लेबर रूम में चीख रही थी पत्नी, पति का बॉस बोला- 'हॉस्पिटल से ही लॉग-इन कर लो यार'; मरती इंसानियत से टूटा नए पापा का दिल
पत्नी दर्द में तड़प रही हो, बच्चा आने वाला हो, लेकिन बॉस का मैसेज आता है- 'वर्क फ्रॉम हॉस्पिटल कर लो यार, क्या प्रॉब्लम है?' हाल ही में रेडिट पर एक पोस्ट इतनी वायरल हुई कि लाखों लोग इसे पढ़कर रो पड़े.
दोस्तों, जब कोई इंसान पहली बार पापा बनने वाला होता है, तो वो जिंदगी का सबसे खूबसूरत, सबसे इमोशनल और दिल के सबसे करीब का लम्हा होता है. उस वक्त पूरा जहां छोटा लगने लगता है। बस अपनी पत्नी के पास रहना, उसका हाथ थामे रहना, नए मेहमान का स्वागत करना... बस यही सब चाहिए होता है. न कोई भागदौड़, न कोई टेंशन, न कोई डेडलाइन सिर्फ परिवार।लेकिन आजकल के कॉर्पोरेट कल्चर ने इस प्यारे से पल को भी छीनने की ठान ली है.
अब तो हालात ये हो गए हैं कि बीवी की डिलीवरी का वक्त भी मैनेजर की 'डेडलाइन' से छोटा पड़ जाता है. पत्नी दर्द में तड़प रही हो, बच्चा आने वाला हो, लेकिन बॉस का मैसेज आता है- 'वर्क फ्रॉम हॉस्पिटल कर लो यार, क्या प्रॉब्लम है?' हाल ही में रेडिट पर एक पोस्ट इतनी वायरल हुई कि लाखों लोग इसे पढ़कर रो पड़े और गुस्सा भी हुए. एक लड़के की पत्नी अस्पताल में भर्ती थी, डिलीवरी का समय चल रहा था. उसने अपने मैनेजर से सिर्फ 2 दिन की छुट्टी मांगी. जवाब में जो चैट आई, उसे पढ़कर दिल बैठ जाता है.
वायरल चैट जो हर नए पापा का दर्द
लड़के ने मैसेज किया- सर, मेरी वाइफ अस्पताल में हैं, डिलीवरी होने वाली है. मुझे 2 दिन की लीव चाहिए.' मैनेजर का पहला सवाल, 'अरे, मम्मी-पापा आ गए क्या?. लड़का ने कहा, 'हां सर, आ गए हैं.' मैनेजर (बिल्कुल बेफिक्र होकर),' तो फिर प्रॉब्लम क्या है? अगले हफ्ते छुट्टी ले लेना. अभी तो हॉस्पिटल से ही वर्क फ्रॉम होम कर लो ना.' यानी जिस वक्त पत्नी सबसे ज्यादा दर्द में होती है, बच्चे का पहला रोना सुनने का वक्त होता है, उस वक्त भी लैपटॉप खोलकर मीटिंग अटेंड करो, मेल चेक करो, कोड लिखो! लड़के ने पोस्ट में लिखा, 'मैं पूरी तरह टूट चुका था. मेरी पत्नी हमारे पहले बच्चे को जन्म देने जा रही थी और मुझे ये साबित करना पड़ रहा था कि मैं काम क्यों नहीं कर सकता. मैनेजर बार-बार कहता रहा HR से बात करो, लीव बाद में ले लो. मैं कुछ कर नहीं सकता था. नौकरी छोड़ भी नहीं सकता, क्योंकि घर पर पहले से एक बच्चा है, EMI है, जिम्मेदारियां हैं. मजबूरी में सब सहना पड़ रहा है.'
लाखों लोगों का दर्द
ये सिर्फ एक केस नहीं, लाखों भारतीयों की रोज की जिंदगी है ऐसी कहानियां अब रोज सुनने को मिल रही हैं किसी की मां बीमार है, अस्पताल में है, छुट्टी नहीं मिलती. किसी को पैटरनिटी लीव के नाम पर 3-7 दिन ही मिलते हैं, वो भी काट-काट कर. मैटरनिटी लीव में भी लड़कियों से पूछा जाता है- 'अरे प्रोजेक्ट कौन हैंडल करेगा?.' छुट्टी लेनी हो तो पहले 10 मैनेजर और HR के चक्कर लगाओ, फिर भी 'बिजनेस इंपैक्ट' का डर दिखाकर मना कर दिया जाता है. 'नौकरी जाएगी' का डर इतना बड़ा है कि लोग बीमार पड़कर भी ऑफिस आते हैं, अपनों के आखिरी पलों में भी साथ नहीं दे पाते.
सवाल ये है – हम कब तक मशीन बने रहेंगे?
कंपनियां कहती हैं- We are a family.' लेकिन असल परिवार वाले पल में यही कंपनी सबसे पहले मुंह फेर लेती है. कानून में पैटरनिटी लीव का प्रावधान है, लेकिन ज्यादातर प्राइवेट कंपनियां उसे मानती ही नहीं. 15 दिन की पैटरनिटी लीव भी पूरी नहीं देते, ऊपर से ताने मारते हैं. दोस्तों, बच्चा पैदा होना कोई 'लीव का बहाना' नहीं है. ये जिंदगी का सबसे कीमती लम्हा है. इसे कोई डेडलाइन, कोई मीटिंग, कोई प्रोजेक्ट नहीं छीन सकता. उम्मीद है एक दिन हमारा वर्क कल्चर भी इतना इंसानी हो जाएगा कि कोई पापा अपनी पत्नी की डिलीवरी के वक्त लैपटॉप खोलने की बजाय उसका हाथ थामकर बैठ सके तब तक... जो लोग ये सब सह रहे हैं, उन्हें ढेर सारा हिम्मत और प्यार आप अकेले नहीं हैं.





