UN में पाकिस्तान की फजीहत! मांगी बादशाहत, मिली चौकीदारी; 4 की जगह एक टेरर पैनल की करेंगे अध्यक्षता
यूएनएससी में चार आतंकवाद विरोधी समितियों की अध्यक्षता की पाकिस्तानी मांग को ठुकरा दिया गया. उसे केवल तालिबान प्रतिबंध समिति की जिम्मेदारी और एक औपचारिक उपाध्यक्ष पद मिला. भारत की रणनीतिक चुप्पी और अनुभव ने उसकी विश्वसनीयता को और मजबूत किया. पाकिस्तान की आक्रामक कूटनीति के बावजूद उसे मिली नाकामी उसकी अंतरराष्ट्रीय साख पर सवाल खड़े करती है.

'ऊंची दुकान, फीका पकवान' पाकिस्तान की हालिया कूटनीतिक कोशिशें कुछ ऐसी ही साबित हुईं जब उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चार आतंकवाद विरोधी समितियों की कमान पाने की आस लगाई. बड़े दावों और भारी बयानबाज़ी के बाद भी उसे केवल एक मामूली पद से संतोष करना पड़ा. ये घटनाक्रम न सिर्फ उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को आईना दिखाता है, बल्कि भारत की चुपचाप चल रही रणनीतिक बढ़त को भी उजागर करता है. यूएन में यह मुकाबला पद की दौड़ से ज़्यादा भरोसे की परीक्षा बन चुका है.
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अस्थायी सदस्य के रूप में पाकिस्तान ने आतंकवाद से जुड़ी चार प्रमुख समितियों की अध्यक्षता की मांग की थी, लेकिन उसे केवल एक '1988 तालिबान प्रतिबंध समिति' की जिम्मेदारी ही मिल सकी. इसके अलावा उसे 1373 आतंकवाद निरोधक समिति (सीटीसी) में महज एक औपचारिक उपाध्यक्ष पद से संतोष करना पड़ा. पाकिस्तान की यह विफलता उसकी कूटनीतिक महत्वाकांक्षा और साख दोनों पर सवाल खड़े करती है.
वैश्विक बिरादरी ने जताया अविश्वास
पाकिस्तान के अति-आत्मविश्वास और मांगों की आक्रामकता के कारण परिषद के अन्य सदस्यों के बीच आम सहमति बन ही नहीं सकी. एक अधिकारी के अनुसार, "आवंटन की प्रक्रिया जनवरी 2025 तक पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन पाकिस्तान के अड़ियल रुख ने इसे जून तक खींच दिया." यह दर्शाता है कि परिषद के भीतर पाकिस्तान के प्रति न तो विश्वास है और न ही समर्थन.
भारत ने दिखाया अनुभव
भारत ने पाकिस्तान की इन विफलताओं को उसकी "बड़ी उम्मीदों और दावों" के विपरीत बताया. साथ ही, यह भी रेखांकित किया कि भारत ने न केवल 2022 में बल्कि 2011-12 में भी 1373 सीटीसी की अध्यक्षता की थी. यह अनुभव और विश्वसनीयता भारत को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक मंच पर मजबूत स्थान दिलाता है, जबकि पाकिस्तान केवल सीमित भूमिका तक सिमट गया है.
अध्यक्षता नहीं, भरोसा मायने रखता है
एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्पष्ट किया कि सुरक्षा परिषद की समितियों में अध्यक्षता केवल दिखावे की भूमिका है, क्योंकि सभी फैसले सर्वसम्मति से लिए जाते हैं. चीन, रूस, अमेरिका जैसे स्थायी सदस्य इस खेल में नहीं कूदे क्योंकि वे जानते हैं कि अस्थायी सदस्य का यह पद केवल "शोर मचाने" तक सीमित है. जैसा कि पाकिस्तान करने की कोशिश कर रहा है.
रूस और गुयाना की उपस्थिति
हालांकि पाकिस्तान को तालिबान प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता मिली है, लेकिन इस समिति में रूस और गुयाना जैसे मित्र देशों की उपस्थिति भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से सुखद संकेत है. भारत इन मित्र देशों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी आतंक से जुड़े तत्व पाकिस्तान की मिलीभगत से बच न सके.
विश्वसनीयता पर सवाल बरकरार
यूएनएससी में पाकिस्तान की सीमित भूमिका और बार-बार की विफलताएं यह संकेत देती हैं कि वैश्विक मंच पर उसकी विश्वसनीयता कम होती जा रही है. एक अधिकारी के अनुसार, “पाकिस्तान अपनी तमाम बयानबाजी के बावजूद अपनी राह पर नहीं चल पाया है.” इसका संकेत यही है कि अब केवल पद नहीं, बल्कि आतंकवाद के विरुद्ध वास्तविक प्रतिबद्धता ही किसी देश की स्थिति तय करती है और इस कसौटी पर पाकिस्तान पीछे है.