीं मिला सकते क्योंकि स्ट्रिक्ट प्रोटोकॉल के तहत राष्ट्रपति को छूना मना होता है. लेकिन जैसे ही सौरभ अपना अवार्ड लेने पहुंचे प्रणब मुखर्जी ने धीरे से उनके कान में कहा, 'जज साहब मैंने आपकी पिक्चर आपकी वजह से दो बार देखी है. मैंने कहा अगर सच में अच्छी लगी है तो इसी बात पर हाथ मिला लीजिए और मैंने उनका पकड़ लिया.