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एम्बुलेंस को No Entry, लेकिन बंद पुल से निकल गई विधायक की गाड़ी! मजदूर बेटे ने स्ट्रेचर पर ढोया मां का शव | Video

यूपी के हमीरपुर में फिर इंसानियत को तार-तार कर दिया. जहां पुल बंद होने के बावजूद विधायक की गाड़ी को जाने दिया, लेकिन एक एंबुलेंस जिसमें बेटा अपनी मां का शव लेकर जा रहा था, उसे रोक दिया गया. नतीजा लड़के ने स्ट्रेचर पर मां का शव रख पुल पार किया.

एम्बुलेंस को No Entry, लेकिन बंद पुल से निकल गई विधायक की गाड़ी! मजदूर बेटे ने स्ट्रेचर पर ढोया मां का शव | Video
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( Image Source:  x-parasharji24 )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 29 Jun 2025 2:14 PM IST

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने साबित कर दिया कि आम लोगों के लिए इस देश में हर नियम जायज है, लेकिन ऊंचे पद पर बैठे लोग कुछ भी कर सकते हैं. दरअसल शनिवार के दिन सुबह 6:10 बजे यमुना नदी पर बना हमीरपुर का पुल गाड़ियों के लिए बंद कर दिया गया.

प्रशासन का कहना था कि पुल की मरम्मत चल रही है. इसलिए दो दिनों तक किसी भी गाड़ी को पुल पार करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी. लेकिन ठीक 34 मिनट बाद यानी सुबह 6:44 बजे भाजपा के सदर विधायक की कार बेरोक-टोक पुल पार कर गई. पुल पर लगी बैरिकेडिंग को हटाकर उन्हें रास्ता दिया गया, लेकिन वहां से एंबुलेंस नहीं जाने दी, जिसमें एक मां का शव था.

नहीं जाने दी एंबुलेंस

कुछ देर बाद सुबह करीब 9:30 बजे एक एंबुलेंस आई, जो कानपुर से अपने गांव जा रहे थे. इस एंबुलेंस में 63 साल की शिवदेवी का शव था और उसमें मृतक का बेटा भी था. जैसे ही एंबुलेंस पुल पर पहुंची, वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उसे रोक दिया. लाख मिन्नतों के बाद भी पुलिस नहीं मानी.

स्ट्रेचर पर शव रख पुल किया पार

बेटा आखिर क्या करता? एंबुलेंस से स्ट्रेचर निकाला. मां का शव उस पर रखा और खुद ही पुल पार करने लगा. वो भी करीब 1 किलोमीटर लंबा पुल, जहां कुछ घंटे पहले ही एक नेता की कार को आराम से रास्ता मिल गया था. जब पुल पार हुआ, तो शव को एक ऑटो में रखकर घर तक पहुंचाया गया.

'मैं गाड़ी में नहीं था' विधायक का बचाव

जब मामला गरमाया और सवाल उठने लगे कि पुल बंद होने के बावजूद विधायक की कार कैसे पार कराई गई, तो सफाई देने की बारी आई. विधायक ने तुरंत बयान देते हुए कहा कि 'मैं उस कार में नहीं था. मेरे बीमार भाई को लेकर मेरे पिता कानपुर जा रहे थे.'

VIP रूट की परंपरा, इंसानियत का दम घुटता रहा

ऐसा पहली बार नहीं हुआ. 21 जून को भी जब पुल बंद था, तो एक प्रमुख सचिव का काफिला बिना रुकावट पार कराया गया था. आम लोगों के लिए गड्ढों वाला 25 किलोमीटर लंबा रास्ता मजबूरी बना रहा, लेकिन वीआईपी मूवमेंट बिना रुकावट निकलता रहा.

अब सवाल उठते हैं कि अगर वो कार वीआईपी थी, तो फिर आम जनता के लिए नियम अलग क्यों? और अगर विधायक खुद नहीं थे, तो क्या उनका पद और गाड़ी ही रुकावट पार करने के लिए काफी थी?

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