...तो दुनिया से गायब हो जाएंगे मेंढक और टोड, ग्लोबल वार्मिंग खत्म कर रहा जल आवास
मेंढक और टोड शैवाल खाते हैं, जिससे जल में फूलों का संतुलन बना रहता है और कई जीव जैसे पक्षी, मछली, और सांप उन्हें भोजन के रूप में उपयोग करते हैं. इनकी कमी से भोजन शृंखला में असंतुलन आ सकता है, जिसका व्यापक असर पूरे पर्यावरण पर पड़ेगा.

ग्लोबल वार्मिंग के वजह से तेजी से सूख रहे जल आवास (वाटर हैबिटेट), जिसकी वजह से आने वाले समय में मेंढक और टोड जैसे जीवों की जान को खतरा होगा. एक रिसर्च के अनुसार, वर्ष 2100 तक मेंढक और टोड जैसे जीवों के लगभग 30% ठिकाने सूख सकते हैं. यह रिसर्च नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में पब्लिश हुआ है. इस रिसर्च में पाया गया कि एनुरान (मेंढक और टोड की एक प्रजाति) विश्व के ज्यादातर इलाकों में पाई जाती हैं, सिवाय कुछ समुद्री द्वीपों, ड्राई रेगिस्तानों और पोलर रीजन के.
वर्तमान में, 25 परिवारों के पास लगभग 4,000 मेंढक और टोड की प्रजातियां पाई जाती हैं. रिसर्चर्स ने दुनिया के कई क्षेत्रों की मैपिंग की है, जहां टेंपरेचर बढ़ने के कारण सूखे होने की संभावना ज्यादा है. इन क्षेत्रों में क्लाइमेट चेंज के इंपैक्ट को एनालाइज किया गया और इस पर आधारित मॉडल बनाए गए हैं. इन मॉडलों से यह अनुमान लगाया गया कि सूखे के चलते एनुरान के ठिकाने पर जल की कमी होगी, जिससे उनका आवास सिकुड़ सकता है या समाप्त हो सकता है.
मेंढक और टोड के बिना इकोसिस्टम पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव
मेंढक और टोड न केवल इकोसिस्टम का जरूरी हिस्सा हैं, बल्कि वे भोजन शृंखला का भी एक अहम अंग हैं. वे शैवाल खाते हैं, जिससे जल में फूलों का संतुलन बना रहता है, और कई जीव जैसे पक्षी, मछली, और सांप उन्हें भोजन के रूप में उपयोग करते हैं. इनकी कमी से भोजन शृंखला में असंतुलन आ सकता है, जिसका व्यापक असर पूरे पर्यावरण पर पड़ेगा.
स्वास्थ्य पर्यावरण का संकेत
मेंढक और टोड पर्यावरणीय स्वास्थ्य के अच्छे संकेतक माने जाते हैं. अगर किसी क्षेत्र में मेंढक आसानी पैदा होते हैं और वहाँ सक्रिय रूप से रहते हैं, तो वह क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टिकोण से स्वस्थ माना जाता है. वहीं, अगर किसी क्षेत्र से मेंढक अचानक गायब हो जाते हैं, तो यह किसी पर्यावरणीय समस्या का संकेत हो सकता है.