‘आर्मी धर्म से नहीं, यूनिफॉर्म से चलती है’ - SC ने बरकरार रखी मंदिर के गर्भगृह में जाने से इनकार करने वाले ईसाई अफसर की बर्खास्तगी
सुप्रीम कोर्ट ने उस ईसाई आर्मी अफसर की बर्खास्तगी को बरकरार रखा जिसने मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने के आदेश को मानने से इनकार किया था. कोर्ट ने इसे “घोर अनुशासनहीनता” बताते हुए कहा कि सेना यूनिफॉर्म से चलती है, धर्म से नहीं. दिल्ली हाई कोर्ट ने भी माना था कि अफसर का रवैया यूनिट-कोहेशन और सैन्य अनुशासन के खिलाफ था. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह धार्मिक स्वतंत्रता नहीं बल्कि वैध आदेश की अवमानना का मामला है.
भारतीय सेना में अनुशासन सर्वोपरि है और अनुशासन की इसी परंपरा को रेखांकित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने उस ईसाई आर्मी अफसर की बर्खास्तगी को सही ठहराया, जिसने अपने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश के बावजूद एक मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से इनकार कर दिया था. यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और सैन्य अनुशासन के बीच की बारीक रेखा को परिभाषित करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने “घोरतम अनुशासनहीनता” करार दिया.
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि भारतीय सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है और इसमें आदेशों की अवहेलना किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं हो सकती.
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CJI ने सुनवाई के दौरान तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “वह किस प्रकार का संदेश देना चाहता था? केवल इसी आधार पर उसे सेवा से निकाल देना चाहिए था. यह सेना अधिकारी द्वारा की गई सबसे गंभीर अनुशासनहीनता है.” अफसर ने तर्क दिया था कि उसे मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने का आदेश उसकी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए स्पष्ट कहा - यह मामला धार्मिक आस्था का नहीं बल्कि कानूनी आदेश की अवहेलना का है.
हाई कोर्ट ने क्या कहा था: “सैनिक धर्म से नहीं, यूनिफॉर्म से बंधे होते हैं”
यह मामला पहली बार दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा था, जहां मई 2024 में कोर्ट ने भी बर्खास्तगी को सही ठहराया. कोर्ट ने कहा कि सेना की रीढ़ उसकी यूनिट-कोहेशन यानी ‘दस्ते की एकजुटता’ होती है, और किसी भी तरह की असहमति, चाहे वह धर्म के नाम पर ही क्यों न हो, सैनिकों में विभाजन पैदा कर सकती है. हाई कोर्ट ने कहा था, “सशस्त्र बलों की असली पहचान उनकी वर्दी है, धर्म नहीं. वे देश को पहले रखते हैं - खुद को और अपने धर्म को बाद में.”
अफसर, कैप्टन सैमुअल कमलेसन, ने अपने बचाव में कहा था कि उन्होंने अपने सैनिकों के साथ मंदिर और गुरुद्वारे के कार्यक्रमों में भाग लिया, लेकिन वे सिख और हिंदू सैनिकों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए केवल गर्भगृह - जहां मूर्ति-पूजन होता है - में प्रवेश से छूट चाहते थे. उन्होंने तर्क दिया कि यह उनकी ईसाई एकेश्वरवादी मान्यता के खिलाफ है.
लेकिन हाई कोर्ट ने माना कि उन्हें कई बार काउंसलिंग दी गई, उन्हें आदेश का महत्व समझाया गया, उन्हें धार्मिक भावनाओं का सम्मान रखते हुए भी सैन्य अनुशासन के तहत मार्ग बताया गया फिर भी उन्होंने लगातार और जानबूझकर आदेशों की अवहेलना की. कोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि रेजिमेंट में सर्व धर्म स्थल (Sarv Dharm Sthal) नहीं था - सिर्फ मंदिर और गुरुद्वारा थे - जिसका हवाला अफसर दे रहे थे. लेकिन कोर्ट के अनुसार यह बिंदु अनुशासन भंग करने का आधार नहीं बन सकता.
कौन हैं सैमुअल कमलेसन?
सैमुअल कमलेसन मार्च 2017 में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन हुए थे. वे 3rd कैवेलरी रेजिमेंट में तैनात थे, जिसमें सिख, जाट और राजपूत जवान शामिल रहते हैं. उनकी कमान में एक स्क्वाड्रन भी थी जिसमें अधिकतर सैनिक सिख समुदाय के थे. कमलेसन ने दावा किया था कि उन्होंने नियमित रूप से मंदिर और गुरुद्वारा कार्यक्रमों में हिस्सा लिया, जवानों के साथ धार्मिक आयोजनों में शामिल हुए लेकिन गर्भगृह में प्रवेश करने में उन्हें अपने धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ लग रहा था. उनका आरोप था कि सेना ने उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान नहीं किया. लेकिन सेना ने रिकॉर्ड में दिखाया कि
वे साप्ताहिक धार्मिक परेड में बार-बार अनुपस्थित रहे, काउंसलिंग के बाद भी रवैया नहीं बदला और उनके व्यवहार से सेना की यूनिट-कोहेशन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. आख़िरकार उनके व्यवहार को “अनुशासन और ड्यूटी में गंभीर कमी” मानते हुए चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ने उन्हें सेवा से हटाना उचित पाया.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा - “यह धार्मिक मामला नहीं, आदेश की अवमानना है”?
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि -
- सेना में आदेश सर्वोपरि है - धार्मिक आस्था का सम्मान होते हुए भी सेना की व्यवस्था आदेशों से चलती है. यदि अफसर आदेश मानने से इनकार करता है, तो नीचे के रैंक पर गलत संदेश जाता है.
- यह असहमति नहीं, ‘डिसओबीडिएंस’ थी - कोर्ट ने यह मानने से इनकार किया कि यह धार्मिक मतभेद का मामला था. उन्होंने कहा - कमलेसन ने जानबूझकर एक “वैध और कानूनी आदेश” को नहीं माना.
- सेना सेक्युलर है, धार्मिक नहीं - CJI ने कहा, “आर्मी का ढांचा धर्मनिरपेक्ष है. हर सैनिक को दूसरों की परंपराओं का सम्मान करना पड़ता है, तभी यूनिट जुड़ी रहती है.”
- अफसर की जिम्मेदारी सबसे बड़ी होती है- अधिकारी होने के नाते उनके ऊपर अतिरिक्त जिम्मेदारी थी कि वे जवानों के सामने अनुशासन का उदाहरण पेश करें. लेकिन उन्होंने उल्टा किया.
धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सैन्य अनुशासन - किसे प्राथमिकता?
यह मामला भारतीय न्यायपालिका और सेना दोनों के लिए एक मिसाल बन गया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि सेना की संरचना में अनुशासन सर्वोच्च है. धार्मिक स्वतंत्रता सैनिकों के लिए भी है, लेकिन तभी तक जब तक वह आदेशों के पालन में बाधा न बने और सेना को जोड़कर रखने वाली चीज़ धर्म नहीं बल्कि कर्तव्य है.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय सेना की मूल भावना - “राष्ट्र प्रथम” - को दोहराता है. कैप्टन सैमुअल कमलेसन का मामला सिर्फ धार्मिक मतभेद का मुद्दा नहीं, बल्कि सेना की एकजुटता, परंपरा और अनुशासन को अक्षुण्ण रखने का प्रश्न था. इस फैसले ने साफ कर दिया है कि आस्था निजी हो सकती है, लेकिन आर्मी में आदेश अंतिम होता है.





