गले में अटका मछली का कांटा और वेजिटेरियन हो गए नीतीश, पढ़ें बिहार के मुख्यमंत्री के पांच अनसुने किस्से
Nitish Kumar: लगभग पिछले 35 सालों से बिहार की राजनीति में दो ही केंद्र रहे लालू यादव और नीतीश कुमार, 1 मार्च 1951 को पैदा हुए नीतीश कुमार अब 74 साल के हो गए हैं. बीतें 20 साल से राजनीति की हवा पूरब को ओर बहे या पश्चिम की ओर, सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार ही रहे हैं.

Nitish Kumar: लगभग पिछले 35 सालों से बिहार की राजनीति में दो ही केंद्र रहे लालू यादव और नीतीश कुमार, 1 मार्च 1951 को पैदा हुए नीतीश कुमार अब 74 साल के हो गए हैं. बीतें 20 साल से राजनीति की हवा पूरब को ओर बहे या पश्चिम की ओर, सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार ही रहे हैं. फिर कोई उन्हें पलटूराम कहता रहे तो कहे. बिहार के सत्ता की बागडोर तो नीतीश कुमार के हाथों में ही रही. 74 साल के सीएम नीतीश कुमार की जिंदगी में बहुत ऐसे किस्से हैं जिसके बारे में आप नहीं जानते होंगे. तो आज उनके जन्मदिन के मौके पर 5 अनसुने किस्से के बारे में जानते हैं...
पिता की वजह से राजनीति में आए नीतीश
राजनीति को थोड़ा बहुत भी जानने वाले इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि नीतीश छात्र राजनीति से उभरे. जेपी आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि नीतीश के पिता राम लखन सिंह की इच्छा थी कि वो राजनीति में जाएं. राम लखन सिंह आयुर्वेद चिकित्सक होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे. शायद यही वजह होगी कि वो अपने बेटे को राजनीति में भेज देश सेवा का करवाना चाहते थे. उस वक्त राजनीति देश सेवा का काम माना जाता था.
एक बार उनके पिता ने कहा था कि जिंदगी में एक दिन ऐसा आएगा की जब मैं मृत्यु लोक को प्रस्थान करूंगा मेरा बेटा मुन्ना (नीतीश कुमार) भाषण दे रहा होगा. नीतीश कुमार के दोस्त रहे नरेंद्र सिंह ने सर्वाजनिक रूप से बताया कि हुआ भी ऐसा ही था. 1978 में नीतीश कुमार के पिता का निधन होता है तब नीतीश हाजीपुर में युवा लोक दाल के नेता की हैसियत से भाषण दे रहे थे. पिता की मौत की खबर सुनकर पटना आए, इसके बाद नरेंद्र सिंह ही थे जो स्कूटर पर नीतीश कुमार को पीछे बैठा कर पटना से बख्तियारपुर ले गए थे.
लगातार दो हार से राजनीति छोड़ बिजनेस करने की सोची
1977 और 1980 बिहार विधानसभा का चुनाव हारने के बाद नीतीश कुमार पॉलिटिक्स छोड़कर बिजनेस करने का मन बना चुके थे. लेखक संतोष सिंह ने अपनी किताब ‘रुल्ड आर मिसरुल्ड’ लिखते हैं कि हरनौत विधानसभा सीट से 1977 और 1980 में कांग्रेस के भोला सिंह के हाथ लगातार हार का सामना करने के बाद नीतीश ने अपने करीबी दोस्त मुन्ना सरकार से कहा था ‘ऐसे कैसे होगा, लगता है कोई बिजनेस करना होगा.’ अपनी हार से अधीर हुए नीतीश ने अपनी पत्नि मंजू सिन्हा से कहा था कि एक आखिरी मौका दें. 1985 में पहली बार नालंदा के हरनौत विधानसभा सीट से नीतीश कुमार को जीत मिली. कहा जाता है कि इस चुनाव को लड़ने में जब पैसों की कमी हुई तो उनकी पत्नी ने 20 हजार रूपए दिए थे.
नीतीश कुमार और मंजू सिन्हा की लव स्टोरी
लैला-मजनू की लव स्टोरी वाले देश में नीतीश कुमार और मंजू सिन्हा की लव स्टोरी बहुत ही साधरण मानी जा सकती है, लेकिन है बहुत अनमोल, नीतीश जहां ओबीसी हैं. वहीं, उनकी पत्नी मंजू सिन्हा कायस्थ थीं. नीतीश और मंजू की लव स्टोरी कॉलेज के दिनों में शुरु हुई थी. नीतीश कुमार पटना के इंजीनियरिंग कॉलेज के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के स्टूडेंट थे. वहीं मंजू सिन्हा पटना मगध महिला कॉलेज में समाजशास्त्र की स्टूडेंट थी. नियति जब जोड़ी मिलाती है तो जाति का बवाल छूमंतर हो जाता है. नीतीश कुमार और मंजू सिन्हा की शादी बिना किसी जातिय बवाल के हो गई. बिना किसी भोज-भात के बहुत ही साधारण तरीके शादी हुई थी. हां, एक बवाल हुआ था, दहेज का बवाल.
नीतीश कुमार को कहीं से पता चल गया था कि शादी से पहले ही उनके पिता ने मंजू के पिता से बतौर दहेज के रूप में 22 हजार लिए हैं. समाज सुधार का झंडा उठाने वाले नीतीश को जब इसका पता लगता है तो वो गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं और अपने पिता को संदेश भिजवाते की दहेज का पैसा वापस नहीं हुआ तो शादी नहीं करेंगे.
गले में अटका मछली का कांटा और वेजिटेरियन हो गए नीतीश
अपने जवानी के दिनों नीतीश मांसाहारी खाना भी खा लेते थे. हालांकि अब वो सिर्फ शाकाहारी खाना ही खाते हैं. नीतीश कोई शौक से वेजिटेरियन नहीं हुए. दरअसल नीतीश अपने दोस्तों संग मछली खा रहे थे तभी गलती से मछली का कांटा गले के अंदर पहुंच गया. पानी का ग्लास पी-पीकर किसी तरह से मछली का कांटा निगला गया. फिर राहत की सांस आई. इसके बाद से ही नीतीश कुमार ने फैसला किया कि अब कभी मांसाहारी खाना नहीं खाएंगे.
लालू-नीतीश की दोस्ती
आज के युवा लोग अपनी दोस्ती की तुलना शोले के जय- वीरू से करते हैं लेकिन शायद ही उन्हें पता होगा कि अब एक दूसरे के विरोधी लालू और नीतीश की दोस्ती जय-वीरू से कम नहीं थी. ये नीतीश ही थे कि जिन्होंने लालू यादव को पहली बार नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने और फिर बिहार के सीएम बनाए जाने की पूरी रणनीति फिट की थी. लालू पटना में मोर्चा संभाल रहे थे तो नीतीश दिल्ली में बैठ कर लालू के लिए राहें आसन कर रहे थे.
लालू यादव इसका एहसान भी मानते थे.
लालू यादव अपनी किताब गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा में लिखते हैं कि कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद विपक्षी नेता के लिए मैंने जब अपना दावा किया तो नीतीश ने मेरा पूरा सर्मथन किया था. पहले वो मेरे साथ थे फिर मुझसे अलग हो गए. लेकिन उन्होंने मेरा साथ दिया इसके लिए मैं उनका ऋणी रहूंगा.