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जैन समाज क्यों मनाते हैं पर्युषण पर्व, क्या है आठ और 10 दिन के अनुष्ठान का महत्व...जानिए

पर्युषण पर्व जैन समाज के श्वेतांबर और दिगंबर दोनों समुदायों द्वारा भाद्रपद मास में मनाया जाता है. इस पर्व में श्वेतांबर समाज के व्रत पहले समाप्त होते हैं, जिसके बाद दिगंबर समाज के व्रत शुरू होते हैं.

जैन समाज क्यों मनाते हैं पर्युषण पर्व, क्या है आठ और 10 दिन के अनुष्ठान का महत्व...जानिए
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नई दिल्ली : पर्युषण पर्व जैन समाज के श्वेतांबर और दिगंबर दोनों समुदायों द्वारा भाद्रपद मास में मनाया जाता है. इस पर्व में श्वेतांबर समाज के व्रत पहले समाप्त होते हैं, जिसके बाद दिगंबर समाज के व्रत शुरू होते हैं. इस वर्ष 3 से 10 सितंबर तक श्वेतांबर और 10 से 19 सितंबर तक दिगंबर समाज द्वारा दस दिवसीय पर्युषण पर्व मनाया जाएगा. इस दौरान उपवास, पूजा और अन्य धार्मिक गतिविधियां होंगी.

पर्युषण का अर्थ और महत्त्व

पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है "परि" यानी चारों ओर से और "उषण" यानी धर्म की आराधना. इसे जैन धर्म का एक महान पर्व माना जाता है. श्वेतांबर समुदाय इसे आठ दिनों तक मनाते हैं, जिसे 'अष्टान्हिका' कहा जाता है, जबकि दिगंबर समुदाय इसे दस दिनों तक 'दसलक्षण' के रूप में मनाते हैं. दसलक्षण में क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, संयम आदि गुणों का पालन होता है.

श्वेतांबर इस पर्व को भाद्रपद कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मनाते हैं, जबकि दिगंबर भाद्रपद शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक इसका आयोजन करते हैं.

व्रत का उद्देश्य

पर्युषण पर्व के दौरान श्वेतांबर समाज आठ दिनों तक और दिगंबर समाज दस दिनों तक व्रत रखते हैं. व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने पापों का शमन करता है और आत्मा की शुद्धि के लिए तपस्या करता है. यह पर्व आत्मशुद्धि और तपस्या का महापर्व होता है.

पर्युषण के अनुष्ठान

इस पर्व में दो मुख्य भाग होते हैं—पहला तीर्थंकरों की पूजा और स्मरण, और दूसरा विभिन्न व्रतों के माध्यम से मानसिक, शारीरिक और वाचिक तप का पालन. इसमें निर्जला व्रत करने की परंपरा है, जिसमें भोजन का त्याग किया जाता है.

श्वेतांबर जैन भाद्र मास की शुक्ल पंचमी को संवत्सरी के रूप में मनाते हैं. सात दिनों तक त्याग, तपस्या और धर्म-अध्ययन के बाद आठवें दिन यह महापर्व मनाया जाता है. इस दिन साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविकाएं एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं और आपसी मैत्रीभाव को बढ़ावा देते हैं.

मोक्ष की ओर कदम

पर्युषण पर्व महावीर स्वामी के अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत पर आधारित है. यह पर्व आत्मा को पहचानने और मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होने का मार्ग प्रशस्त करता है. पर्व के अंतिम दिन को विश्व-मैत्री दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब श्वेतांबर 'मिच्छामि दुक्कड़म्' और दिगंबर 'उत्तम क्षमा' कहकर क्षमा याचना करते हैं.

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