चादर फादर निकट न आवे, बागेश्वर जब नाम सुनावे... नीले ड्रम की ज्यादा है चर्चा; मेरठ में बोले धीरेंद्र शास्त्री
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने जागृति विहार एक्सटेंशन में दिव्य दरबार लगाया, जहां उन्होंने श्रद्धालुओं की समस्याओं का समाधान किया. उन्होंने सौरभ हत्याकांड पर प्रतिक्रिया देते हुए रामचरितमानस, संस्कार, नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने पर जोर दिया. हनुमान भक्ति, अंधविश्वास से बचाव और पारिवारिक मूल्यों को सहेजने का संदेश दिया.

बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दिव्य दरबार की झलक मेरठ में दिखी. धीरेंद्र शास्त्री श्री हनुमंत कथा का पाठ कर रहे हैं, लेकिन इसके माध्यम से वे सनातन संस्कृति, राष्ट्रवाद और पारिवारिक मूल्यों को भी पुनर्स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं.
मेरठ में हुए सौरभ हत्याकांड पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यदि माता-पिता रामचरितमानस का पाठ स्वयं करें और बच्चों को भी पढ़ाएं, तो उनके संस्कार मजबूत होंगे और ऐसी घटनाएं टाली जा सकती हैं. उन्होंने इसे भारतीय संस्कारों से भटकाव का परिणाम बताया.
नीला ड्रम सर्च करने पर आ रहा मेरठ का नाम
सौरभ हत्याकांड को लेकर उन्होंने कहा कि मुस्कान की करतूत ने पूरे नारी समाज, रिश्तों की पवित्रता और विश्वास को कठघरे में खड़ा कर दिया है. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि अब अगर कोई गूगल पर 'नीला ड्रम' सर्च करेगा तो मेरठ का नाम सामने आएगा. उनका मानना था कि टीवी और पाश्चात्य संस्कृति ने युवाओं को नैतिक मूल्यों से दूर कर दिया है, जिससे समाज में अपराध बढ़ रहे हैं.
अंधविश्वास से बचने की सलाह
हनुमान चालीसा की प्रसिद्ध पंक्ति 'भूत-पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे' का उल्लेख करते हुए उन्होंने हनुमान जी की महिमा पर प्रकाश डाला. धीरेंद्र शास्त्री ने अंधविश्वास से बचने की सलाह देते हुए कहा कि तांत्रिकों और हठयोगियों के चक्कर में न पड़ें. उन्होंने 'चादर फादर निकट न आवे, बागेश्वर जब नाम सुनावे' को दोहराते हुए कहा कि बागेश्वर धाम एक दिव्य दरबार है, जहां तीन पीढ़ियों से हनुमान जी की कृपा से लोगों की समस्याओं का समाधान किया जा रहा है. उन्होंने बल देकर कहा कि हनुमान जी ही कलियुग के सच्चे देवता हैं, जो अपने भक्तों की रक्षा करते हैं.
बच्चों को बनाएं संस्कारवान
धीरेंद्र शास्त्री ने रामचरितमानस को जीवन का आधार बनाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि यदि कोई अपने बेटे-बेटी को डॉक्टर, इंजीनियर या आईएएस बनाए या न बनाए, लेकिन उन्हें संस्कारवान जरूर बनाए. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान श्रीराम ने 14 वर्षों का वनवास सहर्ष स्वीकार किया लेकिन कभी माता-पिता या गुरुजनों से सवाल नहीं किया. उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि 'इत्र से तन को मत महकाओ, बल्कि चरित्र से जीवन को महकाओ.'