ट्रंप के 50% टैरिफ से बचने के लिए भारत को किन चीजों पर करना होगा फोकस? अब बचे हैं ये सात ऑप्शन
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ का ऐलान कर आर्थिक दबाव बना दिया है. अब भारत के पास सिर्फ 20 दिन हैं. बातचीत, जवाबी टैरिफ, WTO में शिकायत, रूस के साथ नई रणनीति, तेल आयात में बदलाव, घरेलू राहत और वैकल्पिक बाजार तलाशना... ये सात बड़े रास्ते हैं जो भारत को तय करने हैं. आर्थिक मोर्चे पर निर्णायक घड़ी आ गई है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर अब तक का सबसे बड़ा टैरिफ ऐलान कर दिया है. उन्होंने पहले लगाए गए 25% टैरिफ को दोगुना करते हुए इसे 50% कर दिया है. ट्रंप ने रूस से भारत के तेल कारोबार को इसकी मुख्य वजह बताया है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि रूस से लगातार तेल खरीदकर भारत रूसी अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर रहा है, जो अमेरिका के हितों के खिलाफ है. पहले टैरिफ 7 अगस्त से लागू होगा और नया अतिरिक्त 25% शुल्क 27 अगस्त से. साथ ही ट्रंप ने चेतावनी दी है कि भारत अगर विरोध करेगा, तो टैरिफ और बढ़ेगा.
भारत ने ट्रंप के इस फैसले को ‘अनुचित और अन्यायपूर्ण’ बताया है. विदेश मंत्रालय ने दो टूक कहा कि भारत का तेल आयात बाज़ार की ज़रूरतों पर आधारित है और हम अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हर आवश्यक कदम उठाएंगे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे “आर्थिक ब्लैकमेल” करार दिया और कहा कि ट्रंप भारत को व्यापार के नाम पर धमका रहे हैं. अब भारत सरकार पर घरेलू दबाव भी बढ़ रहा है, क्योंकि 50% टैरिफ से भारतीय निर्यातकों को बड़ा नुकसान होने की आशंका है.
एक लाख करोड़ का नुकसान
अगर टैरिफ पूरी तरह लागू हो जाता है, तो भारत को करीब ₹1 लाख करोड़ से ज्यादा का झटका लग सकता है. भारत हर साल अमेरिका को लगभग 87 बिलियन डॉलर का माल निर्यात करता है. इससे सबसे ज्यादा असर इंजीनियरिंग गुड्स, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल, रेडीमेड गारमेंट्स, जेम्स एंड ज्वैलरी, आईटी सर्विसेज और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टरों पर होगा. इससे ट्रेड सरप्लस में गिरावट और रुपये की कीमत पर दबाव संभव है.
भारत के सामने कौन-कौन से हैं ऑप्शन?
- 21 दिन की मोहलत में कूटनीतिक बातचीत: अमेरिका द्वारा दिए गए 21 दिन के समय का इस्तेमाल कर बातचीत के जरिये समाधान तलाशना.
- सीधे अमेरिका से टैरिफ छूट या संशोधन की मांग: ट्रंप प्रशासन से उच्चस्तरीय कूटनीतिक बातचीत कर टैरिफ में रियायत या स्थगन की कोशिश.
- WTO, G20, BRICS जैसे मंचों पर मुद्दा उठाना: टैरिफ को भेदभावपूर्ण बताकर अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंचों पर कानूनी और नैतिक दबाव बनाना.
- रूस के साथ वैकल्पिक व्यापार रणनीति: रुपये-रूबल व्यापार को मज़बूत करना और अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए नई भुगतान व्यवस्था बनाना.
- जवाबी टैरिफ का विकल्प: भारत भी चुनिंदा अमेरिकी उत्पादों (जैसे बादाम, सेब, फार्मा) पर टैरिफ लगाकर जवाब दे सकता है.
- घरेलू उद्योगों के लिए राहत और सब्सिडी: टेक्सटाइल, आईटी, फार्मा जैसे सेक्टरों को सब्सिडी और प्रोत्साहन देकर टैरिफ का असर कम करना.
- नए बाजारों की खोज और अमेरिकी निर्भरता कम करना: यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे बाजारों में निर्यात बढ़ाकर अमेरिका पर निर्भरता घटाना.
20 दिन की मोहलत
अमेरिका ने यह टैरिफ 20 दिन बाद लागू करने की घोषणा की है, यानी भारत के पास अभी बातचीत के लिए समय है. कूटनीतिक स्तर पर भारत अमेरिका से छूट की मांग कर सकता है या टैरिफ में संशोधन की बात कर सकता है. साथ ही 2019 की तरह भारत भी जवाबी टैरिफ लगा सकता है और चुनिंदा अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क बढ़ा सकता है.
तेल के मोर्चे पर नई रणनीति की जरूरत
भारत अपनी 85% तेल ज़रूरतों को आयात से पूरा करता है, जिसमें 40% से ज्यादा हिस्सा रूस से आता है. टैरिफ संकट के बीच भारत को अब तेल आपूर्ति के लिए सऊदी अरब, UAE, इराक या नाइजीरिया जैसे विकल्पों की ओर देखना होगा. हालांकि, यह विकल्प रूसी तेल से महंगे साबित हो सकते हैं. भारत रूस के साथ रुपये-रूबल व्यापार प्रणाली को और मजबूत कर अमेरिकी प्रतिबंधों को बाईपास करने की रणनीति पर भी काम कर सकता है.
घरेलू उद्योगों के लिए राहत पैकेज और सब्सिडी संभव
सरकार को उन सेक्टरों को तात्कालिक राहत देनी होगी जो अमेरिका पर निर्यात में निर्भर हैं. टेक्सटाइल, फार्मा, आईटी, और कृषि क्षेत्रों के लिए उत्पादन प्रोत्साहन योजना (PLI), सब्सिडी और टैक्स छूट जैसे उपाय लागू किए जा सकते हैं. इससे न केवल टैरिफ के असर को कम किया जा सकता है, बल्कि रोजगार की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकेगी.
अमेरिका से व्यापार घटाकर नए बाजारों की तलाश
भारत अमेरिका पर अपनी निर्यात निर्भरता को कम कर सकता है। यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे नए बाजारों की ओर बढ़ना वक्त की मांग बन गया है. अमेरिका के साथ भारत का व्यापार घाटा 2024 में 45.8 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। ऐसे में यह टैरिफ उस घाटे को और बढ़ा सकता है.
वैश्विक राजनीति की नई लड़ाई का संकेत
ट्रंप ने चीन और ब्राजील के साथ पहले भी ऐसा ही टैरिफ युद्ध किया था. चीन ने जवाबी टैरिफ लगाए, जिससे अमेरिका को बैकफुट पर आना पड़ा और बाद में चीन को 90 दिन की छूट भी दी गई. अब भारत के लिए भी यही रास्ता खुला है या तो कूटनीतिक वार्ता के जरिए समाधान निकाला जाए या फिर टैरिफ का जवाब टैरिफ से दिया जाए. एक बात तो तय है, इस नए टैरिफ युद्ध ने भारत-अमेरिका संबंधों में कड़वाहट घोल दी है, और इसके दीर्घकालिक प्रभाव दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं और वैश्विक कूटनीति पर पड़ सकते हैं.