बांग्लादेश ने मांगा शेख हसीना, भारत ने कहा - 'नो कमेंट', लेकिन क्या कहती है प्रत्यर्पण संधि?
बांग्लादेश में छात्र आंदोलन के बाद शेख हसीना अगस्त में भारत आ गई थी, तब वो यहीं रह रही हैं. भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि पर 2013 में हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें 2016 में संशोधन किया गया था.

Bangladesh asked for Sheikh Hasina to India: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सोमवार को शेख हसीना को वापस ढाका भेजने के लिए भारत को एक राजनयिक नोट भेजा है. छात्र आंदोलन के बीच देश छोड़कर भागी 77 वर्षीय शेख हसीना 5 अगस्त से भारत में निर्वासित जीवन जी रही हैं.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत इसे लेकर बांग्लादेश को तुरंत जवाब देने के मूड में नहीं है. वहीं बांग्लादेश के गृह सलाहकार जहांगीर आलम ने कहा कि ढाका और नई दिल्ली के बीच प्रत्यर्पण संधि पहले से ही मौजूद है और इस संधि के तहत हसीना को बांग्लादेश वापस लाया जा सकता है. ऐसे में इसे समझने के लिए पहले ये जान लेना जरूरी है कि दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि क्या कहता है.
बांग्लादेश भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि
भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि पर 2013 में हस्ताक्षर किए गए थे, जिसका मुख्य उद्देश्य सीमा पार आतंकवाद, प्रवास और नशीली दवाओं के व्यापार पर अंकुश लगाना था. हालांकि, 2016 में इसमें संशोधन किया गया था, जिसमें कहा गया था कि 'यदि जिस अपराध के लिए अनुरोध किया गया है वह राजनीतिक चरित्र का अपराध है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है.'
संधि में ये भी कहा गया है कि हत्या जैसे अपराध को राजनीतिक चरित्र का अपराध नहीं माना जा सकता है. लेकिन इसका फैसला कौन करेगा? यदि पुलिस की गोलीबारी में कोई प्रदर्शनकारी मारा जाता है, तो क्या इसके लिए प्रधानमंत्री को जिम्मेदार माना जाएगा? और यदि नहीं, तो क्या ऐसी हत्या के लिए उन पर आरोप लगाना राजनीति से प्रेरित नहीं है?
संधि में ये साफ ही राजनीतिक कारणों से प्रत्यर्पण की मांग को खारिज किया जा सकता है. हालांकि, 2016 के संशोधनों के अनुसार, प्रत्यर्पण की मांग करने वाले देश को अपराध का सबूत भी नहीं देना पड़ सकता है. प्रत्यर्पण के लिए कोर्ट से वारंट ही काफी है. अगर इस नजरिए से देखें तो हसीना पर संकट आ सकती है.
बंग्लादेश में आंदोलन पर यूनुस का दावा
8 अगस्त को पदभार संभालने वाले मोहम्मद यूनुस ने दावा किया कि हसीना सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान छात्रों और श्रमिकों सहित लगभग 1,500 लोग मारे गए, जबकि 19,931 अन्य घायल हुए. वहीं यूनुस बांग्लादेश में हो रहे हिंदूओं पर अत्याचार पर चुप्पी साधे हुए हैं. वहां हर दूसरे दिन मंदिरों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है.