कभी फुटपाथ पर सोते थे Mithun Chakraborty, दादा साहब फाल्के अवार्ड जीतकर रचा इतिहास
दिग्गज एक्टर मिथुन चक्रवर्ती जिन्हें 30 सितंबर को दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया उन्होंने अपने पुराने इंटरव्यू में अपने स्ट्रगलिंग के बारें में बताया था कि कैसे उन्हें खाली पेट फूटपाथ पर सोना पड़ता था. सिर्फ इतना ही नहीं उन्हें अपने स्किन कलर की वजह से कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा.;
सोमवार को मिथुन चक्रवर्ती को प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया, जो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में योगदान के लिए दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान है. दिग्गज एक्टर जिन्होंने पहले तीन नेशनल अवार्ड जीते हैं उनके स्टारडम का सफर इतना आसान नहीं था. उन्होंने अपने पुराने इंटरव्यू में अपने करियर के स्ट्रगलिंग फेज के बारें में खुलकर बात की थी. जिसमें उन्होंने बताया था कि कैसे वह फुटपाथ पर सोते थे और काम की तलाश में भूखे रहते थे. उन्होंने कई बार इंडस्ट्री में रंगभेद का सामना भी किया और कई रिजेक्शन देखें.
अपने चुनौतीपूर्ण सफ़र पर विचार करते हुए, मिथुन ने कहा कि वह नहीं चाहेंगे कि उन्हें जो संघर्षों का सामना करना पड़ा, वह किसी और को झेलना पड़े. 'सा रे गा मा पा' लिटिल चैंप्स के दौरान, उन्होंने कहा, 'मैं कभी नहीं चाहता कि किसी को भी जीवन में वह सब सहना पड़े, जिससे मैं गुज़रा हूं.' अपनी स्किन कलर के कारण उन्हें मिले 'रिजेक्शन को शेयर करते हुए, उन्होंने कहा, 'हर किसी ने संघर्ष देखा है और मुश्किल दिनों से लड़ा है, लेकिन मुझे हमेशा मेरी स्किन कलर के कारण कई सालों तक अपमानित किया गया है.'
रोते हुए सोता था
उन्होंने सड़कों पर सोने और खाने के लिए संघर्ष करने के कड़वे अनुभवों को याद किया. उन्होंने कहा, 'मैंने ऐसे दिन भी देखे हैं जब मुझे खाली पेट सोना पड़ता था और मैं रोते हुए सोता था. वास्तव में, ऐसे दिन भी थे जब मुझे यह सोचना पड़ता था कि मेरा अगले दिन का खाना क्या होगा और मैं कहां सोउंगा मैं कई दिनों तक फुटपाथ पर भी सोया हूं.'
मिला नक्सली होने का लेबल
कोलकाता के रहने वाले मिथुन ने खुलासा किया कि एक समय पर उनका स्ट्रगल इतना भारी था कि उन्होंने अपनी जान लेने के बारे में भी सोचा क्योंकि उनके पास अपने घर कोलकाता लौटने का ऑप्शन नहीं था. 70 के दशक में नक्सल आंदोलन से प्रेरित होने और बाद में अपने परिवार में हुई त्रासदी के कारण आंदोलन छोड़ने के बारे में बात करते हुए, मिथुन ने जर्नलिस्ट अली पीटर जॉन को एक इंटरव्यू में बताया था, 'इंडस्ट्री और उसके बाहर के लोग कलकत्ता में नक्सली आंदोलन में मेरे शामिल होने और नक्सलियों के उग्र नेता चारु मजूमदार के साथ मेरे करीबी संबंधों के बारे में सब जानते थे. मेरे परिवार में एक त्रासदी होने के बाद मैंने आंदोलन छोड़ दिया था, लेकिन नक्सली होने का लेबल मेरे साथ हर जगह रहा, चाहे वह पुणे में FTII हो या जब मैं सत्तर के दशक के अंत में बॉम्बे आया था.'
आत्महत्या करने की सोचते थें
अपनी स्ट्रगलिंग को याद करते हुए मिथुन दा ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा था कि उन्हें लगता था कि वह कभी अपनी मंजिल तक पहुंच नहीं पाएंगे इसलिए वह आत्महत्या करने की सोचते थें. हालांकि, दिग्गज स्टार ने अपने फैंस को सलाह दी कि बिना संघर्ष किए जीवन से हार न मानें. उन्होंने खुद को एक 'जन्मजात योद्धा' और ऐसा व्यक्ति बताया जो 'हारना नहीं जानता.
मोदी जी ने दी बधाई
मिथुन दा को मिले दादा साहब फाल्के अवार्ड के लिए प्रधान मंत्री मोदी ने भी खुशी जाहिर की. उन्होंने अपने अक्स हैंडल पर शेयर किया - खुशी है कि श्री मिथुन चक्रवर्ती जी को भारतीय सिनेमा में उनके अद्वितीय योगदान को मान्यता देते हुए प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वह एक सांस्कृतिक प्रतीक हैं, उन्हें अपने वर्सटाइल परफॉरमेंस के लिए पीढ़ियों तारीफें मिलती आ रही हैं... उन्हें बधाई एवं शुभकामनाएं.'
पहला नेशनल अवार्ड
सुपरस्टार मिथुन चक्रवर्ती का करियर चार दशकों से ज़्यादा लंबा रहा है. उन्होंने अपने करियर में एक से बढ़कर एक फिल्में दी हैं. साल 1976 में आई फिल्म 'मृगया' में अपनी सफल भूमिका के लिए जाने जाते मिथुन दा को इसके लिए पहला नेशनल अवार्ड मिला. मिथुन ने 1980 के दशक में 'डिस्को डांसर', 'प्यार झुकता नहीं' और 'कसम पैदा करने वाले की' जैसी फ़िल्मों से स्टारडम हासिल किया. इसके अलावा उन्हें कई रियलिटी शो में बतौर जज के लिए जाना जाता है.