निमिषा प्रिया को नहीं होगी फांसी! यमन में भारतीय नर्स की मौत की सजा हुई रद्द, ग्रैंड मुफ्ती ने किया ये दावा
भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन में सुनाई गई मौत की सजा अब पूरी तरह रद्द कर दी गई है. 2018 से कैद में रहीं निमिषा पर अपने बिजनेस पार्टनर की हत्या का आरोप था. अब ग्रैंड मुफ्ती की मध्यस्थता और अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के बाद यह बड़ा फैसला लिया गया है. हालांकि यमन सरकार की आधिकारिक पुष्टि अभी बाकी है.

भारतीय नर्स निमिषा प्रिया, जिन पर यमन में एक हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी, अब जीवन की नई उम्मीद लेकर सामने आई हैं. ग्रैंड मुफ्ती कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार के कार्यालय ने घोषणा की है कि निमिषा की मौत की सजा को अब पूरी तरह से रद्द कर दिया गया है. हालांकि, यमन सरकार की आधिकारिक लिखित पुष्टि अभी बाकी है, लेकिन यह खबर एक नई उम्मीद की किरण है.
सूत्रों के अनुसार, यह बड़ा फैसला यमन की राजधानी सना में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में लिया गया. यह वही बैठक है जिसमें भारत के ग्रैंड मुफ्ती के हस्तक्षेप और यमनी धार्मिक नेताओं की मध्यस्थता के बाद सजा की समीक्षा की गई. यह केवल कानूनी नहीं, एक मानवीय हस्तक्षेप की जीत भी है.
हत्या या आत्मरक्षा की असफल कोशिश?
निमिषा प्रिया का मामला वर्ष 2018 से अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है. उन पर अपने बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो महदी की हत्या करने और शव के टुकड़े करने का आरोप है. लेकिन उनके वकील और परिवार का कहना है कि यह हत्या नहीं, आत्मरक्षा की असफल कोशिश थी. निमिषा कथित तौर पर उत्पीड़न और पासपोर्ट ज़ब्त किए जाने से परेशान थीं.
फांसी की घड़ी और रुकती सांसें
2020 में यमन की अदालत ने निमिषा को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा. 16 जुलाई 2025 को उन्हें फांसी दी जानी थी. भारत सरकार, केरल के मुस्लिम संगठनों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं के निरंतर प्रयासों से यह फांसी टाल दी गई थी. और अब वह स्थगन एक स्थायी राहत में बदल गया है.
राजनीति और धर्म की साझी कोशिश
यह फैसला सिर्फ एक कानूनी मोड़ नहीं है. इसमें कूटनीतिक संवाद, धार्मिक विश्वास और मानवीय अपील की बड़ी भूमिका रही. ग्रैंड मुफ्ती ने यमन के सूफी विद्वानों से अपील की थी कि वे मध्यस्थता करें. शेख उमर हफीज थंगल की अगुआई में विद्वानों का प्रतिनिधिमंडल यमन पहुंचा और उन्होंने सरकार पर निर्णायक दबाव बनाया.
अभी बाकी है एक बड़ी लड़ाई
हालांकि मौत की सजा रद्द कर दी गई है, लेकिन निमिषा की रिहाई की प्रक्रिया अभी अधूरी है. अंतिम निर्णय अब मृतक महदी के परिवार से बातचीत पर निर्भर करेगा. यमन में शरई कानून के तहत क्षमा पाने के लिए ‘ब्लड मनी’ (दिया) देना पड़ सकता है. यह रकम तय करने और परिवार की सहमति के लिए एक और स्तर की बातचीत जरूरी है.
सिस्टम से जूझती एक मां की कहानी
34 वर्षीय निमिषा सिर्फ एक आरोपी नहीं, बल्कि एक मां भी हैं. उनकी बेटी केरल में अपने दादा-दादी के साथ रहती है. यह बच्ची पिछले कई वर्षों से मां की वापसी का इंतज़ार कर रही है. निमिषा की रिहाई न केवल एक महिला की मुक्ति होगी, बल्कि एक मासूम के जीवन में मां की वापसी भी होगी.
अब एक नई उम्मीद
निमिषा प्रिया की कहानी बताती है कि किस तरह कानूनी लड़ाइयां, सामाजिक समर्थन और अंतरराष्ट्रीय संवाद किसी की ज़िंदगी बदल सकते हैं. वह जो कभी यमन में एक मेडिकल नर्स थी, फिर एक कैदी बनी, आज एक उम्मीद की प्रतीक बन गई हैं. अब नज़रें यमन सरकार की अंतिम पुष्टि और भविष्य की बातचीत पर टिकी हैं.